एक न शुद दो शुद
Ek Na Shudh Do Shudh
किसी लड़के की मां कफनचोर थी। रात को कब्र खोदकर वह मुर्दे पर से कफन निकाल लिया करती। किसी फकीर ने उसे ऐसा करने से मना किया और एक मंत्र बताया कि जिसके पढने से मर्दा कफन लेकर उसके सामने हाजिर हो जाता। साथ ही एक और मंत्र बताया कि जिससे मुर्दा कफन देकर कब्र में वापस चला जाता।
कुछ दिन यों अपना धंधा चलाने के बाद वह औरत बीमार पड़ी और मरने समय वे दोनों मंत्र अपने छोटे लड़के को सिखा गई। लड़के ने कब्रिस्तान में एक कब्र पर पहुंचकर मंत्र पढ़ा। एक औरत नंगे बदन अपना कफन हाथ में लिये आ खड़ी हुई। कफन इसने उसके हाथ से ले लिया। लेकिन वह मर्दै को कब्र में वापस भेजनेवाला मंत्र भूल गया। वह इस औरत से डरा और भागा। आगे वह, पीछे औरत। बहुत परेशान होने पर उसे एक अक्ल सूझी। यह कि अपनी मां के मुर्दे को बुलाए और उससे दूसरा मंत्र पूछ ले। लौटकर कब्रिस्तान पहुंचा। मंत्र पढ़ा। उसकी मां अपना कफन हाथ में लिये सामने आई। वह कुछ बोल न सकती थी। इस आदमी की कठिनाई बढ़ गई। मां को भी कैसे वापस भेजे? एक से ही पिण्ड छुड़ाना दुस्तर था, अब तो दो हो गईं।
उसके मुंह से निकला “एक न शुद दो शुद।”