Sant Kabir Jayanti “संत कबीर जयन्ती” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

संत कबीर जयन्ती

Sant Kabir Jayanti

ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा संवत् 1455 को इनका जन्म हुआ था। कहा जाता है कि इनकी माता एक विधवा ब्राह्मणी थीं। पर इनका लालन-पालन नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दम्पति ने किया था। बचपन से ही कबीर को साधु-संतों की संगति प्रिय थी। इसी का प्रभाव था कि कबीर ने अपने विचारों और आदर्शों के कारण अपना अलग कबीर-पंथ चलाया। बुद्ध के बाद धार्मिक क्षेत्र में एक कबीर ही ऐसे संत हैं जिन्होंने एक नई विचारधारा को जन्म दिया।

कबीर सामाजिक प्राणी थे। उनकी पत्नी के रूप में लोई थी और पुत्र व पुत्री के रूप में थे कमाल और कमाली । कबीर का लालन-पालन जुलाहा परिवार में हुआ था अतः भक्तिभाव में लीन रहने के उपरान्त भी वे जुलाहा का काम करते थे।

कबीर हिन्दू-मुसलमानों में एकता कराने के पक्ष में थे। उन्होंने इस दिशा में जो प्रयास किए उनके कारण तब बादशाह सिकन्दर लोदी भी उनके खिलाफ हो गया था। कहते हैं बादशाह ने इनको मरवाने का प्रयास भी किया था पर उसे सफलता नहीं मिली।

कबीर अन्धविश्वासों के विरुद्ध थे। सामाजिक कुरीतियों और अन्धविश्वास को दूर करने का उन्होंने सतत प्रयास किया। उन्होंने मूर्ति- पूजा के स्थान पर ईश्वर के गुणगान को सच्ची पूजा माना। वे समाज में फैली विषमताओं पर बड़ा तीखा प्रहार करते थे। कबीर समाज के सभी वर्गों को एक सूत्र में पिरोने के समर्थक थे। ऊँच-नीच और भेद-भाव का उन्होंने सदा विरोध किया। वे चाहते थे कि सारा देश एक मुट्ठी की तरह बँधकर रहे। वे माँस-मदिरा के घोर विरोधी थे।

तुलसी, सूरदास के बाद कबीर ऐसे संत साहित्यकार: हुए जिनका प्रभाव सैकड़ों वर्ष बाद आज भी विद्यमान है। स्वयं महात्मा गांधी तक उनकी विचारधारा के प्रशंसक थे।

ईश्वर में आस्था, सत्य धर्म का पालन, हरिजन उद्धार, अहिंसा, अंधविश्वास, वर्गभेद मिटाना-इन्हीं सब बातों को कबीर महत्व देते थे । गांधी ने भी इन्हें ही स्वीकार किया।

सच पूछा जाए तो कबीर धार्मिक क्षेत्र में रहते हुए भी क्रांतिकारी विचारों के वाहक, एक कर्मयोगी थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का काम किया। सरल, सीधी-सादी भाषा, सीधी-सपाट कथनी से सजे उनके दोहे प्रासंगिक हैं।

कबीर ईश्वर की दी गई एक ऐसी महान प्रतिभा थे कि लोग उन्हें जगद्गुरु मानते हैं। उनके अपने गुरु रामानन्द के दिव्य स्पर्श ने उन्हें बना दिया। कबीर स्वयं को न हिन्दू कहते थे न मुसलमान! दोनों ही धर्म के लोग उनके भक्त थे। कबीर जानते थे कि उनकी मृत्यु के बाद दोनों वर्ग के उनके शिष्य उनके शरीर को लेकर लड़-मरेंगे। कबीर का 119 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ। जो महामानव धरती पर पैदा ही भेदभाव मिटाने को हुआ वह कैसे चाहता कि उसके मरने के बाद कोई आपस में लड़े। कबीर ने जहाँ अपनी देह त्याग की थी वहाँ उनके भक्तों को कबीर की देह नहीं मिली। वहाँ मिले फूल। कहते हैं उन फूलों को हिन्दू-मुसलमान भक्तों ने आपस के बाँट लिया और अपने-अपने तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया।

कबीर अंधविश्वास के प्रबल विरोधी थे। जब उन्हें मालूम हुआ कि लोगों की यह मान्यता है कि काशी में देह त्यागने वाले को स्वर्ग मिलता है और मगहर में मरने वाले को नर्क । कबीर ने लोगों की आँखों पर से अंधविश्वास का परदा हटाने के लिए मगहर को ही देह-त्याग के लिए चुना।

कबीर महान संत थे । प्रखर क्रांतिकारी विचारक, समाज सुधारक, राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक आस्था के प्रतीक थे। उनकी बातें आज भी प्रासंगिक हैं। आज कबीर के दोहों के रूप में उनके आदर्श और विचार हमारे बीच विद्यमान हैं। उनकी जयन्ती तभी सार्थक हो सकती है जब हम उनके आदर्श और विचारों को अपने जीवन में उतारें।

इस महान संत की जयन्ती पूरे देश में मनाई जाती है।

कैसे मनाएँ कबीरदास जयन्ती

How to celebrate Kabirdas Jayanti

  1. आयोजन स्थल को सजाएँ।
  2. संत कबीर का फोटो लगाएँ ।
  3. तस्वीर के आगे दीप जलाएँ, माल्यार्पण करें।
  4. कबीर भक्त-कवि थे। हिन्दू-मुसलमान एकता के कट्टर समर्थक थे। अन्धविश्वास, जात-पाँत और ऊँच-नीच के खिलाफ थे। वे सच्चे मायने में समाज सुधारक थे।
  5. इनकी जीवनी में से इन विषयों के कोटेशन, घटनाएँ और प्रसंग बच्चों को सुनाए जाएँ। ऐसे प्रसंगों को लघु नाट्य या संवाद रूप में बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जाए।
  6. कबीर के दोहे काफी प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। दोहा लेखन की प्रतियोगिता आयोजित की जाए। दोहों के सस्वर पाठ की प्रतियोगिता की जाए।
  7. कबीर के दोहों को गाकर सुनाया जाए।
  8. बच्चों को प्रेरणा देने वाले दोहों को पोस्टर पर लिखकर लगाया जाए।

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