शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाते हैं? Shanidev ko Tel kyo chadhate hai?

शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाते हैं ?

Shanidev ko Tel kyo chadhate hai?

व्यक्ति के जीवन पर समस्त ग्रहों का प्रभाव कुण्डली के बारह भावों में उनकी स्थिति एवं दशा-अन्तर्दशा के अनुसार आता है। इनमें से केवल शनि को छोड़ दिया जाये, तो आमतौर पर व्यक्ति किसी ग्रह के प्रभाव से अधिक भयभीत अथवा आतंकित नहीं होता है। किसी की राशि में शनि का प्रवेश हो, उससे पहले ही जातक पर उनकी दृष्टि का प्रभाव आने लगता है। प्राय: ऐसा समझा जाता है कि शनि एक क्रूर ग्रह है, जो अधिकांशत: कष्टकारक प्रभाव ही देता है।

Pauranik-Kahta

शनि से आम व्यक्ति इसलिए भी भयभीत रहता है कि एक राशि में सर्वाधिक समय तक इसका प्रभाव रहता है। जातक पर साढे सात वर्ष तक साढ़ेसाती का प्रभाव रहता है। इसके बाद ढैय्या का फल, इसके बाद कुण्डली में शनि की स्थिति आदि सब कुछ मिलाकर जातक को शनिदेव सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। शनि का जातकों पर इतना अधिक प्रभाव देखा जाता है कि वे शनि की दृष्टि से बचने के लिए अनेक उपाय करते रहते हैं। इसमें एक उपाय अत्यन्त विख्यात है। वह उपाय है प्रत्येक शनिवार को शनिदेव को तेल चढ़ाना। भावना यही रहती है कि इससे शनिदेव के कोप का प्रभाव उनके ऊपर नहीं आएगा, किन्तु अधिकांश व्यक्ति यह नहीं जानते कि शनिवार को शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है और इससे क्या लाभ प्राप्त होगा?

शनिदेव के अभिमान के मान-मर्दन की एक कथा है। शनिदेव जानते थे कि सभी उनसे बहुत आधक भयभीत रहते हैं। देवगण भी उनसे भय खाते हैं। उनसे दृष्टि मिलाने का साहस किसी में नहीं होता था। जिस जातक की राशि पर वे आ जाते हैं, भय के मारे उसका बुरा हाल हो जाता है।

जिस समय की यह कथा है, उस समय हनुमान जी अत्यन्त वृद्ध हो गये थे। वह प्रतिदिन रामसेतु के समीप समुद्र के किनारे चट्टानों के मध्य बैठ जाते। उस समय वे श्रीराम का नाम जपते थे और इन्हीं में वे खोये-खोये रहते। एक दिन वे इसी प्रकार एक चट्टान पर पीठ टिकाये शांतचित्त से बैठे श्रीराम के विचारों में खोये हुए थे। तभी वहाँ घमते हुए शनिदेव आ गये। उन्होंने देखा कि उनके आने की आहट सुनने के बाद भी इस वानर ने उनकी तरफ किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया और परी तरह से शांत एवं निश्चल बैठा हुआ था।

एक वानर को इस प्रकार निडर देखकर शनि को क्रोध आ गया। वे एकदम से वृद्ध हनुमान् के ठीक सामने आ गये। उनका विशाल काला शरीर और चेहरे के क्रूर भाव उनको और अधिक भयानक बना रहे थे। शनि को अपनी शक्ति और प्रभाव का बहुत घमण्ड था, इसलिए उन्होंने अशिष्टता से हनुमान जी से कहा-‘अरे ओ वानर! तू कौन है और यहाँ क्या कर रहा है?’ हनुमान जी ने शांति के साथ उत्तर दिया-‘मैं श्रीराम का सेवक और दास हनुमान् हूँ और इस समय अपने प्रभु श्रीराम के ही ध्यान में खोया हुआ हूँ। तुम कौन हो…?’

इस पर शनि ने अशिष्टतापूर्वक कहा कि ‘मैं इसी समय तेरे साथ युद्ध करना चाहता हूँ। अत: उठ और मेरे साथ युद्ध कर। मैं सूर्य का परम प्रतापी और तेजस्वी पुत्र शनि हूँ। मेरे आने की आहट सुनने मात्र से अच्छे से अच्छे योद्धा मेरे आगे से हट जाते हैं, किन्तु तूने मेरा अनादर किया है। मेरे आने की आहट सुनने के बाद भी न तो तू मेरे से डरा और न मेरे लिए रास्ता छोड़ा।’

हनुमान जी ने विनयपूर्वक उत्तर दिया-‘आप वास्तव में महान् प्रतापी हैं। मैं इस समय वृद्ध हो गया हूँ। मैं अपने प्रभु श्रीराम के अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय में विचार नहीं करना चाहता। इसलिए मुझे क्षमा करें। आप यहाँ से चले जायें और मेरे ध्यान में व्यर्थ का व्यवधान नहीं डालें।’

