Hindi Essay on “My Daily Routine”, “मेरी दिनचर्या”, for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

मेरी दिनचर्या

My Daily Routine 

Essay # 1

मैं चौथी कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मेरी दिनचर्या बहुत ही साधारण है। एक बार मैंने अपने अध्यापक से सुना था कि सुबह जल्दी उठना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। इसलिए मैं सुबह जल्दी उठता हूँ। मैं सुबह 5.30 बजे उठ जाता हूँ। उसके बाद आधा घंटा अपने बगीचे में सैर करता हूँ। तथा उसके बाद नहाता हूँ उसके बाद मैं अपने कपड़े पहनकर मंदिर जाता हूँ। मेरी दादी जी ने मुझे सिखाया कि रोज सुबह भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए। मंदिर से आने के बाद मैं अपना नाश्ता करता हूँ। नाश्ते में मैं दूध और ब्रेड, फल इत्यादि खाता हूँ। उसके बाद मैं अपनी किताबों को बैग में लगाकर तैयार करता हूँ तथा 7.30 पर विद्यालय के लिए निकल जाता हूँ। मेरा विद्यालय 8.00 बजे शुरू होता है। मैं 7.45 पर विद्यालय पहुँच जाता हूँ और अपने विद्यालय में ध्यान से पढ़ाई करता हूँ।

विद्यालय की छुट्टी 2.00 बजे होती है। मैं घर में 2.15 तक पहुँच जाता हूँ। और उसके बाद खाना खाकर मैं 1 घंटे आराम करता हूँ। 3.00 बजे से 5.00 बजे तक मैं अपने विद्यालय का कार्य करता हैं और उसके बाद शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट या बैडमिंटन खेलने चला जाता हैं। जससे मझमें नई ताजगी आती है। दो घंटे खेलने के बाद 7.00 बजे मैं घर आ जाता हैं। उसके बाद मैं नहाता हूँ अब मैं अपने आपको बड़ा हल्का महसूस करता हूँ। रात का खाना खाने के बाद मैं थोड़ी देर अपने पिताजी के साथ घूमने चला जाता हूँ। वहाँ से आने के बाद मैं अपनी माताजी के पास बैठ जाता हूँ वह मुझे अच्छी कहानियाँ सुनाती हैं। और 9.30 के करीब मैं सो जाता हूँ। रविवार के दिन मैं अक्सर अपने रिश्तेदार के घर घूमने चला जाता हूँ क्योंकि छुट्टी वाले दिन विद्यालय नहीं जाना होता। लेकिन मैं छुट्टी वाले दिन भी जल्दी उठना तथा जल्दी सोना कभी नहीं भूलता।

 

मेरी दिनचर्या

My Daily Routine

Essay # 2

रूपरेखा 

दिनचर्या का अर्थ, प्रात: काल की दिनचर्या, स्कूल की तैयारी, स्कूल में कार्य, दोपहर बाद की दिनचर्या, शाम की दिनचर्या, रात की दिनचर्या

सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम लोग प्रतिदिन जो कार्य करते हैं, उसे दिनचर्या कहते हैं । इस प्रकार नित्यप्रति किया जाने वाला कार्य व्यवहार दिनचर्या कहलाता है । दिनचर्या का नियमित होना बहुत होता है । यह जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होता है। एक छात्रा हूँ। मेरी दिनचर्या प्रातः पाँच बजे से आरंभ होती है । मैं बजे उठकर मुँह-हाथ धोती हूँ। फिर एक गिलास पानी पीकर शौच जाती हैं। इसके बाद मैं पिताजी और माँ के साथ सुबह की सैर के लिए निकल पडती हूँ। आधे घंटे की सैर से पूरा व्यायाम हो जाता है। प्रात: कालीन सूर्य के दर्शन में मन प्रफुल्लित हो उठता है। मैं सूर्य देवता को नमस्कार कर घर की राह पकड़ती हूँ।

सैर से लौटकर आधे घंटे में मैं स्कूल के लिए नहा-धोकर तैयार हो जाती हूँ। झटपट नाश्ता करती हूँ। स्कूल के पीरियड के अनुसार बस्ता तैयार करती हूँ। जूतों को ब्रश से झाडकर पहनती हूँ। फिर स्कूल बस पकड़ने के लिए सड़क के किनारे खडी हो जाती हूँ। लेकिन ये सारे काम स्कूल में छुट्टी होने की स्थिति में नहीं होते । छुट्टी के दिनों की दिनचर्या कुछ अलग होती है। नहा-धोकर नाश्ता करती हूँ और अध्ययन में जुट जाती हूँ।

स्कूल पहुँचने पर मेरी दिनचर्या सामूहिक दिनचर्या का रूप ले लेती है। मध्यावकाश में सभी विद्यार्थी प्रसन्न होकर लंच करते हैं। समय मिलने पर उछल-कूद भी खूब होती है । छुट्टी होने पर स्कूल बस मुझे समय पर घर तक छोड़ आती है। घर लौटकर बस्ते को सही जगह पर रखती हूँ। स्कूल ड्रैस, जूता आदि यथास्थान रखकर मुँह-हाथ धोती हूँ। फिर भोजन का कार्यक्रम होता है। भोजन के बाद आधे घंटे का विश्राम होता है।

शाम के तीन से पाँच बजे तक पढ़ाई करती हूँ । इसी समय से मिले गृहकार्य को निबटाती हूँ। माता जी गृहकार्य को पूरा करते पूरा सहयोग देती हैं । गृहकार्य से निबटकर पढ़ाए गए पाठों को दोहराती भी हूँ। दो घंटे बहुत जल्दी बीत जाते हैं । घर पर पढ़ाई के ये दो घंटे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

शाम पाँच बजे से साढ़े छह बजे तक का समय मैंने खेल निश्चित कर रखा है। मैं अपनी सहेलियों के साथ बैडमिंटन खेलती हूँ। यह मेरा सबसे प्रिय खेल है । खेल के दौरान सहलियों से थोडी गप-शप भी होजाती है । खेल का कार्यक्रम समाप्त कर हाथ-मुंह धोती हूँ। इस समय घर में सामूहिक प्रार्थना होती है । में प्रार्थना और आरती में भाग लेती हूँ। इससे मन में शांति आती है।

सात से नौ बजे तक पढ़ाई चलती है । थोड़ी देर के लिए पिताजी का मार्गदर्शन भी मिलता है । यह समय एक या दो विषयों को विस्तार से पढ़ने का होता है । नौ बजते ही मैं टी.वी के सामने बैठ जाती हूँ । इस समय मैं अपना मनपसंद कार्यक्रम देखती हूँ। इसी दौरान माँ गरमागरम भोजन परोस देती है । खाना खाते-खाते दस बज जाते है । नींद के झोंके आने लगते हैं । मैं बिस्तर पर जाकर सो जाती हूँ। यही मेरी दिनचर्या है।

छुट्टी के दिनों में मेरी दिनचर्या में कुछ मनोरजक बदलाव आ जाता है । छुट्टी के दिनों में मैं घर के कामों में माँ का हाथ बँटाती हूँ । इन दिनों में अपनी चित्रकारी के शौक को भी पूरा करती हूँ । सहेलियों से मिलने-जुलने का कार्यक्रम भी इन्हीं दिनों में होता है।

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  1. shubham November 26, 2020

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