Hindi Story, Essay on “Swavlamban ki Bhawna ”, “स्वावलम्बन की भावना” Hindi Moral Story, Nibandh, Anuched for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

स्वावलम्बन की भावना

Swavlamban ki Bhawna 

 

जीवन में वही व्यक्ति महान् बनता है जो व्यक्ति दूसरों पर निर्भर नहीं करता। अपने हाथों से स्वयं काम करके सन्तुष्ट होता है। प्रस्तुत कहानी इसी उद्देश्य को दर्शाती है।

एक बार एक स्टेशन पर आकर गाड़ी रुकी। यात्री गाड़ी से उतरने लगे। उस भीड़ में एक नवयुवक भी था जो अपना सूटकेस को किसी कुली के पास देना चाहता था। उसने ‘कुली, कुली’ पुकारा। कुली के न आने पर वह निराश हो गया। इतने में एक व्यक्ति उनके पास गया जिसने धोती कुर्ता पहना हुआ था। उसने उस व्यक्ति का सूटकेस ले जाने के लिए कहा। वह व्यक्तिसूटकेस उठा कर चल पड़ा। घर पहुंच कर उस नवयुवक ने मजदूरी देनी चाही लेकिन उसे मजदूरी लेने से इन्कार कर दिया। एक दिन वह युवक अपने विद्यालय में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का भाषण सुनने के लिए गया। उसने देखा कि स्टेज पर वही व्यक्ति जिसने मेरा सामान उठाया था, भाषण दे रहा है तथा लोग बड़े ध्यानपूर्वक भाषण सुन रहे हैं। विद्यासागर के पास जाकर उनसे अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने उसे क्षमा किया तथा भविष्य में अपना काम स्वयं करने की प्रेरणा दी। युवक ने उनके सामने शपथ ली कि वह भविष्य में स्वावलम्बी बनेगा।

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