Hindi Story, Essay on “Deeng Hankne wala Mendhak”, “डींग हांकने वाला मेंढक” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

डींग हांकने वाला मेंढक

Deeng Hankne wala Mendhak

एक दिन, एक नन्हा सा मेंढक बड़ी तेजी से भागते और कूदते- फांदते अपने पिता के पास आया। उसके पिता लिली के तालाब के पास एक लट्ठे पर बैठे, धूप में सुस्ता रहे थे।

उसने डर के मारे गिरते-गिरते कहा, “ओह पिता जी मैंने अभी अभी एक बहुत बड़ा राक्षस देखा है।”

“एक राक्षस …?” मेंढक पिता ने हैरानी से कहा। “कैसा राक्षस, बच्चे?” उसने पूछा।

वह बहुत बड़ा था। इत्ता …..बड़ा! पहाड़ जितना बड़ा और उसके सिर पर दो तीखे सींग भी थे।” नन्हा मेंढक तो बेचारा कांपने ही लगा था। “उफ्फ! कुछ भी बहुत बड़ा नहीं होता। मैं भी तुम्हारे उस राक्षस जितना बड़ा हो सकता हूं। दरअसल तुम जिस राक्षस की बात कर रहे हो। वह और कोई नहीं, किसान का बैल है।”

“ओह! मैं पक्का नहीं कह सकता। पिता जी! वह तो सचमुच बहुत ही बड़ा है।”

अब पिता मेंढक को अपना अपमान सहन नहीं हुआ। उसका अपना बेटा भला यह कैसे सोच सकता था कि उसके पिता से भी कुछ बड़ा हो सकता है। नहीं? नहीं, नहीं! उसे अपने बेटे को गलत साबित करना होगा। तो उसने गहरी सांस ली और छाती फुलाई, “क्या वह इससे भी बड़ा है?” तब वह बैल खेत की मुंडेर तक आ गया था और मेंढक का बच्चा उसे देख सकता था। “ओह पिता जी! वह तो इससे भी बहुत बड़ा है।”

उसने जवाब दिया। तो मेंढक पिता ने अपने शरीर को फुला दिया। फिर अपनी छाती, पेट और टांगें फुला कर बोला, “इतना बड़ा होगा!” बेटे ने कहा, “नहीं पिताजी! आप तो उसके सामने कुछ भी नहीं!”

पिता मेंढक ने गुस्से में आ कर, अपने फूले हुए शरीर में एक और बार हवा भरी और ये तो बात हद से ज्यादा हो गई। उसका शरीर इतना फूल गया कि पेट ही फट गया!

नैतिक शिक्षाः अहंकार और घमंड सदा विनाश की ओर ही ले जाते  हैं।

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