Hindi Essay on “Shikshit Nari ki Samasya ”, “शिक्षित नारी की समस्याएँ”, Hindi Nibandh, Anuched for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

शिक्षित नारी की समस्याएँ

Shikshit Nari ki Samasya 

 

भूमिका- वैदिक काल में स्त्रियों को पुरुष के समान ही महत्त्व दिया जाता है। जीवन संघर्ष में नारी पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलती थी। शिक्षा का उचित प्रबन्ध था। पुरुषों के साथ स्त्रियाँ भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुओं के पास जाती थी। उस काल में नारी शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा ग्रहण करना और अपना बौद्धिक विकास करना होता था। आधुनिक युग में ज्यों-ज्यों नारी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, त्यों-त्यों उसके जीवन में अनेक समस्याएँ भी खड़ी हो रही हैं। आज नारी शिक्षा का लक्ष्य बदल गया है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नारी पुरुष का मुकाबला करती है। योग्य होने के कारण दफ्तर के अनेक पदों पर कार्य करती है।

शिक्षा की जरूरत- नारी की शिक्षा के साथ अनेक समस्याएँ भी जुड़ने लगी हैं। जिन परिवारों में आर्थिक तंगी थी उन परिवारों की लड़कियाँ नौकरी प्राप्त कर अपनी स्थिति को सुधारती हैं। शिक्षित नारी को दहेज जैसे कलंक को भी झेलना पड़ता है। सौभाग्यवश यदि उनकी शादी सम्पन्न परिवार में हो जाती है तो वह चाहती है कि जब घर में नौकर-चाकर काम करने वाले हैं तो वह घर की चार दिवारी में बन्द रहना पसन्द नहीं करती। वह नौकरी करना पसन्द करती है। दूसरी तरफ एक निर्धन की पत्नी सोचती है कि अगर नौकर रखकर घर का काम करवा लिया जाए तो मैं इससे ज्यादा धन कमाकर घर ला सकती हूँ। मैं शिक्षा का दुरुपयग क्यों करूँ ? नारी पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं है। उसे अपने पति अथवा सास-ससुर आदि के विचारों के अनुसार ढलना होता है। अधिकांश लोग आज भी अपनी बहओं को नौकरी करने के लिए बाहर भेजना पसन्द नहीं करते। ऐसी नारियों को विवश होकर घर पर रहना पड़ता है। इससे मानसिक असन्तोष उत्पन्न हो जाता है।

शिक्षित नारी की समस्याएँ- प्रत्येक शिक्षित नारी नौकरी की सोचती है। हमारे यहाँ जब पुरुषों में ही बेकारी समाप्त नहीं होती तो नारियों के लिए नौकरियाँ यहाँ से आएँगी? इसका परिणाम यह हो रहा है कि शिक्षित नारियों में बेकारी की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। एक असामी के किए सैंकड़ों प्रार्थना पत्र पहुँच जाते हैं। अनेकों नारियों को ऐसी नौकरी करने के लिए बाध्य होना पड़ता हा जो वे नही चाहती। नौकरी के लिए कई वार नारियों को अपने घरों से काफी दूर जाना पड़ता है जो उनके जीवन को खतरे में डाल देता है। जिस प्रकार पुरुष आज नौकरी प्राप्त करने के लिए बड़ी से बड़ी रिश्वत तक देने को तैयार हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार नौकरी पाने के लि कई बार नारी को भी अपने सतीत्व से भी हाथ धोना पड़ता है।

शिक्षिता नारी चाहती है कि उसका पति उससे कम शिक्षित न हो। यह एक बड़ी समस्या है। यही कारण है कि आजकल लड़कियों के माता-पिता अपनी लड़कियों को अधिक शिक्षा देने से हिचकिचाते हैं। आधुनिक शिक्षा ने नारी को स्वतन्त्र रहने की भावना दी है। कुछ नारियां यह निश्चय करती हैं कि वे विवाह नहीं करवाएंगी। समय निकल जाने पर उन्हें पश्चाताप करना पड़ता ह। उन्हें योग्य वर नहीं मिलता। शिक्षित नारी का मानसिक विकास याद अधिक हो जाता है तो वह मानसिक द्वन्द्व में घिर जाती है। नौकरी करने वाली नारियों की दशा उस समय और विकट हो जाती है जब पुरुष उनसे सहयोग नहीं करता तथा घर और बाहर वह मशीन की भान्ति काम करती है। ऐसी स्थिति में घर में तनाव का वातावरण बना रहता है।

शिक्षित नारी का लक्ष्य नौकरी करना है और अधिकांश नारियां इस लक्ष्य को पाने में सफल हो गई हैं। गृहस्थी उनके लिए एक समस्या बन गई है : नौकरी करने वाली नारियों के घरों में यदि उनके बच्चों की देखभाल करने वाले माता-पिता है तो ठीक है और जिन नारियों के लिए उनके बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं तो वे गन्दी आदतों को सीख लेते हैं। शिक्षित नारियों पर कई प्रकार के लांछन लगाए जाते हैं। जब नारी घर के निर्वाह के लिए नौकरी करती है तो वह परिवार के सदस्यों का सम्मान नहीं करती। ऐसा रूढ़िवादी लोग मानते हैं। यह जरूरी नहीं कि सभी नारियां नौकरी कर पाएं। जिन को घर में रहने के लिए विवश होना पड़ता है वे घर के काम-काज को भी सुचारू ढंग से नहीं चला पाती क्योंकि शिक्षा काल में इन लड़कियों ने घर के काम-काज की ओर ध्यान नहीं दिया। इस प्रकार वैवाहिक जीवन में उसे विकट समस्या का सामना करना पड़ता ह। पुरुष की भान्ति नारी भी बेकारी का समस्या को अनुभव कर रही है। नारी तकनीकी शिक्षा ग्रहण नहीं करती। सभी शिक्षित नारियां कुछ एक सीमित क्षेत्रों में ही नौकरी करने के योग्य होती हैं।

उपसंहार- शिक्षित नारी को सबसे पहले अपने आप को पहचानना होगा। स्त्री की शिक्षा उनके क्षेत्र और रुचि के अनुकूल होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो नारी जीवन उन समस्याओं से विकट बनता जाएगा। वास्तव में शिक्षा का उद्देश्य मानसिक विकास और प्रतिभा का प्रकाशन होता है। शिक्षा जीवन में समायोजन सिखाती है।

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