Hindi Essay, Story on “Ya Allah, Goud me bhi aur ”, “या अल्ला, गौड़ में भी और” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

या अल्ला, गौड़ में भी और

Ya Allah, Goud me bhi aur 

बनारस के किसी मुहल्ले में एक मुसलमान फकीर बसता था। मांग-जांचकर वह मुश्किल से अपना पेट भर पाता था। उसकी झोपड़ी के पास ही एक ब्राह्मण का घर था। उस ब्राह्मण को महीने में लगभग पन्द्रह दिन ब्रह्मभोज का न्यौता मिल जाता। फकीर ने सोचा कि मैं भी ब्राह्मण का स्वांग बना लूं तो फिर ब्रह्मभोज में शामिल होने में कोई अड़चन न होगी। फकीर ने सिर पर एक बड़ी-सी

चुटिया रखाई, एक खूब मोटा जनेऊ पहना और माथे पर भस्म का बड़ा त्रिपुड (तिलक) रमाया। दो-चार ब्रह्मभोजों में तो किसी ने पूछा-जांचा नहीं। डटकर खा आया। पर फकीर के अपने मन में तो चोर था ही। इसलिए वह जरा किडा-सिकुड़ा रहता और दूसरे ब्राह्मणों से कुछ किनारे बैठता कि कहीं कोई हचान न ले। इतनी खूबरदारी रखने पर भी, संयोग से किसी भोज में कोई सानेवाला इस ब्राह्मण बने फकीर से पछ बैठा, “भाई, आप कौन वर्ण हैं?” उसने चटपट जवाब दिया, “ब्राह्मण हैं और कौन हैं?”

“ब्राह्मण सही, पर कौन ब्राह्मण?”

फकीर ने सुन रखा था कि ब्राह्मणों में एक ब्राह्मण गौड़ होते हैं। उत्तर दिया”गौड़”।

परोसनेवाले ने पूछा, “कौन गौड़?”

अब तो फकीर घबड़ा गया, क्योंकि वह नहीं जानता था कि गौड़ों में भी भेद होते हैं। अकस्मात् उसके मुंह से निकल पड़ा, “या अल्ला गौड़ में भी और?”

इसके बाद क्या हुआ, इसका पता नहीं। शायद भोजनवालों ने उसे इस ढोंग का मजा चखाया हो, लड्डू-पेड़ों के बदले उसे कुछ और भी खाने को मिला हो!

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