प्रौढ़-शिक्षा
Adult Education
शिक्षा मनुष्य को सत्य की पहचान कराने वाली है। यह ज्ञान की आँख देती है। यह हमारी सोई प्रतिभा को जगाकर उसे कारगर बनाती है। देखा जाए, तो समूचा विश्व एक खुली पाठशाला है। हर व्यक्ति जीवन भर कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। व्यक्ति के लिए उसका अनुभव ही शिक्षा का स्वरूप है। किन्तु उम्र के पहले पड़ाव को, जिसे सामान्यतया विद्यार्थी जीवन कहते है यही शिक्षा के लिए उपयुक्त स्वीकार किया गया है।
भारतीय दृष्टि से इसे ब्रहाचर्य आश्रम कहते हैं। यहां पांच वर्ष तक बालक माता के निर्देशन में जीवन की प्रारम्भिक बातें सीखता। है। पॉच से पच्चीस वर्ष उसके लिए गुरु के यहाँ शिक्षा पाने के लिए निश्चित किए गए हैं। यह विधिवत् शिक्षा का स्वरूप है। लेकिन विद्वानों का यह मानना है कि शिक्षा तो जब भी, जहा भी मिले, उसे हाथ बढ़ाकर स्वीकार करना चाहिए। लेकिन यहाँ हमारा उद्देश्य प्रौट-शिक्षा की आवश्यकता और महत्व को बतलाना है।
प्रौढ़ से अभिप्राय है-गृहस्थ आश्रम का व्यक्ति। दूसरे शब्दों में जिसकी उम्र पच्चीस वर्ष से अधिक हो। यदि उम्र में कोई अनपढ़ व्यक्ति शिक्षा के कलंक को मिटाना चाहे तो वह अपने कार्य के क्षणों से कुछ अवकाश निकाल करके साक्षर (शिक्षित) हो सकता है। इससे वह अपने दैनिक कार्यों को भली-भात और आकर्षक ढंग से पूरा कर सकता है।
शिक्षा का प्रचार-प्रसार आज की अपेक्षा 25-30 साल पहले इतना अधिक नहीं था। उस समय जीविकोपार्जन ही प्रमुख रूप से था। इसी कारण खेतिहर किसान लोग, मजदूर, छोटे तबके के लोग और विशेषकर महिलाएं सुचारू रूप से व्यवस्थित शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते थे और एक उम्र बीत जाने के बाद वैसे साधन नहीं थे कि वे कम-से-कम अक्षर ज्ञान ही प्राप्त कर लें। इसलिए एक पूरी पीढ़ी का अधिकांश भाग अनपढ़ रह गया। यह प्रवृत्ति किसी हद तक आज भी विद्यमान राष्ट्र की अनेक विकासशील नीतियों में प्रौढ़ शिक्षा नीति का शिक्षा उद्देश्य यही है कि वे लोग जो अपने विद्यार्थी जीवन में विधिवत शिक्षा नहीं पा सके। अक्षर ज्ञान तक नहीं प्राप्त कर सके, वे अपना दैनंदिन जीवन सुचारू रूप से चला सकें। और सामान्य लिखने-पढ़ने करने योग्य हो जाएं। इसी उद्देश्य को सामने रखकर पकी आय वाले प्रौट व्यक्तियों के लिए शिक्षा योजना लागू की गई है; क्योंकि आज के प्रगतिशील युग में कोई भी व्यक्ति अशिक्षित रहकर समय के साथ नहीं चल सकता। फिर चाहे गांव हो या शहर, वह अपने देश, समाज और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के बल पर ही जुड़ सकता है।
देश-विदेश में जो अनेक प्रकार की प्रगति हो रही है, उन्नति और विकास की योजनाएं चल रही हैं। और साधन और उपकरण सामने आ रहे हैं। अशिक्षित व्यक्ति या तो उनसे अपरिचित रहता हुआ समुचित । लाभ नहीं उठा पाएगा या फिर अशिक्षा के कारण ठगा जा सकता है। ऐसे में यह वर्ग स्वयं को शिक्षित बनाकर ही ठीक से जीवन योग्य हो सकता है।
