दक्षिणावर्ती शंख चमत्कारी क्यों है? Dakishanavriti Shankh Chamatkari kyo hai?

दक्षिणावर्ती शंख चमत्कारी क्यों है?

Dakishanavriti Shankh Chamatkari kyo hai?

बायें तरफ पेट खुलने वाले बहुतायत में उपलब्ध वामावर्त शंख की अपेक्षा दुर्लभता से उपलब्ध दक्षिण की ओर पेट खुलने वाले यानी जिनका कपाट दायें ओर हो, ऐसे दक्षिणावर्ती शंख कीमती होते हैं। ये सैकड़ों से हजारों रुपयों में मिलते हैं। इसमें लक्ष्मी का स्थायी निवास माना जाता है। भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों की ही उत्पत्ति समद्र-मंथन के समय सागर से हुई है। इस दृष्टि से एक ही पिता की सन्तान होने के कारण इसे लक्ष्मी का ही छोटा भाई कहा गया है।

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दक्षिणावर्ती शंख महामूल्यवान् और चमत्कारी माना जाता है। इसे सौभाग्य का भी प्रतीक माना गया है। इस शंख चिह्न का भगवान् विष्णु के चरण-कमल में ध्यान किया जाता है। भगवान् विष्णु के शंख का नाम ‘पांचजन्य’ है, जो दक्षिणावर्ती है। शास्त्रकारों ने दक्षिणावर्ती शंख की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है-

दक्षिणावर्तेशंखायं यस्य समनि तिष्ठति।

मंगलानि प्रकुर्वन्ते तस्य लक्ष्मी: स्वयं स्थिरा।।

चन्दनागुरुकपूरैः पूजयेद् गृहेऽन्वहम्।

स सौभाग्ये कृष्णासमो धने स्याद् धनदोपमः॥

अर्थात् ‘जिस घर में उत्तम श्वेतवर्ण दक्षिणावर्ती शंख रहता है, वहाँ सब मंगल ही मंगल होता है। लक्ष्मी स्वयं स्थिर होकर निवास करती हैं। जिस घर में चन्दन, कपूर, पुष्प, अक्षत आदि से इसकी पूजा नियमित की जाती है, वह कृष्ण के समान सौभाग्यशाली तथा धनपति बन जाता है।’

ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस शंख के सम्बन्ध में कहा गया है-

शंख चन्द्रार्कदैवत्यं मध्ये वरुणदैवतम्।

पृष्ठे प्रतापतिर्विद्यादग्रे गंगा सरस्वतीम्।।

त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि वासुदेवस्य चाज्ञया।

शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्रर्तस्मा शंखं प्रपूजयेत्॥

दर्शनेन ही शंखस्य किं पुनः स्पर्शनेन तु।

विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदयेः।।

अर्थात् ‘यह शंख चन्द्रमा और सूर्य के समान देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठभाग में ब्रह्मा और अग्रभाग में गंगा का निवास है। शंख में सारे तीर्थ विष्णु की आज्ञा से निवास करते हैं और यह कुबेरस्वरूप है। अत: इसकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके दर्शनमात्र से सभी दोष ऐसे नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्योदय होने पर बर्फ पिघल जाती है, फिर स्पर्श की तो बात ही क्या है!’

कहा जाता है कि जिसके पास दक्षिणावर्ती शंख का जोड़ा होता है, वह सदा पराक्रमी और विजयी होता है। वह सुख-समृद्धि पाता है। उसके यहाँ से दरिद्रता, असफलता पलायन कर जाती है। नियमित रूप से इसके दर्शन, विधि-विधानानुसार पूजन करने से अभीष्ट मनोरथ सिद्ध होते हैं। इसे दुकान में रखने से व्यापारवृद्धि, धन में रखने से धनवृद्धि और अन्न में रखने से अन्नवृद्धि होती है। इसीलिए इसको वैभव और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर घर के सदस्यों, वस्तुओं और कमरों में छिड़कने से अभिशाप, दुर्भाग्य, अभिचार और दुष्टग्रहों का प्रभाव नष्ट होता है। इस शंख में दूध भरकर प्राणप्रतिष्ठित महालक्ष्मी यंत्र और लक्ष्मी पर श्रद्धापूर्वक रोजाना चढाने से आकस्मिक लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। तंत्रशास्त्रों में कहा गया है कि ऊँ ह्रीं क्लीं ब्लं सुदक्षिणावर्त शंखाय नमः मंत्र का जप प्रतिदिन 108 बार करके शंख का विधिवत् पूजन किया जाये, तो श्री और यश की वृद्धि होती है, साथ ही सन्तानहीन को सन्तान का लाभ भी मिलता है।

समुद्र से उत्पन्न, चन्द्रमा के अमृतमण्डल से सिंचित, वाय, अन्तरिक्ष और ज्योतिर्मण्डल को अपने भीतर सँजोने वाला यह विशिष्ट शंख आयुवर्द्धक, शत्रुओं को निर्बल करने वाला, अज्ञान, रोग और अलक्ष्मी को दूर भगाने वाला होता है। इसका प्रयोग अर्घ्य देने के लिए विशेष तौर पर किया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस शंख को कान के पास ले जाकर सुनें, तो अपने-आप मधुरध्वनि सुनाई देती है, जिससे हृदय प्रसन्न हो जाता है।

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