Hindi Essay on “Samrath ko nahi Dosh Gosain”, “समरथ को नहिं दोष गोसाईं”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

समरथ को नहिं दोष गोसाईं

Samrath ko nahi Dosh Gosain

संसार का यह अनोखा नियम हैं कि समर्थ और शक्तिशाली व्यक्ति चाहे कितनी ही बड़ी भूल कर बैठे उसे कोई दोष नहीं देता जबकि वैसी ही भूल के लिए दुर्बल और निर्धन व्यक्ति को तरह-तरह के दण्ड भोगने पड़ते हैं। समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए समाज और शासन अनेक नियमों और कानूनों को बनाते हैं। किन्तु देखने में आता है कि ये सब नियम या कानून आम आदमी के लिए होते हैं। समर्थ और शक्ति सम्पन्न लोग आए दिन नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हैं, उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला नहीं, दण्ड देना बहुत दूर की बात है। एक पटवारी या क्लर्क दस-बीस रुपये रिश्वत लेता हुआ पकड़ा जाता तो नौकरी से हाथ धो बैठता है। समाचारपत्रों में बड़े-बड़े समाचार छपते हैं और कोई अफसर कोई मन्त्री लाख, करोड़ रुपए रिश्वत में लेता है। तो उसकी चर्चा तक नहीं होती। केवल इसीलिए न कि एक पटवारी या क्लर्क तो समर्थ नहीं, शक्ति-सम्पन्न नहीं है जैसा कि वह अफसर या मन्त्री होता है। समरथ को दोष न देने की बात आज नई प्रचलित नहीं हुई ऐसा तो सदा से होता आया। श्रीराम ने बालि। छिप कर धोखे से मारा। उनको दोष नहीं दिया गया। अर्जुन ने भीष्म पितामह को शिखंडी को आगे खड़ा करके मारा। उनको किसी ने दोष नहीं दिया। भीम ने दुर्योधन को गदा युद्ध में, गदा युद्ध के नियम का उल्लंघन करके मारा तो उसे कोई दोष न दिया गया। समाज आर शासन द्वारा समरथ को दोष न देने की नीति ने समाज में गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद जैसी भयानक समस्याओं को जन्म दिया है। कानून का उल्लंघन करने वाला अधिकारी तो रिश्वत देकर छुट जाता है। समर्थ व्यक्ति आज डटकर काला धंधा करता बार-बाजारी करता है, स्मग्लिग करता है क्योंकि वह जानता है कि प्रथम तो वह पकड़ा ही नहीं जाएगा और यदि पकड़ा भी गया तो रिश्वत देकर छूट जाएगा। किसी गरीब कन्या का अपहरण होने पर पुलिस चप साधे बैठे रहती है और किसी मन्त्री की कन्या का अपहरण हाने पर सरकारी मशीनरी हरकत में आ जाती है। आखिर ऐसा क्यों है? कार राजनीति हो या धर्म, शिक्षा हो अथवा सरकारी नौकरी सभी क्षेत्रों में जितने भी कायदे कानून हैं वे सब दुर्बल, विपन्न और ऐसे लोगों के लिए है जिनका कोई भी सगा-संबंधी किसी उच्च पद पर नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा है कि ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’। किन्तु इस पंक्ति में एक संदेश भी छिपा है कि यदि तुम सम्मानपूर्वक जीना चाहते हो तो बलशाली बनो, समाज में अपनी सात बनाओ और शक्ति का संचय करो।

Leave a Reply