Hindi Essay on “Dr. Bhim Rao Ambedkar ”, “डॉ० भीम राव अम्बेदकर”, Hindi Nibandh, Anuched for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

डॉ० भीम राव अम्बेदकर

Dr. Bhim Rao Ambedkar 

निबंध नंबर -: 01

भूमिका- भारत वर्ष में अनेक इतिहास-पुरुष पैदा हुए हैं। भारत की धरती पर ऐसे अनेक संत-महात्मा हुए हैं जिन्होंने सन्यासी का रूप धारण न किया हो लेकिन उनके कार्य सन्यासियों की भान्ति ही मानव कल्याण के लिए। होते हैं। डॉ० भीमराव अम्वेदकर भी ऐसे ही महामानव थे। वे हमारे संविधान निर्माण एवं स्वतन्त्रता सेनानी भी थे उन्होंने ऊँच-नीच का भेद-भाव मिटा कर समानता के अधिकारों का प्रचार किया जिससे दलितों में आत्म-विश्वास की भावना जटिल हुई।

जीवन परिचय और शिक्षा- महाराष्ट्र के रत्नगिरी जिला के गाँव माहू छावनी ने 14 अप्रैल, 1873 ई० को राम जी मौला जी सकपाल की पत्नी बीमा बाई ने एक शिश को जन्म दिया। जिसे बचपन का नाम दिया गया भीम और जाति के साथ शिशु कहलाया ‘भीम सकपाल’। आप जाति से महार कहलाते थे जिसे महाराष्ट्र में अछूत माना जाता था। आपके पिता जी भारतीय सैना में सूबेदार मेजर थे। घर में भीम का लालन-पालन लाड-प्यार से हुआ। छ: वर्ष की आयु में आपकी माता का देहान्त हो गया।

प्रतिभावान भीम ने आरम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1907 के बम्बई के स्कूल से हाई स्कूल की शिक्षा अच्छे अंकों में उतीर्ण करने के बाद बी० ए० की डिग्री भी प्राप्त की। बड़ौदा के राजा से सहायता प्राप्त होने पर आपने अमेरिका के लिविंगस्टोन हॉल से 1915 ई० में एम० ए० की उपाधि प्राप्त की। सन् 1916 में आपने लन्दन में लन्दन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एंड पॉलिटिक्स में प्रवेश लिया और शोध कार्य आरम्भ किया। लेकिन स्कॉलरशिप की अवधि पूर्ण हो जाने पर शोधकार्य अधूरा छोड़ कर इन्हें भारत लौटना पड़ा। भारत में रहकर कुछ धन जटा कर पुन: लन्दन गए और शोधकार्य पूरा किया। वहाँ से पी० एच० डी० और बार एट लॉ की उपाधियां प्राप्त कर 1923 में भारत लौटे। सन् 1935 में लॉ कॉलेज के प्रिंसीपल नियुक्त हुए।

अछूतों एवं दलितों के लिए संघर्ष- कोल्हापुर के महाराजा की प्रेरणा से आपे एक पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र के द्वारा आपने समाज के दलितों, शोषितों एवं अछूतों की समस्याओं को उजागर किया। आपने अपने पत्रों द्वारा | पूंजीपतियों का विरोध भी किया। वे नहीं चाहते थे कि अछूत और दलित वर्ग दूसरों की कृपा और दया पर जीवन बिताएं। उनमें आत्मविश्वास पैदा हो और वे अपने पाँव पर आप खड़े हों। इसके लिए उन्होंने संघर्ष का मार्ग अपनाया। नासिक में कालाराम मन्दिर में चौबदार अछूतों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया। महाड़ में भी चौबदार तालाब सत्याग्रह किया। कोलावा के सार्वजनिक टेंक से अछूतं को भी पानी पिलाने का अधिकार दिलवाना इस संघर्ष के सफल प्रमाण हैं। पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए अनेक प्रस्ताव पास करवाए।

संविधान- निर्माण एवं कानून मन्त्री- 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया। भारत के लिए एक नए संविधान की आवश्यकता अनुभव हुई। डॉ० अम्बेदकर जी को संविधान बनाने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के लिए उपयोगी संविधान बनाने में सहायता की। 26 नवम्बर, 1949 को इस संविधान को अंगीकृत किया गया था। 26 जनवरी 1950 को यह संविधान भारत में लागू किया गया था। बाद में | इनको भारत सरकार के मन्त्रिमण्डल में कानून मन्त्री भी बनाया गया।

