History of “Tie”, “टाई” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

टाई

Tie

History of Tie in Hindi

History of Tie in Hindi

(आकर्षक व्यक्तित्व के लिए)

पुरुषों (खासकर वे, जो निम्न आय वर्ग के नहीं हों) के परिधानों, जैसे-पैंट, शर्ट, कोट, धोती, कुरता पायजामा, पगड़ी बनियान, जुराब इत्यादि में । टाई ही एक ऐसी चीज है, जिसका सम्बन्ध किसी अंग विशेष को ढकने से नहीं है। अधिकतर लोगों का यह मानना है कि शर्ट के कॉलर में टाई पहनने से व्यक्तित्व आकर्षक हो जाता। है। कई लोग इस बात के विरोधी हैं। उनका कहना है कि अन्य परिधानों, जैसे-सफारी सूट, प्रिंस सूट, प्रिंस कोट, शेरवानी  इत्यादि पहनने से भी व्यक्तित्व देखने में आकर्षक बन जाता है।

कट्टर हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग टाई पहनना अपने धर्म के विरुद्ध समझता है। उनका यह मत है कि यह ईसाई धर्म का प्रतीक चिन्ह् ‘क्रास है। दूसरे शब्दों में यह ईसाइयत का प्रतीक है। इसका सीधा भाग तो छाती और पेट पर लटका रहता है और दायां-बायां  भाग गले में बांध दिया जाता है। उनका कहना कि है किसी भी चीज को गले लगाने का अर्थ होता है-उसे स्वीकार करना, आत्मसात् करना। इस धर्म-चिन्ह को | पहनने का अर्थ होगा-ईसाई धर्म को स्वीकार करना। इसीलिए वे उसे नहीं पहनते। किन्तु टाई के जन्म की कथा इससे भिन्न मानी जाती है। इसके अनुसार, आज से लगभग साढ़े तीन सौ साल पहले  इंग्लैंड और फ्रांस के कई भागों में मजदूरों द्वारा टाई का प्रयोग प्रारम्भ किया गया। चूंकि तब रूमाल का प्रचलन नहीं था, अतः वे श्रमिक भोजन करने के बाद अपना मुंह पोंछने के लिए टाई बांधकर लटकाए रखते थे।  उन दिनों वे टाई को आज की तरह सुन्दर, तिकोनी, गांठ  बांधकर नहीं धारण करते थे, बस, गले में यों ही बांधकर लटकाए रखते थे।

शर्ट के कॉलर के बीच में गांठ बांधकर पहनने की शुरुआत सत्रहवीं शताब्दी के नौवें दशक में फ्रांस के राजा लुई चौदहवें के सैनिकों ने की। उन दिनों टाई को ‘क्रेवेट’ कहा जाता था। इसे (क्रेवेट)  गले में बांधने पर इसके रोब से प्रभावित होकर वहां के कई धनाढ्य और शौकीन मिजाज के लोग भी इसे बांधने लगे। यह दौर लगभग अस्सी वर्षों तक चला। अठारहवीं शताब्दी के अंत में हुई फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद क्रेवेट का प्रचलन (फैशन) शुरू हुआ। अब इसे  ‘नेकक्लॉथ’, ‘नेकटाई’ और ‘टाइ’ कहा जाने लगा था। इस फैशन को हवा दी उन्हीं दिनों (सन् 1818 में) छपकर आई ‘नेकक्लॉथियाना’ नामक एक पुस्तक ने। इसमें लगभग दो दर्जन प्रकार की-पतली, चौड़ी, कसी गांठ वाली, ढीली गांठ वाली, धारीदार प्रिंट वाली, छींटदार

प्रिंट वाली टाइयों का उल्लेख किया गया था। उसमें यह भी बताया गया था कि कम समय में सुन्दर गांठ लगाने की कला कैसे सीखें।

सचमुच! टाई की सुन्दर गांठ लगाना एक मुश्किल काम होता है। टाई बांधने के शौकीन कई लोगों का काफी समय तैयार होने के दरमियान  इसी काम में लग जाता है—उन दिनों भी लगता था। इस परेशानी को समझकर फ्रांस के एक व्यवसायी सीयर्स रोबक ने सन् 1897 से ऐसी टाईयों को बनाना और बेचना शुरू कर दिया, जिसमें रोज-रोज गांठ बांधनी नहीं पड़ती थी बल्कि पहले से ही बंधी रहती थी। तब वह

एक डॉलर में ऐसी छह टाइयां बेचता था। आजकल स्कूली बच्चों की जो गांठ बंधी टाई बाजार में बिकती हैं, उनका श्रेय सीयर्स रोबक को ही दिया जाता है।

रोबक के इस कार्य के लगभग पच्चीस वर्षों के बाद (सन् 1920 में) | टाई की डिजाइन, जो न्यूनाधिक रूप में आज भी बरकरार है, का पेटेंट जेस्सी लैंग्सडॉर्फ ने कराया था। तब से पोशाक ही हर चीज की डिजाइनों  में फैशन के कई दौर आए और गए, मगर टाई (जिसे हिन्दी में ‘कंठबंध या ‘ग्रेवेय’ कहते हैं) का आकार लगभग उसी रूप में आज भी बरकरार है, जो आज से सौ या एक सौ पचास साल पहले मौजूद था। हां, एक बात जरूर हुई है टाई के लघु रूप में ‘बो’ का इस्तेमाल किया जाने लगा। यह होटलों-रेस्तरां आदि के वेटर्स  के अलावा बिलियड्र्स वगैरह के खिलाडियों में भी अधिक प्रचालित है। कुछ शौकीन लोग, जो टाई का इस्तेमाल नहीं करते, टाई की जगह पर ही स्कार्फ को आकर्षक ढंग से गले में बांध लेते हैं।

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