हनुमान जी की विनयशीलता को शनि ने उनकी कमजोरी समझ लिया। इसलिए और अधिक गर्व के साथ बोले-‘मैं जहाँ जाता हूँ, वहाँ से ऐसे ही नहीं लौटता। अपने आने का प्रभाव मैं वहाँ अवश्य छोड़ता हूँ। अब जब मैं यहाँ आ गया हूँ, तो यहाँ से भी ऐसे नहीं जाने वाला नहीं हूँ। अब व्यर्थ की बातें न कर ओर उठ कर मेरे साथ युद्ध कर।’

शनि की उद्दण्डता कम ही नहीं हो रही थी। इतना कहने के पश्चात् शनि ने अभद्र और अपमानजनक रूप से हनुमान जी का हाथ पकड़ कर खड़ा करने का प्रयास किया। उसी समय हनुमान् जी ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और मन ही मन विचार किया कि यह ऐसे नहीं मानेगा। कुछ तो करना ही होगा। तभी उन्होंने अपनी पूँछ बढ़ाकर शनि को उसमें लपेटना शुरू कर दिया। शनि कुछ समझ सकें, इससे पहले ही हनुमान् ने शनि को अपनी पूँछ में इतना कस लिया कि वह हिल भी नहीं पा रहे थे। उसी समय उन्हें ज्ञात हो गया था कि हनुमान् जी की शक्ति के आगे उनकी शक्ति कुछ नहीं है। वह पूँछ की पकड़ से छटपटाने लगे। वह गिड़गिड़ाते हुए छोड़ने की पुकार करने लगे। उन्हें लगा कि उनके प्राण ही निकल जाएँगे।

हनुमान जी ने उनकी बात को सुना, फिर मुस्कुराते हुए बोले-‘रामसेत की परिक्रमा करने का अब मेरा समय हो गया है। आइए, आपको भी रामसेतु की परिक्रमा करवा दूँ।’ इसके बाद ये तेजी से सेतु पर चलने लगे। उनकी विशाल पूँछ वहाँ पड़े हुए बड़े-बड़े पत्थरों एवं चटटानों से टकराने लगी। उसमें लिपटे हुए शनि भी पत्थरों से टकरा रहे थे और चीख रहे थे। हनुमान जी उन्हें सबक सिखाने के लिए अपनी पूँछ को कभी-कभी जोर से पटक देते।

जब रामसेतु का एक चक्कर पूरा हो गया, तो हनुमान् जी रुक गये। पूँछ में बँधे शनि की तरफ देखा। पत्थरों एवं वृक्षों से टकराने के कारण उनका शरीर अनेक चोटें लगने के कारण रक्त में लाल हो रहा था। पीड़ा से वह बहुत अधिक कराह रहे थे और कह रहे थे–’मैंने आपके साथ जितनी उदण्डता की थी, उसका फल मुझे प्राप्त हो गया है। अब मुझे छोड़ दें, मुझे क्षमा कर दें।’

हनुमान जी ने कहा-‘छोड़ तो मैं तुम्हें दूंगा, किन्तु पहले तुम्हें वचन देना होगा कि मेरे किसी भी भक्त की राशि पर तुम नहीं आओगे। अगर आओगे भी, तो उसे अपनी क्रूरता नहीं दिखाओगे, उसे व्यर्थ परेशान नहीं करोगे। अगर वचन देने के बाद भी तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दण्ड दूंगा, इतना समझ लो।’

पीड़ा से छटपटाते हुए शनि ने कहा-‘मैं वचन देता हूँ कि कभी आपके भक्त की राशि पर नहीं आऊँगा। अगर गोचरवश आना पड़ेगा, तो भी मैं अपनी पीड़ा से उन्हें मुक्त रखूगा। आप मेरे वचन का विश्वास कर सकते हैं। कृपया अब मुझे मुक्त कर दें।’

इसके बाद हनुमान जी ने अपनी पूँछ का बंधन ढीला किया और शनि को मुक्त कर दिया। शनिदेव मुक्त तो हो गये थे, किन्तु उनका शरीर चोटों से उत्पन्न पीड़ा से दर्द कर रहा था। इससे उनमें व्याकुलता बढ़ने लगी थी। इस पीड़ा से मुक्ति के लिए वे लोगों से तेल माँगने लगे। भयवश लोगों ने शनि को तेल देना प्रारम्भ कर दिया। तब शनि ने उनको वचन दिया-‘जिस-जिस व्यक्ति ने मुझे तेल का दान दिया है, उसे मैं कभी परेशान नहीं करूँगा। आगे भी जो मेरे दिवस में शनिवार को मुझे तेल देगा, उस पर मेरी कृपा हमेशा बनी रहेगी।’ इस घटना के बाद शनिवार को लोगों ने शनिदेव को तेल चढ़ाना प्रारम्भ कर दिया और आज तक यह तेल चढ़ाने की परिपाटी बनी हुई है।

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