जवाहर लाल नेहरू
Jawahar Lal Nehru
जवाहर लाल भारत के प्रथम यशस्वी प्रधानमंत्री थे। इनका जन्म 14 नवम्बर को स्वरूप रानी की कोख से इलाहाबाद आनन्द भवन में हुआ था। पिता श्री मोती लाल नेहरू इलाहाबाद में प्रसिद्ध बैरिस्टर थे। जवाहरलाल की शिक्षा इंग्लैंड के प्राचीन महाविद्यालय हैरी में हुई। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा पाई और सन 1912 ई. में बैरिस्टरी पास करके स्वदेश लौटे। उन्होंने पिता जी के मार्गदर्शन में वकालत शुरू की।
1919 ई. में जलियाँवाला हत्याकांड से युवक जवाहर विचलित हो गए और पिताजी के न चाहने पर भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। कुछ ही दिनों में वे कांग्रेस पर छा गए और जनता के हृदय-सम्राट बन गएं वे कई बार कांग्रेस से निर्वाचित हुए। 1929 ई. में पहली बार रावी नदी के तट पर उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। इस प्रकार उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और गति दी। पं. जवाहरलाल नेहरू को स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में कई प्रकार के कष्ट झेलने पड़े फिर भी वे विचलित नहीं हुए। उन्हें नौ बार जेल जाना पड़ा और अपने जीवन के चौदह महत्वपूर्ण वर्ष जेलों में काटने पड़े। सन् 1928 ई. में प्रथम बार नेहरू जी कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 31 दिसम्बर सन् 1929 ई. की रात्रि को 11 बजे रावी नदी के तट पर उन्होंने घोषणा की कि “हमारे इस स्वाधीनता संग्राम का उद्देश्य औपनिवेशिक स्वाधीनता नहीं अपितु पूर्ण स्वतंत्रता है।” तत्पश्चात नेहरू जी देश के उन अग्रणी नेताओं में हो गए, जिनके पथ-प्रदर्शन पर ही स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। नेहरू जी के प्रयास से आजाद हिंद सेना के उच्च अधिकारी जेलों से छूटे।
15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। देश की बागडोर नेहरू जी को सौंपी गई। लगातार 17 वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रहकर उन्होंने भारत का सम्मान विदेशों में बढ़ाया। भारत का नया संविधान तैयार कराया, आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं चालू की गई। विज्ञान और टेक्नोलॉजी की शिक्षा पर बल दिया गया। भारत को अन्तर्राष्ट्रीय जगत में उच्च स्थान दिलाया और पूंजीवादी एवं साम्यवादी गुटों की इच्छाओं को ठुकरा कर तटस्थता की नीति का अनुसरण किया इससे विदेशों में भारत का गौरव बढ़ा। कई बार उन्होंने चुनौतियों का सामना किया, लेकिन 1962 में चीन के आकस्मिक आक्रमण के कारण वे हतोत्साहित हो गए। जवाहरलाल नेहरू कल्पनाशील और भावुक व्यक्ति थे। भारत पर चीन के आक्रमण ने उनके विश्वास को धक्का पहुँचाया। 27 मई 1964 को उनकी हृदय गति बंद हो गई। इस प्रकार शांति का दूत और मानवता का प्रेमी संसार से मुख मोड़ गया।
उनके निधन पर भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व रो उठा। देश-विदेश के प्रमुख प्रतिनिधि अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन करने दिल्ली आए। 28 मई सन 1964 ई0 को शांतिवन में उनकी पार्थिव देह को चंदन की चिता पर रखा गया। अंतिम अभिलाषा के अनुसार उनकी भस्म भारत के खेतों और अनेक नदियों में प्रवाहित कर दी गई।
नेहरू जी को बच्चों से असीम प्रेम था। बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। पं. नेहरू ने अपना जन्मदिन बच्चों को समर्पित कर दिया। हम सभी बच्चे जवाहर लाल नेहरू की तरह कठोर परिश्रमी और देश भक्त बनकर उनके सपनों के अनुसार भारत और विश्व का निर्माण करें। राष्ट्र का सच्चा नायक पं. नेहरू अपने क्रिया-कलापों, रहन-सहन, आचार-विचार के द्वारा जो छाप छोड़ गए, वह अमिट है। भलाई और ईमानदारी का जो बीज हमारे बीच बोया है, वह पल्लवित होकर रहेगा। हम जवाहरलाल नेहरू की तरह कठोर, परिश्रमी और देश-भक्त बनकर उनके सपनों के अनुसार भारत और विश्व का निर्माण करें यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि। होगी।