Hindi Essay on “Jaha Sumati Taha Sampati Nana”, “जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना

Jaha Sumati Taha Sampati Nana

ममति का अर्थ है-श्रेष्ठ मत, अच्छी बुद्धि या सद्बुद्धि। इस प्रकार की अच्छी बुद्धि मनुष्य को ईश्वर से ही प्राप्त होती है और सुमति के बल पर आदमी अच्छे को करने का निर्णय लेता है तथा बुरे कार्य करना छोड़ देता है।

श्रीमदभगवद्गीता को सारे धर्म शास्त्रों में सबसे श्रेष्ठ धार्मिक पुस्तक या शास्त्र कहा जाता है क्योंकि उसमें अन्य शास्त्रों या पुराणों की तरह किसी प्रकार की कथा-कहानी नहीं है बल्कि विश्व की मनुष्यात्माओं को सद्बुद्धि देने वाले ईश्वर के महावाक्य हैं। गीता पुस्तक 18 अध्यायों में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय में भगवान ने किसी-न-किसी मनोविकार या मानसिक बुराई को दूर करने की शिक्षा ज्ञानार्जन करने वाले मनुष्यात्मा रूपी अर्जुन को दी है। किसी में क्रोध को भगाने, किसी में कामशत्रु पर विजय प्राप्त करने, किसी अध्याय में लोभ-मोह तथा अहंकार आदि मनोविकारों से लड़ने की बात बताई गई है।

जब मनुष्य इस तरह की बुराइयों अथवा मनोविकारों पर विजय प्राप्त करता है, तभी वह जीवन में सम्पूर्ण सुख-शान्ति तथा उन्नति को पाता है।

जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना।

जहाँ कुमति तहाँ विपति निदाना॥

यह चौपाई गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस से ली गई है। तुलसी कवि कहते हैं कि जहाँ पर भगवान की दी हुई श्रेष्ठ बुद्धि अथवा सुमति है-वहाँ । सुख, शान्ति, सम्पत्ति और आनन्द इत्यादि सभी कुछ रहता है।

एक परिवार में सभी लोग आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। किसी के दिमाग म सद्बुद्धि नहीं थी, किसी का भी योग ईश्वर के साथ नहीं था। भगवान की पहचान ही उनको नहीं थी। घर का मालिक रोज रात को शराब पीकर घर आत था तथा अपनी पत्नी एवं बच्चों को बहुत मारता-पीटता था। बच्चे भी सारे दिन घर में शैतानी मचाते रहते थे तथा आपस में लड़ाई झगड़ा करते थे। फलस्वरूप घर में दुःख दारिद्र्य तथा कलह-क्लेश का माहौल था।

एक दिन गृहस्वामी का कोई परिचित व्यक्ति उसके घर आया। उसने योगाभ्यास और ज्ञान सम्बन्धी कुछ आध्यात्मिक बातें बताई तथा शराब आदि छोड़ देने के बारे में गृहस्वामी से कहा।

उस ज्ञानी व्यक्ति की बात का घर के मालिक के ऊपर अच्छा प्रभाव पड़ा।। उसने जीवन में कभी न शराब पीने की ठानी। उसने जाना कि शराब भ्रष्ट बुद्धि की जननी है तथा शराब के ही कारण उसकी और उसके बीवी बच्चों की ऐसी बुरी हालत हुई है। अपने ज्ञानवान मित्र की सलाह से दोनों पति-पत्नी ज्ञान प्रवचन सुनने और योगाभ्यास आदि के लिए ज्ञान-आश्रम जाने लगे। आश्रम का शान्ति एवं पवित्रता पूर्ण माहौल पाकर उन्होंने जाना कि मन की सच्ची शान्ति और पवित्रता की आनन्दानुभूति क्या होती है। सत्संग का श्रवण कर उन्होंने ईश्वर को पहचाना और योगाभ्यास आदि आध्यात्मिक उपायों से अपने मन का सम्बन्ध जोड़ा।

