विद्यालय में मेरा पहला दिन
Vidyalya me Mera Pehla Din
निबंध नंबर : 01
विद्यालय में व्यतीत किया गया समय हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। बचपन के खेल और शरारतें हमारे जीवन में सदा सुगंध बिखेरती हैं।
अपने वर्तमान विद्यालय में अपना सबसे पहला दिन मुझे अपने जीवन का सबसे रोमांचक समय लगता है।
मार्च 31, 2007 में मैंने पाँचवी कक्षा में यहाँ दाखिला लिया। इस विद्यालय की प्रसिद्धी ने मेरे माता-पिता को बहुत प्रभावित किया था। अपने । पहले दिन पिता जी के साथ मैं प्रधानाचार्य के दफ़तर के बाहर बैठा था। घंटी बजाकर हमें अंदर बुलाया गया। वहाँ ट्राफियों की कतारें देख मैं चकित रह गया। मुझे सप्रेम प्रोत्साहित कर, उन्होंने मुझे मेरी कक्षा में भेजा। उस समय श्री सुशील, विज्ञान पढ़ा रहे थे। मेरा नाम आदि पूछकर स्नेहपूर्वक मुझे एक निपुण छात्र के साथ बिठाया गया।
अर्धावकाश में कक्षा के सभी छात्रों से मेरी मित्रता हो गई। हम सबने मिलकर भोजन किया। मेरे मन से मेरा भय जाता रहा। पूर्णावकाश होते होते न सिर्फ मैं अपने मित्रों से हिल-मिल गया, बल्कि अपने अध्यापकों से भी अच्छी पहचान कर ली।
कुल मिलाकर पहले ही दिन से मैं इसी विद्यालय का हो गया।
निबंध नंबर : 02
विद्यालय में मेरा पहला दिन
Vidyalya me Mera Pehla Din
भूमिका- जीवन में कई घटनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें मनुष्य चाहता हुआ भी भुला नहीं पाता तथा बार-बार उसकी याद आया करती है। ऐसी ही है- मेरी जीवन की यह घटना जब मैंने अपने विद्यालय में पहली बार प्रवेश किया था।
पिता जी का स्थानांतरण तथा विद्यालय की खोज- अगस्त 2006 में मेरे पिता जी का स्थानातरण दिल्ली हो गया। दिल्ली ओ पर मेरे पिता जी ने मेरे प्रवेश के लिए कई विद्यालयों से बातचीत की, लेकिन सन्तोषजनक उत्तर कहीं से भी न मिला। मेरे पिता जी बड़े चिन्तित थे। हमारे पड़ोस में श्री वालिया जी रहते थे। हम सभी उन्हें अंकल कहकर पुकारते थे। पिता जी ने उनसे बात की तो उन्होंने आश्वासन दिलाया कि कल चलेंगे और कल ही विद्यालय में प्रवेश मिल जाएगा।
मैं सारी रात सोचता रहा। कि पता नहीं विद्यालय की पढ़ाई कैसी होगी, वहाँ के अध्यापकगण कैसे होंगे? वहाँ के छात्र कैसे होंगे? मन में अजीब सी घबराहट थी। प्रात:काल मैं सबसे पहले उठ गया क्योंकि रात भर अच्छी तरह सो नहीं पाया। मैं, मेरे पिता जीऔर अंकल जी विद्यालय की और चल पड़े।
मेरा नया विद्यालय– मेरे नए विद्यालय का नाम था एस० डी० स्कूल। मैं अपने पिता जी तथा वालिया अंकल के साथ विद्यालय पहुँचा। विद्यालय का भवन देखकर मेरी काफी चिन्ता मिट गई। भवन अत्यन्त शानदार था। हम प्रधानाचार्य के दफतर में गए। मेरा हृदय तेजी से धड़क रहा था। वालिया जी प्रधानाचार्य के परिचित थे। उन्होंने उनसे मेरे पिता जी का परिचय करवाया। बातचीत करने पर पता चला कि आज ही नवम् कक्षा का एक छात्र स्कूल छोड़ कर गया है, अत: कक्षा नवम् में एक स्थान रिक्त है।
विद्यालय में प्रवेश- प्रधानचार्य ने घण्टी बजा कर मेहता जी को बुलाया। श्री मेहता जी अंग्रेजी के अध्यापक थे। उन्होंने मेरा अंक पत्र देखा तथा मुझे गणित, हिन्दी और अंग्रेजी में प्रश्न हल करने को दिए। उनमें से लगभग सभी | के उत्तर मुझे आते थे। मैंने लिख दिए। प्रश्न पत्रों की जांच के बाद प्रधानाचार्य ने मुस्कारते हुए कहा कि आपको प्रवेश मिल गयाहै। मेरे पिता जी ने विद्यालय की फीस आदि जमा करवाई तथा पाठ्य पुस्तकों की सूची ली और कक्षा में जाने को कह कर अपने दफतर चले गए।
पहला दिन- मेरा हृदय धक-धक कर रहा था। मुझे चपड़ासी कक्षा में छोड़ गया। चपड़ासी ने श्री कालिया जी को मेरे प्रवेश की चिट दी। हमारे कक्षा अध्यापक काफी सभ्य जान पड़े। उन्होंने मुझे बड़े स्नेहपूर्वक बुलाया, नाम पूछा और रजिस्टर में मेरा नाम लिख लिया। उस समय चौथा पीरियड चल रहा था। मैं परा पीरियड चप बैठा रहा। तभी घण्टी बजी। कालिया जी चले गए और लड़कों ने मुझे घेर लिया तथा मेरे बारे में पूछताछ करने लगे। एक लड़के ने मुझसे मजाक भी किया। अगले पीरियड में श्रीमति कमला जी अंग्रेजी पढ़ाने आई। इसके बाद अर्धावकाश हो गया। मेरे पास खाना नहीं था। मेरे सहपाठियों ने मुझे खाना खिलाया।
उपसंहर- धीरे-धीरे मेरे मन की सभी शंकाएं दूर हो गई। विद्यालय के सभी अध्यापक-अध्यापिकाएं सख्त परिश्रमी हैं। आज मुझे इस विद्यालय में पढ़ते हुए चार मास हो गए हैं परन्तु ऐसा लगता है कि मैं प्रारम्भ से ही यहाँ पढ़ता आ रहा हूँ।