Hindi Essay on “Prayogwad”, “प्रयोगवाद”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

प्रयोगवाद

Prayogwad

सन् 2943 ई. में अज्ञेय के नेतृत्व में हिन्दी कविता के क्षेत्र में एक नये आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ। इसे अब तक विभिन्न संज्ञा–प्रयोगवाद, प्रवद्यवाद, ‘नयी काय आदि-प्रदान की गई हैं। वे इसके विकास की विभिन्न अवस्थाओं एवं दिशाओं का सूचित करती हैं; यथा-प्रारंभ में जबकि कवियों दृष्टिकोण एवं लक्ष्य स्पष्ट नहीं था, नूतनता के खोज के लिए केवल प्रयोग की घोषणा की थी, तो इसे प्रयोगवाद कहा गया। इस वाद से सम्बन्धित दो प्रवृत्तियाँ हैं-1.बाह्य प्रवृत्तियाँ और 2.आंतरिक प्रवृत्तियाँ।

1.बाह्य प्रवृत्तियाँ-नये कवियों ने अपनी चर्चा को ही अपना प्रचार और अपनी कुख्याति को ही अपनी प्रसिद्धि एवं स्वयं को अच्छे या बुरे रूप से स्थापित कर देना ही अपने कवि-कर्म का लक्ष्य माना है।

2.आंतरिक प्रवत्तियाँ-हिन्दी की इस नयी कविता में सामान्यतः निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं।

(क) घोर वैयक्तिकता–नयी कविता का प्रमुख लक्ष्य निजी मान्यताओं विचारधाराओं एवं अनुभूति का प्रकाशन करना है। वैयक्तिकता की यह प्रवृत्ति रीतिकाल के स्वच्छन्द श्रृंगारी कवियों एवं आधुनिक युग के छायावादी कवियों में भी विकसित हुई थी, किन्तु उन्होंने वैयक्तिक अनुभूतियाँ की अभिव्यंजना इस प्रकार की जिससे यह प्रत्येक पाठक के हृदय को आन्दोलित कर सके; किन्तु कुछ कवियों में यह बात नहीं मिलती। कुछ पंक्तियाँ उदाहरण के लिए देखिए–

साधारण नगर के

एक साधारण घर में

मेरा जन्म हुआ

बचपन पीता अतिसाधारण

साधारण खानपान

साधारण वस्त्र-वास

तब में एकाग्र मन

जुट गया ग्रन्थों में

मुझे परीक्षाओं में विलक्षण श्रेय मिले।

आ-दूषित वृत्तियों का नग्नरूप में चित्रण-जिन्हें वृत्तियों का अश्लील, असामाजिक एवं अवस्थ कहकर समाज और साहित्य में दमन किया जाता है, उन्हीं को उभारकर प्रस्तुत करने में नये कवि गौरव का अनुभव करते हैं। अपनी अतृप्त कुंठाओं एवं दमित वासनाओं का प्रकाशन वे निःसंकोचक करते हैं।

मेरे मन की अंधियारी कोठरी में

अतृप्त आकांक्षाओं की वेश्या बुरी तरह खास रही है।

पास आये तो

दिन भर का थका जिया मचल-अचल जाये।”

अनन्त कुमार पोषण

इसी प्रकार श्रीमती शकुन्तला माथुर ने ‘सुहाग-बेला में जो लयक झपक दिखाई है।’ वह भी योग्य है।

चली आई बेला सुहागिन पायल पहने ।।

वायविद्ध हरिणी सी

बाँहों में लिपट जाने की ।”

(ख) निराशावादिता-नये कवि को न तो अतीत से ही प्रेरणा मिलती है और न वह भविष्य की आशा-आकांक्षाओं से उल्लसित है। उसकी दृष्टि केवल वर्तमान तक सीमित है। अतः ऐसी स्थिति में उसका क्षमवादी निराशावादी और विनाशात्मक प्रवृत्तियों में लीन हो जाना स्वाभाविक है–

आओ हम उस अतीत को झूलें

और आजकी अपनी रग-रग के अन्तर को छूलें।

छुले इसी क्षण क्यों वे कल में नहीं रहे ।

क्योंकि कल हम भी नहीं रहेंगे।

मुद्राराक्षस

(ग) बौद्धिकता एवं शुष्कता-बौद्धिक युग में बौद्धिकता की अधिक आवश्यकता है। इससे पाठक का हृदय आप्लावित नहीं हो सकता। इस तथ्य को कवियों ने ईमानदारी से स्वीकारा है–

अंत रंग की इन घड़ियों पर छाया डाल दूँ ।

अपने व्यक्तित्व को एक निश्चित साँचे में ढाल दूँ ।

निजी जो कुछ है, अस्वीकृत कर दूँ  !

संवोधनो के सर्ग को उपरांत कर दूँ !

आत्मा को न मानूं

तुम्हें न यह जानू तुम्हारी त्वदीयता की स्थिर शून्य में उछाल दूँ

तभी।

हाँ

शायद तभी

राजेन्द्र किशोर

  1. भदेस का चित्रण-नये कवियों ने भदेस का चित्रण प्रायः किया है

मूत्र-सिंचित मृत्तिका के वृत्त में ।

तीन टाँगों पर खड़ा नतग्रीव धैर्य धन गदहा।

अज्ञेय

(घ) साधारण विषयों का चित्रण-नये कवियों ने अपने आस-पास की साधारण वस्तुओं जैसे-चूड़ी का टुकड़ा, चाय की प्यालियाँ, बाटा का चप्पल, साइकिल, कुत्ता, वेटिंग रूम, होटल, दाल, तेल आदि को लेकर इधर-उधर की कुछ कह देता है–

बैठकर ब्लेड से नाखून काटे

पढ़ी हुई दादी में बालों के बीच की

खाली जगह छाटें,

सर खुजलायें जम्हु आयें,

कभी धूप में आये

कभी छाँह में जायें

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

(ङ) व्यंग्य एवं कटुक्ति-कवियों ने कहीं-कहीं आधुनिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर व्यंग्य करने का प्रयास किया है, किन्तु व्यंग्य के लिए जिस मानसिक संतुलन की उपेक्षा की है, उसका प्रायः नये कवियों में अभाव है। इस में उनकी उक्तियाँ सफल व्यंग्य बनाने के स्थान पर प्रभाव शून्य कडूक्तियाँ बन जाती हैं, प्रथा–

सांय तुम सम्य तो हुए नहीं, न होगे,

नगर में वसना मी तुम्हें नहीं आया,

फिर कैसे सीखा डसना,

विष कहाँ पाया ?”

(च) शैलीगत प्रवृत्तियाँ-नये कवियों ने नूतन प्रयोगों को अपना लक्ष्य मानते हुए अपनी कविता में नये बिम्बों, नये प्रतीकों, नये उपमानों, मुक्त छंदों एवं नयी शब्दावली को प्रयोग किया है। यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।

  1. नये प्रतीक-प्यार का बल्ब फ्यूज हो गया।
  2. नये उपमान-आपरेशन थियेटरसी।
  3. नये शब्द-(1) वाले चाल के शब्द–मटियाली फफूई, लखों दुधारु, मनगे, अन्देश दिया ठहराव आदि !

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