Kisan Anndata “किसान-अन्नदाता” Hindi Essay 300 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

किसान-अन्नदाता

Kisan Anndata

भारत का हृदय गाँवों में बसता है। यहीं पर सेवा और परिश्रम के अतवार किसान रहते हैं, जो हम सब के अन्नदाता और संपूर्ण सृष्टि के पालक हैं। किसान का नाम आते ही हमारी आँखों के सामने एक ऐसे असहाय और दयनीय व्यक्ति की छवि घमने लगती है जिसकी आँखों में निराशा का अँधेरा दिखाई देता है किन्तु होता है वह परिश्रमी एवं स्वाभिमानी व्यक्तित्व का धनी। उसकी दरवस्था के लिए वह खुद भी ज़िम्मेदार है जिसके अनेक कारण हैं। अशिक्षा के कारण वह न तो अपने अधिकारों की ओर जागरूक है और न वर्तमान तकनीकी विकास की ओर ही उसका ध्यान जा पाता है। परिणामतः उसकी पैदावार प्रभावित होती है और उसे अपने उत्पाद का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता। अत्यंत अल्पमूल्य में वह अपना बहमल्य परिश्रम साहकार अथवा सरकार के हाथ सौंप देता है और वह सदैव फटेहाल ही रह जाता है।

इसके साथ-साथ किसानों के किसी संगठन का अभाव भी उसके विकास में सबसे बड़ा बाधक है। वह अपने खन-पसीने की गाढी कमाई को आपसी झगड़े-झंझट की बलि चढ़ा देता है। दादा की पुश्तैनी रंजिश पोते तक और उससे आगे चलती रहती है। फलतः कोर्ट-कचहरी उसके परिश्रम को खा जाती हैं। इन सबके साथ-साथ सरकारी योजनाओं के केन्द्र प्रायः नगर ही रहते हैं। जहाँ से किसान का कोसों दूर तक कोई संबंध नहीं रहता। फलतः कुछ मुट्ठी भर लोग ही उसका लाभ उठाते रहते हैं। और वहीं दीन-हीन किसान अपनी दुरवस्था पर आँसू बहाता रहता है। इन सबके अतिरिक्त अंधविश्वासी परम्परावादी होना भी उसके लिए अभिशाप होता है।

पंजी का अभाव किसान की सनातन समस्या है। बीज, खाद, उपकरण खरीदने की क्षमता प्रायः उसके पास नहीं होती और वह या तो साहकार की ओर मुंह करता है या बैंकों की ओर। फंसता वह दोनों ओर है। यदि किन्हीं प्राकतिक या मानवी कारणों से फसल मारी गई तो ऋण-वसूली में न साहूकार दया करता है, न बैंक। उसका आधार नहीं रहता। उसके पैरों तले की जमीन खिसक जाती है और उबरने का कोई रास्ता न देखकर वह आत्महत्या करने को विवश हो जाता है। ‘ग्रामदेवता’ ‘अन्नदाता’ जैसे विशेषण उसकी हँसी उडाते हैं।’

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