History of “Milk Bottle”, “दूध की बोतल” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

दूध की बोतल

Milk Bottle

History of Milk Bottle in Hindi

History of Milk Bottle in Hindi

(मनुष्य को हजारों वर्ष पूर्व इस बोतल का ज्ञान था।)

सन् 1878 से दूध बोतलों में पैक किया जाने लगा। सन् 1870 में अमेरिका की स्थानीय डेरियों ने शीशे के जार में दूध पैक करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1878 में दूध की बोतल को पेटेंट करा लिया गया। पहले-पहल इसमें शीशे का ढक्कन लगाया गया था, जिसमें रबर का गास्केट लगा था। इसके ऊपर धातु की सील होती थी। इसे खोलना खासा कठिन होता था। धीरे-धीरे इस बोतल का इस्तेमाल कम होता गया।

मनुष्य को हजारों वर्षों पूर्व ही ज्ञान हो गया था कि कुछ जानवरों, जैसे-गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। उसने इन जानवरों को पालने और इनके दूध का सेवन करने के अतिरिक्त उससे अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाना भी प्रारम्भ कर दिया। दी मक्खन आदि बनाना तो हजारों सालों से चला आ रहा है।

प्रारम्भ में दूध का भंडारण और आदान-प्रदान भी चमड़े के थैले में ही होता था। जानवरों की खाल से बने थैलों में दूध बंद दूसरों को दिया जाता था; पर यह सुरक्षित तरीका नहीं था, क्योंकि इसमें दूध जल्दी। खराब हो जाता था।

बाद में मिट्टी और धातु के बर्तनों में दूध रखा जाने लगा। इनमें ज्यादा मात्रा में दूध रखा जा सकता था, और यह जल्दी खराब भी नहीं होता था।

प्राचीनकाल में लगभग सभी लोग गाय या भैंस पाला करते थे और दूध का आदान-प्रदान कम होता था, पर ज्यों-ज्यों शहर बसने लगे। त्यों-त्यों लोगों के पास जगह की कमी सेने लगी और निजी तौर पर गाय-भैंस पालना असम्भव होने लगा। उन्नीसवीं सदी में बड़े-बड़े शहर बसने लगे। अब तो गांवों से शहरों में दूध का आना एक बड़ा व्यवसाय बन गया है। आम किसान भी दो-तीन दुधारू जानवर रखकर 20-30  लीटर दूध का उत्पादन करने लगा और उन्हें पास के शहरों में खुद ले जाकर या थोक व्यवसायी को बेचने लगा। जब भी ऐसा कोई दूध वाला शहर में आता था तो शहर वाले कम-ज्यादा मात्रा में अपनी आवश्यकतानुसार दूध लेने लगे। यह तरीका भी सुरक्षित नहीं था। गरमियों में दूध खराब हो जाता था। धूल भरी सड़कों के कारण दूध दूषित हो जाता था। अतः इस ओर वैज्ञानिकों का ध्यान गया।

इसके बाद एक दूसरे आविष्कारक ने लम्बी गरदन वाली दूध की बोतल तैयार की। उसे धातु के ढक्कन से बंद किया जाने लगा। इसमें कागज की गास्केट लगती थी। यह बोतल भी उतनी सफल नहीं हुई।

इस प्रकार के प्रयास अभी तक व्यक्तिगत स्तर पर ही हुए थे। अब अनेक कंपनिया भी इस क्षेत्र में उतर आई। चूंकि छोटे पैमाने पर बोतल तैयार करने के कारण बोतलों की लागत ज्यादा आ रही थी और बोतल बंद दूध महंगा बिक रहा था, इसके अलावा खाली बोतल वापस तो की  जाती थी, पर उनको धोने व साफ करने का काम आधा-अधूरा ही चल रहा था।

उधर हार्वे डी. थैचर नामक एक डॉक्टर और दवा वैज्ञानिक, जो न्यूयॉर्क के पोटूसडेम नामक स्थान पर आकर बस गए थे, ने दवा का व्यवसाय प्रारम्भ किया था। उन्होंने अपने परिवार के लिए दूध की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए एक गाय पाली। उनकी नजर दूध की गुणवत्ता पर गई। उन्होंने लिए प्रयास प्रारम्भ किया। थैचर दूरदर्शी थे। उन्होंने शीघ्र ही ताड़ लिया था कि यह काम काफी बड़ा है। उन्होंने इस काम के लिए एक साझीदार भी ढूंढ़ लिया, जिसका नाम था हर्ब बर्नहार्ट।

पहले-पहले उन्होंने रबर की एक ट्यूब बनाई, जो गाय के  थन से दूध को सीधे बर्तन में ले जाती थी। इसमें मनुष्य के हाथ नहीं लगते थे और वैटीरिया से बचाव भी होता था।