उपसंहार- डॉ- अम्बेदकर सच्चे हृदय से मानव के विकास के पक्षपाती थे। अछूत होने का दर्द सहन करते इस जहर को स्वयं पीकर समाप्त करना चाहते थे। वे दलितों और शोषितों के मसीहा थे। उनके नायक और मित्र थे, हमदर्द थे। संविधान के माध्यम से उन्होंने उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा की। उन्हें उनकी महान तपस्या के अनुरूप भारत सरकार में भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया था।

निबंध नंबर -: 02

डॉ. भीमराव अम्बेडकर

Dr. Bhim Rao Ambedkar 

भारत के महान् सपूत, डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने जीवन की असंख्य कठिनाइयों के बीच कठिन परिश्रम करके महानता अर्जित की। वह न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे, अपितु भारत में दलितों के रक्षक भी थे। इसके अतिरिक्त वे एक योग्य प्रशासक, शिक्षाविद्, राजनेता और विद्वान् भी थे।

डॉ. भीमराव का जन्म 14 अप्रैल, 1891 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में अम्बावडे नामक एक छोटे से गाँव में महार परिवार में हुआ था। महार जाति को अस्पृश्य, गरिमा रहित और गौरवविहीन समझा जाता था। अतः उनका बचपन यातनाओं से भरा हुआ था। उन्हें सभी जगह अपमानित होना पड़ता था। अस्पृश्यता के अभिशाप ने उन्हें मजबूर कर दिया था कि वे जातिवाद के इस दैत्य को नष्ट कर दें अपने भाइयों को इससे मुक्ति दिलाएँ। उनका विश्वास था कि भाग्य बदलने के लिए एकमात्र सहारा शिक्षा है और ज्ञान ही जीवन का आधार जिन्होंने एम.ए., पी.एच.डी., डी.एस.सी. और बैरिस्टर की उपाधियाँ हासिल की।

अस्पृश्यों और उपेक्षितों का मसीहा होने के कारण उन्होंने बडी ही निष्ठा, ईमानदारी और लगन के साथ उनके लिए संघर्ष किया। डॉ. अम्बेडकर ने दलितों को सामाजिक व आर्थिक दर्जा दिलाया और उनके अधिकारों की संविधान में व्यवस्था कराई।

डॉ. अम्बेडकर ने अपने कार्यों की बदौलत करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाई। उन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनका बनाया हुआ विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान 26 नवंबर, 1949 को स्वीकार कर लिया गया।

एक सजग लेखक के रूप में उन्होंने विभिन्न मानवीय विषयों पर पुस्तकें लिखीं। इनमें लोक प्रशासन, मानवशास्त्र, वित्त, धर्म, समाजशास्त्र, राजनीति आदि विषय शामिल हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में “ऐनिहिलेशन ऑफ कास्ट्स ” (1936), “हूवर द शूद्र” (1946), “द अनटचेबल” (1948), “द बुद्ध एंड हिज़ धम्म” (1957) शामिल हैं।

डॉ. अम्बेडकर ने अपना अधिकांश समय अस्पृश्यों के उद्धार में ही लगाया और उन्होंने महिलाओं की कठिनाइयों को दूर करने में भी हमेशा अपना योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देने और पुत्र गोद लेने के अधिकारों के संबंध में एक हिन्दू कोड बिल बनाया, किन्तु अततः वह पारित नहीं हो पाया। किन्तु बाद में इस विधेयक को चार भागों में विभाजित करके पारित कराया गया। ये थे-हिन्दू विवाह नियम (1955), हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम (1956), हिन्दू नाबालिग और अभिभावक अधिनियम (1956) और हिन्दू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम (1956)।

महान त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए और दलितों के कल्याण के लिए संघर्ष करते हुए डॉ. अम्बेडकर 6 दिसंबर, 1956 को स्वर्ग सिधार गए। उनके महान कार्यों और उपलब्धियों के बदले में उन्हें (मरणोपरांत) भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

भारतीय जन-मानस में वे सदैव स्मरणीय रहेंगे।

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