प्रौढ़-शिक्षा का उपयोग की दृष्टि से एक उद्देश्य यह भी है कि अब तक जो लोग अनपढ़ और पिछड़े रह गए हैं, वे शिक्षा के महत्त्व को समझ सकें और कम-से-कम अपनी संतान को तो आगे विकास करने का अवसर प्रदान कर सकें। चाहे कोई यनित मजदूर है अथवा किसान या किसी भी वर्ग से संबंधित है कोई भी कार्य करता हो, निश्चय ही एक विशेष स्तर की शिक्षा पाकर वह न केवल अपनी योग्यता बढ़ा सकता है, अपितु अपने में समझ-बूझ पैदा कर सकता है। वह अपने धंधे का भी समुचित विकास कर सकता है। पढ़ने-लिखने से उसे अनेक जानकारियां। प्राप्त होगी, जिनका उपयोग वह जीवन-व्यवहार में कर सकता है।
प्रौढ़-शिक्षा पाने के लिए व्यक्ति को कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं और न ही समय की पाबंदी का कोई प्रश्न पैदा होता है। उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था ऐसे समय में आयोजित की गई है, जब वह अपने समस्त दैनिक कार्यों से फुर्सत पाकर थोड़ा-बहुत समय पढ़ाई में लगा सकें। निश्चय ही यह समय रात्रि लगभग आठ बजे से दस बजे तक का होता है। पढ़ाई के लिए आवश्यक सामग्री भी उन्हें। व्यवस्था द्वारा मुफ्त जुटाई जाती है। प्रौढ़ महिला के लिए अध्ययन के समय की व्यवस्था दोपहर में निर्धारित की गई है। ऐसी स्त्रियां अपने दोपहर के भोजन से निवृत्त होकर लगभग दो बजे से चार बजे तक का समय अपनी पढ़ाई के लिए दे सकती हैं।
परिवार की स्त्रियों का शिक्षित होना पुरुषों के समान ही उपयोगी और महत्वपूर्ण है। मां के शिक्षित होने के बच्चों के पालन-पोषण और प्रारंभिक विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। एक शिक्षित मां स्वयं अपने बच्चों को भी शिक्षा, की ओर प्रोत्साहित कर सकती है।
सरकार ने आज जगह-जगह नगर, गांव, कस्बों में प्रौढ़-शिक्षा केन्द्र स्थापित कर रखे हैं। अधिकांश लोग इन केन्द्रों का भरपूर लाभ उठा भी रहे हैं। यह प्रयास सफल होने पर निश्चय ही घर-घर में शिक्षा का प्रकाश फैला सकेगा और एक बात यह भी है कि आज जो लोग किसी संकोच के कारण शिक्षा पाने में आगे नहीं आ रहे; वे अपने पड़ोसी को लाभ उठाते देखकर अवश्य अनुप्रेरित होंगे।
जहाँ इस प्रकार की व्यवस्था अथवा केन्द्र अभी नहीं चालू हो पाए हैं, वहाँ के लोग जिला प्रौढ़-शिक्षा अधिकारी को सामूहिक स्तर पर पत्र लिखकर व्यवस्था करवा सकते हैं। ध्यान रहे, शिक्षा का महत्त्व जीवन में सर्वोपरि होता है। जो पहले नहीं समझते थे, वे आज समझ रहे हैं, जो आज नहीं समझा पा रहे, वे कल अवश्य समझेंगे। आज की युवा पीढ़ी का भी यह कर्तव्य है कि वह अपने आस-पास अशिक्षित और अनपढ़ लोगों में शिक्षा के प्रति उत्साह जगाने में अपनी भूमिका निभाएं। प्रौढ़-शिक्षा निश्चय ही एक प्रशंसनीय योजना है।
shiksha ke prati jagrukata hona bahut jaruri hai or iska jimewari hame hi uthani paregi, taki ham or hamara samaj dono shikshit ho sake. sir aapke prayash ko hamara salute.