फलस्वरूप उस परिवार के हालात बदलने लगे। गृहस्वामी ने शराब पीना तो छोड़ ही दिया था, अब वह काम पर भी जाने लगा और कोई भी कार्य अपनी पत्नी से और भगवान से पूछकर करने लगा। अब वह अपने बीवी बच्चों को मारता-पीटता न था बल्कि उनसे अतिशय प्रेम करता था। सत्संग के प्रभाव से उसके स्वभाव का रूखा सूखापन चला गया और उसका स्थान मधुरता, सरलता तथा नम्रता आदि गुणों ने ले लिया।

पहले गृहस्वामिनी (जो वास्तव में घर की मालकिन न होकर दासी की तरह थी) पति की मार सहती हुई तथा बच्चों की शैतानियों से परेशान होकर तनाव और क्लेश में खाना बनाती थी लेकिन अब वह सुमति के कारण सुख शान्ति के माहौल में शान्ति एवं प्रेम से खाना बनाने लगी। बच्चों ने भी अपने माता-पिता के बदलते व्यवहार को देखकर आपस में लड़ना झगड़ना और शैतानी करना छोड़ दिया।

घर का मालिक अब रोज काम पर जाता था तथा ईमानदारी एवं परिश्रम से धन कमाता था। फलस्वरूप घर में धन का अभाव किसी को न खलता था।

सुमति आती है सत्संग से, विवेक से, अच्छे व्यवहार और अच्छी चाल-चलन से। रामचरितमानस में विभीषण अपने बड़े भाई लंका नरेश रावण को समझाते हुए कहते हैं- “हे नाथ! वेद और पुराण ऐसा कहते हैं कि सद्बुद्धि और कुबुद्धि ववके हृदय में निवास करती हैं। जहाँ सद्बुद्धि है-वहाँ नाना प्रकार के धन दौलत, ऐश्वर्य, सम्पत्ति और सुख वैभव रहते हैं और जहाँ कवद्धि या बुरी बुद्धि है-वहाँ दुःख-क्लेश और विपत्ति आती है।“

‘कुमति’ एक ऐसी बुद्धि है जो पाप का समर्थन करती है। ऐसी बुद्धि स्वार्थयुक्त होती है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाली होती है।

सुमति के कारण विभीषण ने अपने अत्याचारी भाई रावण का साथ छोड़कर परोपकारी राम की शरण ली। फलस्वरूप उसे अपार वैभवों से भरपूर सोने की। लंका का राज्य प्राप्त हुआ। राम सुमति के पथ पर चले और उनको धर्म के युद्ध में विजय प्राप्त हुई जबकि रावण कुमति के पथ पर चला, उसने धोखे से राम की पत्नी सीता का हरण किया फलस्वरूप उस्का विनाश हुआ।

महाभारत युद्ध में पाण्डवों की जीत हुई और कौरवों को पराजय और नाश का सामना करना पड़ा, क्योंकि कौरव कुमति के पथ पर चले थे। उन्होंने भरी सभा में पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी का चीर हरण किया था और अनीति के बल पर धूत क्रीड़ा में पाण्डवों को हरा दिया था। श्रीकृष्ण सुमति के प्रतीक थे लेकिन कौरव उनका उपहास उड़ाते थे। यद्यपि वे संख्या में अनेक थे लेकिन सुमति का आश्रय लेने वाले कुल पाँच पाण्डवों से हार गए।

विवेक का आश्रय लेकर व्यक्ति अपने जीवन की हर विपत्ति तथा बाधा पर विजय प्राप्त कर सकता है। मन में सदैव अच्छी बातों का मनन-चिन्तन करते रहना चाहिए तथा सोचने का नजरिया सकारात्मक रखना चाहिए। सकारात्मक अथवा विधेयात्मक चिन्तन सुमति का मुख्य प्रवेश-द्वार है। सुमति का अर्थ है–जीवन का प्रत्येक कार्य सोच-समझकर किया जाना चाहिए, हर कदम को फेंक-फेंककर उठाना चाहिए तथा कार्य करने से पहले सोच लेना चाहिए कि कहीं उस कार्य का किसी पर गलत प्रभाव तो नहीं होगा। यदि किसी काम से मनुष्य की आत्मा को हानि पहुँचे, परिवार और समाज को या राष्ट्र के किसी व्यक्ति को हानि पहुँचे तो उस कार्य को नहीं करना चाहिए।

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