हिन्दू धर्म में गोबर और गोमूत्र पवित्र क्यों?

हिन्दू धर्म में गोबर और गोमूत्र पवित्र क्यों?

सभी वैज्ञानिक गोबर को पवित्र द्रव्यों में अन्यतम स्वीकार करते हैं। बिजली का करण्ट उसे पार करके दूसरे द्रव्य में प्रवेश नहीं कर सकता। अतः हमारे शास्त्रों में गरीब-अमीर सबको सर्वत्र सुलभ गोबर को ही भूमिलेपन के लिए उपयुक्त माना गया है। गोबर की विद्युतनिरोधकारिणी शक्ति लोक में प्रसिद्ध है। अनेक स्थानों में आकाश से गिरने वाली बिजली गोबर के ढेर पर गिरने की दशा में वहीं समा जाती है-यह लोकप्रवाद प्रत्यक्षदर्शी अनेक व्यक्तियों द्वारा समर्थित है। गोबर के ढेर में से मिलने वाले लौह धातु के मूसल जैसा तेजस् पदार्थ अग्नि के संयोग से पुनरपि उड़ जाता है, यह किवदन्ती भी निर्मुल नहीं।

Pauranik-Kahta

कई प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणुओं का विद्यमान होना भी अनिवार्य है, इसलिए मृत्यु के समय उपस्थित रहने वाले कुटुम्बीजनों की स्वास्थ्य-संरक्षा के विचार से भी नानाविध कीटाणुओं को विनाश कर सकने की क्षमता रखने वाले तैजस् (फॉसफोरस) जैसे तत्त्वों से परिपूर्ण गाय के गोबर से चौका लगाना (भूमिलेपन) बहुत आवश्यक है। गोबर में ‘फॉस्फोरस’ नामक तत्त्व बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह तत्त्व नानाविध संक्रामक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह पता चलता है कि गोवर से बने घरों में परमाणु ऊर्जा के घातक कीटाणु भी निष्क्रिय हो जाते हैं। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि आकाश से गिरने वाली बिजली गोबर के ढेर पर गिरते ही, वहीं समा जाती है। जिस प्रकार स्याही सोख (सोखता पेपर) स्याही के धब्बे को सोख कर, उसे फैलने से रोकता है, वैसे ही गोबर विद्युत ताड़ने को सोखने (पचाने) की क्षमता रखता है। कुष्ठ रोग में गाय का गोबर लाभकारी है। बंदर के काटे घाव पर गाय का गरम गोबर लगाने से पीड़ा तत्काल छू-मंतर हो जाती है।

गोमय (गोवर) में जीवाणु और विषाणु को खत्म करने की विशेष शक्ति होती है। इटली के डॉक्टर यहाँ तक सलाह देते हैं कि टी.बी. सेनिटोरियम में गोमय रखा जाये, क्योंकि टी.बी. के कीटाणु इसकी गंध मात्र से मर जाते हैं। दुर्गन्ध दूर करने के मामले में उत्तम-से-उत्तम फिनाइल भी गोमय के सामने फीका है।

गोमूत्र पवित्र क्यों है?

गोमाता पवित्र है। उसका मुख पवित्र है, परंतु उसके पीठ के पीछे का हिस्सा परम पवित्र कहा गया है? इसलिए गोमूत्र व गोबर दोनों ही पवित्र हैं।

गोमूत्र में गंधक और पारद के तात्त्विक अंश प्रचुर मात्रा में होते हैं। यकृत और प्लीहा जैसे रोग गोमूत्र के सेवन से दूर हो जाते हैं। गोमूत्र कैंसर जैसे रोगों को ठीक कर देता है तथा संक्रामक रोगों को नष्ट कर देता है। आयुर्वेद ग्रन्थों में लिखा है-

गोमूत्र कटु तीक्ष्णो क्षारं तिक्तकपायकम।

लध्वाग्निप्रदीपनं मेध्यं पित्तकच्छकफवातहत्।।

शूलगुल्मोदरानाहकण्डवाक्षि मुखरोगजजित्।

किलासगदवातामवस्ति रूक्वष्टनाशनम्।।

अर्थात ‘गोमूत्र चरपरा, तीक्ष्ण, गरम, खारा, कसैला, हल्का, अग्निप्रदीपक, मेधा को हितकारी, पित्तनाशक व कफ, वात, शूल, गुल्म, उदर, अफारा, खुजली, नेत्ररोग, मुखरोग, किलासकोढ़, वात सम्बन्धी रोग, वस्तिरोग, कोढ़, खाँसी, सूजन, कामला तथा पाण्डुरोग नाशक है।’

गोमूत्र पिया जाये, तो खुजली, किलासकोद, शूल, मुख-रोग, नेत्र-रोग, गुल्म (गोला) अतिसार, वात-सम्बन्धी रोग, मूत्ररोग, खाँसी, कोद, उदर रोग, कृमि व पाण्डरोग नाशक है। सर्व मूत्रों में गौमत्र अधिक गुणवाला है। इस कारण जहाँ केवल मूत्र ही कहा है, वहाँ गाय का मूत्र ही समझना चाहिए। गाय का मूत्र कसैला, कड़वा, तीक्ष्ण, कान में डालने से कर्णशूल नाशक और प्लीहा (तिल्ली), उदररोग, श्वास, खाँसी सूजन, मलरोग, ग्रहबाधा, शूल, गुलम, अफारा, कामला व पाण्डुरोग नाशक है।’

गोदुग्ध पवित्र क्यों माना जाता है?

गो को माता कहा गया है। इसका दूध पौष्टिक व सतोगुण प्रधान है। धर्मशास्त्रों में गोदुग्ध पवित्र माना गया है। इसका भोग देवताओं को चढ़ता है। गोदुग्ध से बनी मिठाई, बर्फी, कलाकन्द एवं पेड़े देव-पूजा के काम आते हैं। अत: गोदुग्ध पवित्र है।

गोदुग्ध के सेवन से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। गाय का दूध संग्रहणी, शोथ आदि अनेक असाध्य रोगों की अचूक औषधि है। कुशल-स्थूलता एवं मैदा वृद्धि को दूर करने के लिए केवल गोदुग्ध का ही प्रयोग होता है। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षण के बाद गोदुग्ध में प्राप्त प्रोटीन एवं विटामिनों का विशेष विश्लेषण करके इसके तत्त्व को पहचाना है, इसलिए वे गोदुग्ध के स्थान पर अन्य पशओं के दुग्ध का सेवन नहीं करते।

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