इस प्रकार गाय के थनों से अपने आप दूध निकालने की प्रक्रिया शुरू। हुई। थैचर को सन् 1881 में इसका पेटेंट भी मिल गया। इसका नाम ‘भिल्या  प्रोटेक्टर’ रखा गया। अब उन्होंने इसके निर्माण के लिए व्यवसाय स्थापित किया। थैचर ने इसमें 5000 और बर्नहार्ट ने 1000 डॉलर लगाए। बर्नहार्ट को व्यवसाय का तजुरबा बिलकुल नहीं था। थैचर ने बर्नहार्ट को न्यूयॉर्क शहर में भेजा, ताकि वह ऐसे निर्माता की तलाश करे,  जो 200 दूध प्रोटेक्टर ट्यूवें तैयार कर दे। तब बर्नहार्ट ने एक भारी भूल कर डाली। निर्माताओं ने उससे कहा कि अगर दो सौ ट्यूबें बनवानी हैं तो प्रति ट्यूब 50 सेंट लगेंगे और यदि दस हजार ट्यूबें बनवानी हैं तो प्रति ट्यूब 10 सेंट लगेंगे। नासमझ बर्नहार्ट ने दस हजार ट्यूबों  का ऑर्डर दे डाला। उसे लगा कि ट्यूबों के बनते ही उसका मिल्क प्रोटेक्टर तेजी से बिकने लगेगा। जब वह लौटकर आया तो ट्यूब बर्तन आदि समेत पूरा सेट 3 डॉलर में वेचना निश्चित किया; पर वह नहीं बिक सका।

अब वर्नहार्ट के हाथ-पैर फूलने लगे। उसने थैचर पर दबाव डालना प्रारम्भ किया कि वह उसका दाम और घटाए, ताकि किसी तरह यह बिके और उसका पैसा निकले। दोनों में विवाद हुआ और आखिर थैचर ने बर्नहार्ट के 1000 डॉलर देकर छुट्टी पा ली। अब बर्नहार्ट थैचर के यहां नौकरी करने लगा।

अब थैचर ने यह जानने की कोशिश की कि उसका सेट क्यों नहीं बिक रहा है। उसने पाया कि किसानों का दूध तो यों ही बिक रहा है। वे क्योंकि अतिरिक्त खर्च करते। दूसरी ओर दूध के ग्राहक को इस बात । से कोई मतलब नहीं था कि दूध की आपूर्ति करने वाला कितनी साफ-सफाई रखता है।

सन् 1881 की गरमियों में थैचर एक स्थानीय दूध वाले के यहां गया तो उसने देखा कि दूध वाला एक बड़े केन में दूध डाल रहा था। तभी  उसकी बली ने अपनी गुड़िया फेंकी, जो दूध में गिर गई। गरीब डेयरी वाले ने उस गंदी गुड़िया को तुरन्त  निकाल तो दिया, पर उसी दूध को बेचने चल दिया। उसे लगा कि किसी ग्राहक ने तो इसे देखा नहीं है। अब थैचर ने सोचा कि यदि वह अपने मिल्क प्रोटेक्टर के साथ शीशे की बोतल भी बेचने का प्रयास करे तो सफलता मिल सकती है। दूध गाय के थन से सीधा बोतलों में  जाए। थैचर ने बोतल का नया डिजाइन तैयार किया। इसके बाद एक ग्लास कम्पनी के सहयोग से उसे बनवाना प्रारम्भ कर दिया।

इसके साथ ही थैचर का पूरा सेट बोतल समेत बिकने लगा। पहले से सेट बड़े डेयरी वाले ने खरीदे। एक डेयरी वाले ने उसके बनाए सारे सेट खरीद लिए और पेटेंट का अधिकार भी उस क्षेत्र के लिए खरीद लिया।

अब थैचर ने दूसरी जगह जाकर सेट बेचे। वह धीरे-धीरे हर  शहर में अपने सेट बेचने लगा। दूध की अपनी बोतलों को आकर्षक बनाने के लिए वह बोतलों पर स्वस्थ गाय के दूध निकालने की प्रक्रिया भी छपवाने लगा। एक साफ-सुथरे व्यक्ति द्वारा साफ प्रक्रिया से निकाला जाने वाला  गाय का बोतल बंद दूध अब लोकप्रिय हो चला।

धीरे-धीरे बोतल को वैगन में रखने में तरीका भी विकसित किया गया, ताकि शीशे की बोतल टूटे नहीं। पहले ढक्कनों से दूध लीक होने की समस्या  आई, पर उसका भी हल निकाल लिया गया।

सन् 1890 में थैचर ने अपने आविष्कृति सेट के निर्माण अधिकार बर्नहार्ट और उसके भाई के हाथों बेच दिए। अब वे नई बोतल के निर्माण में जुट गए। उन्होंने दूध के लिए डिस्पोजेबल कागल की बोतल तैयार की।

दूसरी ओर बर्नहार्ट ने पुरानी बोतलों में सुधार किया और अपने व्यवसाय को बढ़ाया। वे दोनों भाई अपने आविष्कारों में जुटे रहे। जब मशीनें तैयार हुईं तो दूध की बोतलें मशीनों से बनाई जाने लगीं।

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