Kaha Gye Vo Din “कहाँ गए वे दिन” Hindi Essay 300 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

कहाँ गए वे दिन

Kaha Gye Vo Din

जब कभी मैं गली में बच्चों को मुक्त हृदय से खेलते हुए देखता हूँ तब मुझे अपने बचपन के दिन याद आ जाते हैं। सोचता हूँ वे दिन कहाँ गए जब मैं भी इन्हीं की तरह बेपरवाह खेला करता था। माँ जब स्कूल भेजती थी तब मैं इन्हीं की तरह ज़िद किया करता था। तब माँ मुझे टॉफी से बहकाकर स्कूल भेजती थी जिस तरह आज मैं बच्चों को स्कूल जाते हुए देखता हूँ। मुझे किसी तरह की चिंता नहीं रहती थी। घंटों पार्क में अपने साथियों के साथ खेलता रहता था। माँ बुलाते-बुलाते थक जाती थी पर नहीं आता था। आज तो मेरे पास पार्क में बैठने का भी समय नहीं है। पढ़ाई का इतना बोझ है कि खेलना भूल गया हूँ। पहले माँ से माखन रोटी के लिए घंटों जिद किया करता था। माँ कितने बार मुझे झिड़कती थी, कभी-कभी तो रोने पर दो चपत भी लगा दिया करती थी। पर आज माँ मुझे खाने के लिए बुलाती रहती है और मैं हूँ कि किताबों में चिपका रहता हूँ। माँ पुकार-पुकार कर थक जाती है पर मैं खाना खाने के लिए डिनर टेबल पर आता नहीं। मुझे वे दिन बहुत याद आते हैं जब मैं बच्चों को साथ लेकर पास के पार्क में चला जाता था और घंटों शहतूत खाया करता था। आज मुझे फल अच्छा नहीं लगता। कितने मस्ती के दिन थे। और आज कितने कठिन दिन है। पहले जरा-सी ज़िद भी मन जाया करती थी आज बाब जी से पैसे माँगों तो टका-सा न होने का जवाब मिलता है। पहले नित्य नहा-धोकर मन्दिर जाया करता था। पुजारी से प्रसाद लेने की हम बच्चों में होड़ लग जाता था पर आज कहीं भी जाना हो तो बाइक पर जाता हूँ। मन्दिर सामने पड़ता है पर मुँह फेर कर चल देता हूँ। कुछ भी हो, वे दिन आज बहुत याद आ रहे हैं। आज के दिनों में वे दिन कभी विस्मरण अवश्य हो जाते हैं पर जब भी खाली होता हूँ बचपन के दिन याद आ जाते हैं।

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