History of “Soap”, “साबुन” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

साबुन

Soap

History of Soap in Hindi

History of Soap in Hindi

 

(शरीर की सफाई रखने के लिए)

विश्व के अनेक भागों में ऐसी वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो साबुन की तरह काम करती हैं। इन्हें गीले शरीर पर रगड़ने से झाग भी निकलता है और सफाई भी होती है। कुछ सदियों पूर्व तक अमेरिका के आदिवासी इस प्रकार की  वनस्पतियों का प्रयोग नहाने के लिए करते रहे। यदि हम किमोलॉस नामक द्वीप में जाएं तो हमें पता लगेगा कि इस द्वीप का निर्माण साबुन जैसे पदार्थ से ही हुआ है। उस द्वीप के निवासी वहां किसी भी जगह की मिट्टी लेकर उससे नहा भी लेते हैं और कपड़े भी धो लेते

हैं। जब वहां बारिश होती है तो एकत्र पानी में साबुन जैसा झाग बनने लगता है। कई बार तो यह झाग कई फीट ऊंचा पहुंच जाता है।

मनुष्य को गंदगी से हमेशा ही नफरत रही है। वह अपने आस-पास के अलावा स्वयं को भी साफ-सुथरा रखने का प्रयास करता रहा है। इसमें स्नान करना भी शामिल है। प्राचीनकाल में स्नान करने का तरीका आज सुनने में विचित्र लगता है। पहले लोग अपने  शरीर पर गीली राख रगड़ते थे। उसके बाद तेल लगाते थे और बाद में पानी से रगड़कर नहा लेते थे

देखने-सुनने में यह चाहे कितना भी विचित्र लगे, राख और तेल मिश्रण शरीर को उसी प्रकार स्वच्छ कर देता था जैसे आज साबुन कर देता है। हमारे देश में तो आज भी शौच-क्रिया के बाद राख से हाथ धोने को ज्यादा शुद्ध माना जाता है।

मनुष्य ने साबुन का आविष्कार बहुत जल्दी ही कर लिया था। बेबीलोन के लोगों ने पहले-पहल साबुन बनाने का प्रयास किया था। सुमेर सभ्यता के इन लोगों ने उबलते पानी में राख और ग्रीस मिलाकर उसे लगातार चलाया और बाद में उसमें ऊपर से नमक मिलाया। इस  प्रकार दही जैसा पदार्थ तैयार हो गया। यही साबुन का प्राचीन रूप था। जद यह पदार्थ ठंडा होता था तो ऊपरी हिस्सा कड़ा हो जाता था। उसे साबुन के आकार में टुकड़े-टुकड़े काटा जाता था। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे और अधिक विकसित होती गई।  

एक विचित्र सत्य यह भी है  कि यदि मनुष्य का मृत शरीर, जो जमीन में गाड़ा जाता है, एक निश्चित तापमान और नमी पर पड़ा रहे तो वह भी साबुन जैसे रसायन में परिवर्तित होने लगता है। कुछ लोग इसे ग्रेव वैक्स कहते हैं। यह कब्रों से मोम जैसे पदार्थ के रूप में निकलने लगता है।  

रासायनिक जांच के बाद पता चला है कि यह पदार्थ लगभग वैसा ही है जैसा कि बेकिंग सोडा में ग्रीज मिलाने के बाद बनता है। यह जानकारी विश्व को तब मिली जब विलियम वॉन एलेनवोगेन नामक सैनिक, जो अमेरिकी क्रान्ति में मारा गया था, की कब्र से यह विचित्र पदार्थ निकला।

लोगों ने देखा तो उन्हें लगा कि सिपाही का मृत शरीर साबुन में परिवर्तित हो गया है। बाद में उस मृत शरीर को कब्र से निकालकर अमेरिका के प्रमुख साबुन निर्माण का जो फॉर्मूला बना, उससे मनुष्य काफी कुछ सन्तुष्ट हुआ। इस कारण उसमें खास परिवर्तन नहीं हुआ। बाद  में (3000 साल के अंतराल के पश्चात्) आंद्रे पियर्स ने सन् 1789 में एक ऐसा पारदर्शी साबन बनाया, जिसके आर-पार देखा जा सकता था।

आम साबन अगर पानी में डाला जाए तो वह डब जाता है, जबकि  एक ऐसा भी साबन बनाया गया, जो तैरता ही रहता था। यह प्रयास करके नहीं, भूलवश ऐसा बन गया। हुआ यों कि प्रॉक्टर व गैंबल कम्पनी में साबुन निर्माण का काम चल रहा था। उसकी देखरेख कर रहा एक कर्मचारी भोजनावकाश पर जाने से पूर्व उस मशीन को बंद करना भूल । गया। नतीजा यह हुआ कि घोल की स्टियरिंग होती ही रही। जब कर्मचारी आया तो साबुन के बबूले बहुत ज्यादा हो गए थे और जो साबुन तैयार हुआ, वह बहुत हल्का था। पानी में उसे डालने पर वह तैरता था।

गलती से बने इस साबुन आवरी को ग्राहकों ने बहुत पसन्द किया। इसकी कम्पनी के पास इसके खूब ऑर्डर आए।

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