Hindi Essay on “Bharatiya Sanskriti ki Visheshtaye ”, “भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ

Bharatiya Sanskriti ki Visheshtaye 

संसार के सभी देशों में भारतवर्ष की संस्कृति महानतम है। भारतीय जन प्रेम, शान्ति एवं अहिंसा के साथ जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। हमारे यहाँ होली. दीवाली तथा ईद आदि त्योहारों को सभी धर्म के लोग बड़ी खुशी और सद्भावना से मनाते हैं। जब होली दीवाली आती है तो मुसलमान लोग हिन्दुओं को उत्सव की मुबारकबाद देने उनके घर जाते हैं तथा जब ईद आती है तो हिन्दू लोग ईद की बधाइयाँ देने मुस्लिम लोगों के घर पर जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में गाय, गंगा नदी तथा कन्याओं को पावन एवं पूज्य माना गया है। गाय को माता कहकर पुकारा जाता है। गौपालन को यहाँ के लोग अपना धर्म समझते हैं। गंगा नदी को पतित पावनी कहकर पुकारा जाता है। यह देवनदी पहले स्वर्ग की धरती पर बहा करती थी। फिर भगीरथ के प्रयत्न से यह पृथ्वी पर उतरकर आई।

भारत की संस्कृति में देवी-देवताओं तथा ऋषि-मुनियों को ईश्वर के बाद दूसरा ऊँचा स्थान दिया गया है। भारत की धरती देवभूमि है, देवी-देवताओं की कर्मभूमि तथा ऋषियों की तपोभूमि है।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता यहाँ की आध्यात्मिकता है। विश्व के अनेक देश आज भौतिकवादिता और फैशन की अंधी दौड़ का अनुसरण करते हुए रसातल की ओर जा रहे हैं। मानव-मानव के रिश्ते आज टूटते जा रहे हैं। दैहिक आकर्षण और भौतिक सुख-सुविधाओं में रमा हुआ व्यक्ति ईश्वर के साथ-साथ अपनी अन्तरात्मा को भी भूल गया है।

स्वामी विवेकानन्द कहते हैं

“भारत की अमरता का रहस्य ही ‘आत्मा’ और ‘आध्यात्मिकता’ है। जब हिन्दु इस सिद्धान्त पर दृढ़ रहेगा-भारतीय राष्ट्र मर नहीं सकता।”

हमारे देश की संस्कृति आत्मा की अमरता पर विश्वास करती है। श्रीमदभगवद्गीता में मनुष्य की आत्मा के सम्बन्ध में कहा गया है कि वह एक अजर-अमर और अविनाशी शक्ति है। उसे जल गला नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती और वायु उसे सुखा नहीं सकती। शरीर मनुष्य की आत्मा का एक दस्त्र की तरह है और आत्मा शरीर का संचालन करने वाली शक्ति है। पश्चिमी देशों की संस्कृति में भौतिक चमक-दमक एवं बाहरी सुन्दरता को विशेष महत्त्व दिया जाता है तथा इसे व्यक्तित्व की पहचान माना जाता है। जबकि भारतीय संस्कृति में अन्तर्मुखता, सादगी, अध्यात्म, संयम नियम तथा जीवन-मूल्यों को ही मानव के व्यक्तित्व की शान समझा जाता है।

भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार तथा मानव-सेवा को बड़ा ही श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। घर आए हुए मेहमान को यहाँ ‘देवता’ माना जाता है तथा उसका सत्कार करना अपना कर्त्तव्य समझा जाता है। इसी प्रकार भारत के लोग दीन-दुःखियों की सेवा और सहायता करने को अपना मानव धर्म समझते हैं।

ईश्वर का रूप यहाँ सत्यम् शिवम् और सुन्द मु के रूप में प्रसिद्ध है। ईश्वर परमसत्य है, शिव अर्थात् कल्याणकारी है और वह परमसुन्दर है।

ज्ञान प्राप्ति और चरित्र-गठन को भारतीय मानव का सबसे बड़ा उद्देश्य माना जाता है। कठोपनिषद् में कहा गया है-

अनिष्ठत जागृत प्राप्य वरान्निबोधत।

(उठो, जागो और श्रेष्ठ पुरुषों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो ।)

भारतीय संस्कृति में पुनर्जन्म, कर्म सिद्धान्त, अवतारवाद, आवागमन-चक्र, परलोक गमन आदि को माना जाता है।

यजुर्वेद में भारतीय संस्कृति के बारे में कहा गया है-

सा प्रथमा संस्कृति विश्व वारा

 

(अर्थात् विश्व का वरण करने वाली सर्वप्रथम श्रेष्ठ संस्कृति है।)

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