Hindi Essay, Paragraph on “Postman ”, “पोस्टमैन”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

पोस्टमैन

Postman 

पोस्टमैन अंग्रेज़ी का शब्द है। हिन्दी में इसे डाकिया और चिट्ठीरमा तथा फारसी में ‘हरकारा’ कहते हैं। प्राचीन काल में राजा-महाराजा एक स्थान से दूसरे स्थान पर दूत द्वारा या कबूतर द्वारा संदेश भेजते थे। कबूतर के गले में संदेश लिखकर बाँध देते थे या उसके पंख के नीचे चिपका देते थे। अधिकांशतः कबूतरों का प्रयोग गुप्त संदेश भेजने के लिए किया जाता था।

भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सर्वप्रथम सन् 1764-1766 में मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में डाकघरों की स्थापना की थी। तब 100 मील (160 कि.मी.) की दूरी तक एक पत्र पहुँचाने के लिए दो आना (रुपए का आठवाँ भाग) देने पड़ते थे। सन् 1839 में उत्तर-पश्चिम राज्यों में, 1860 में पंजाब में, 1861 में बर्मा में, 1866 में केन्द्रीय प्रदेशों तथा 1869 में सिंध प्रांत में डाक-व्यवस्था आरंभ हो गई थी। इसके अतिरिक्त सन् 1873 में असम, 1877 में बिहार, 1878 में पूर्वी बंगाल और 1879 में थी। आज भारत में (डाकघर) हैं। भारत आजकल तो पत्र-व्यवहा ऑफिस) 1870 में केन्द्रीय भारत में डाक की शुरूआत हो गई थी। आज में विश्व में सर्वाधिक 1,55,333 पोस्टऑफिस हैं। भारत में डाक टिकट की शुरूआत 1852 ई० से हुई थी।

आजकल तो पत्र-व्यवहार के लिए जगह-जगह डाक घर (पोस्ट एवं कोरियर के दफ्तर हैं। डाकिये का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी हमें प्रतिदिन आवश्यकता होती है। हमारे रिश्तेदार एवं मित्र आदि हमसे सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर रहते हैं। ये पोस्टमैन हमारे संदेशों को उनके पास पहुँचाते हैं और उनके संदेश हमारे घर या दफ्तर तक लाते हैं।

एक पोस्टमैन दिन में तीन-चार बार डाक निकालता है। फिर उन्हें छाँटता है, तत्पश्चात् बाँटता है। वह बहुत मेहनती होता है। वह दिन भर चिट्ठियाँ और मनीऑर्डर (धनादेश) बाँटता है। उसे परिश्रम अधिक करना पड़ता है और वेतन बहुत कम मिलता है। कई पोस्टमैन तो दिनभर पत्र बाँटने के बाद शाम को अन्य काम भी करते हैं तब जाकर उनकी आजीविका चलती है।

डाकिया द्वारा डाक भेजना हमें बहुत सस्ता पड़ता है। आज एक पोस्टकार्ड मात्र 50 पैसे का है। अतः आज भी हम केवल 50 पैसे में अपना संदेश सैकडों-हजारों किलोमीटर दूर भेज सकते हैं। हम पत्र भेजने के अलावा किताबें, समाचार-पत्र, मैगज़ीन, गिफ्ट एवं अन्य आवश्यकता का सामान भी आसानी से कम से कम पैसों में भेज सकते हैं। हालांकि सरकारी डाकघरों के अतिरिक्त आज प्राइवेट कुरियर की दुकानें भी प्रचुर मात्रा में खुल गई हैं जो सरकारी डाकघरों की अपेक्षा कई गुना अधिक पैसा लेकर हमारे संदेश या सामग्री एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज रहे हैं।

भारतीय डाकघरों में साधारण डाक के अलावा स्पीड पोस्ट की भी व्यवस्था है, जो अति शीघ्र संदेश पहुँचाती है। आज के आधुनिक और वैज्ञानिक युग में हम ई-मेल और फोन से भी बड़ी आसानी और की से अपने संदेश भेज सकते हैं। इसके बावजूद भारत की 75% जनसंख्या आज भी भारतीय पोस्टमैन (डाकिया) पर निर्भर रहती है। गावों में तो पत्रों के आदान-प्रदान का एक मात्र सहारा डाकिया ही होते हैं।

नि:संदेह पोस्टमैन हमारे जीवन का मुख्य अंग हैं। ये हमारे अपने लोग हैं हमेशा सबके काम आने वाले।

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