Swami Ramanujacharya Jayanti “स्वामी रामानुजाचार्य जयन्ती” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

स्वामी रामानुजाचार्य जयन्ती

Swami Ramanujacharya Jayanti

मद्रास (चेन्नई) नगर के समीप पैरूम्बदूर गाँव था। वहाँ केशवाचार्य नाम के एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। एक बार संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने यज्ञ किया। यज्ञ पूरा होने पर भगवान् ने उन्हें सपने में कहा- “मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूँगा!” एक वर्ष बाद केशवाचार्य के घर पुत्र ने जन्म लिया। यही रामानुज थे।

बचपन से ही बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि थे रामानुज। धर्म में रुचि थी। साधु-संत और विद्वानों के बीच बैठना उन्हें पसंद था। वे जात-पाँत के खिलाफ थे। उन्होंने सदा यही कहा कि भगवान् की भक्ति का अधिकार सबको है।

सोलह वर्ष की आयु में रामानुज का विवाह कर दिया गया। इनके विवाह के कुछ समय बाद ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। रामानुज उसके •बाद पत्नी को लेकर काँचीपुर चले गए! काँचीपुर में वे एक बहुत बड़े वेदान्ती की पाठशाला में अध्ययन करने लगे। लेकिन रामानुज की विद्वता और विचारों से इनके गुरु को ईर्ष्या हो गई। उन्हें लगने लगा कि अगर रामानुज यहाँ रहा तो उनसे अधिक नाम और प्रतिष्ठा पाएगा।

गुरु ने रामानुज को अपनी प्रगति की राह का काँटा समझ उसे दूर किया। रामानुज के प्राण संकट में डाल दिए। उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया। कहते हैं एक शिकारी दम्पति के रूप में स्वयं भगवान् ने उनकी रक्षा की। रामानुज को भी विश्वास हो गया कि शिकारी रूप में भगवान् नारायण और लक्ष्मी थे।

महापूर्ण नाम के शूद्र महात्मा से रामानुज ने दीक्षा ली! उन्हें अपना   गुरु बनाया। एक दिन रामानुज की पत्नी ने गुरु-पत्नी को शूद्र कहकर अपमानित कर दिया। कहा, “तुम हमारे गुरु की स्त्री हो तो क्या हुआ, हो तो शूद्र ।”

अपनी पत्नी की इस बात से रामानुज को अत्यन्त दुख हुआ। वे उसे उसके मायके छोड़ आए। कहा, “तू नीच-ऊँच और जात-पाँत के अभिमान में डूबी है, तेरा मुँह देखने से भी पाप लगेगा।” लौटकर रामानुज भगवान् वरदराज के मंदिर में रहने लगे। उन्होंने भगवा वस्त्र धारण कर लिए।

एक दिन अपने गुरु की आज्ञा से उन्होंने संत यामुनाचार्य से अष्टाक्षर विष्णु मंत्र ‘ओं नमो नारायणाय’ प्राप्त किया। यामुनाचार्य ने यह मंत्र किसी को भी न बताने के आदेश दिए। पर रामानुजाचार्य ने सोचा जिस मंत्र से मुक्ति होती है, कल्याण होता है तो वह आम जन को क्यों नहीं बताया जाए। उन्होंने ऐसा ही किया। गुरु के आदेश के विपरीत आम जन को वह मंत्र बता दिया ।

रामानुज की इस बात पर गुरु बहुत रुष्ट हुए। इस पर रामानुज ने कहा, “भगवान् जिस मंत्र से हजारों व्यक्तियों का कल्याण हो सकता है, वे नर्क जाने से बच सकते हैं तो फिर उस मंत्र का लाभ मैं अकेले ही क्यों उठाऊँ।” रामानुज के उत्तर से गुरु बहुत प्रसन्न हुए। अपने हृदय से लगाते हुए बोले, “आज तुमने मुझे जात-पाँत और ऊँच-नीच की भावना से ऊपर उठने का ज्ञान दे दिया! तुम सचमुच महान हो। मुझे क्षमा करो।”

रामानुज ने श्रीभाष्य, द्राविड़ वेद, वेदांत दीप, वेदांत सार व वेदार्थ-संग्रह तथा गीता-भाष्य की रचना की। सारे भारत की यात्रा की। महान संत-महात्माओं से शास्त्रार्थ किया। वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उनका कथन था कि गुणों से मनुष्य का कल्याण होता है जाति से नहीं। जाति के झूठे अहंकार से चूर व्यक्ति मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है।

अपनी अमृत वाणी से लोगों को भक्ति और ज्ञान का संदेश देते। एक सौ बीस वर्ष तक धरती पर निवास करते हुए ईसवी सन् 1130 में, माघ शुक्ला दशमी को उन्होंने महाप्रयाण किया।

रामानुजाचार्य जैसे जात-पाँत का भेदभाव मिटाने वाले, धर्म के प्रति लोगों में आस्था पैदा करने वाले संत की जयन्ती मनाकर उनके आदर्शों का प्रचार-प्रसार व पालन किया जाए।

कैसे मनाएँ स्वामी रामानुजाचार्य जयन्ती

How to celebrate Swami Ramanujacharya Jayanti

  1. आयोजन स्थल को सजाएँ।
  2. रामानुजाचार्य की तस्वीर के आगे दीप जलाएँ। माल्यार्पण करें।
  3. रामानुजाचार्य वर्गभेद और जातिभेद के खिलाफ थे। अतः उनकी जीवनी में से इस विषय से सम्बन्धित संस्मरण व घटनाएँ बच्चों को सुनाएँ। इस विषय पर कहे गए उनके महत्वपूर्ण वाक्य पोस्टरों पर लिखकर लगाएँ।
  4. उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों की सूची लगाएँ ।
  5. महात्मा बुद्ध, ईसा और गांधी भी भेदभाव और जात-पाँत के खिलाफ थे, इस विषय से संबंधित उनके संस्मरण भी बच्चों को सुनाए जा सकते हैं। इससे बच्चों के मन से भेद-भाव की भावना दूर होगी।

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