Mira Jayanti “मीरा जयन्ती” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

मीरा जयन्ती

Mira Jayanti

मीरा संत शिरोमणि थी, महान कृष्णभक्त! कृष्ण की दीवानी, अनन्त साधिका थी। मीरा का नाम, उसका यश, उसकी भक्ति के गीत केवल राजस्थान में ही नहीं गाए जाते। भारत की सीमा पार भी जहाँ-जहाँ कृष्ण के भक्त हैं वहाँ-वहाँ मीरा है। मीरा का नाम पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ लिया जाता है।

राजस्थान के नागौर जिले में विक्रमी संवत् 1561 में श्रावण शुक्ला प्रथमा को मेड़ता सिटी में मीरा का जन्म हुआ था। जन्म से ही सुन्दर मीरा मेड़ता के राव दूदा के छोटे पुत्र रतनसिंह की पुत्री थी। अति सुन्दर होने के कारण ही इसका नाम सूर्य के आधार पर मिहिर रखा गया।

मीरा बहुत कम उम्र में ही पिता के प्यार से वंचित हो गई। लालन-पालन दादा राव दूदा के संरक्षण में हुआ। भाव-भक्ति और पूजा-अर्चना के संस्कार मीरा को बचपन में मिल गए थे। राव दूदा ने भगवान् चारभुजानाथ मंदिर बनवाया था। एक दिन मीरा भगवान् चारभुजानाथ के मंदिर में दूध का प्रसाद चढ़ाने गई। दूध का कटोरा भगवान् की मूर्ति के आगे रखकर दूध ग्रहण करने का आग्रह अनुरोध किया।

मूर्ति को निश्चल देख मीरा उदास हो गई। विलाप करते हुए बार-बार अनुरोध करती रही । मीरा का निश्छल प्रेम भगवान् को द्रवित कर गया। भगवान् ने दूध का कटोरा उठाया और प्रसाद ग्रहण कर लिया। मीरा खुशी से नाच उठी। जब राव दूदा को इस घटना का पता लगा तो बस, उसी दिन से सारा परिवार कृष्णभक्ति के मार्ग पर चल पड़ा।

मीरा एक महान भक्त कवयित्री थी। आज सैकड़ों वर्षों बाद भी उसके भजन घर-घर में सुने-गुनगुनाए जाते हैं।

मीरा का भी विवाह हुआ पर उसका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा। जल्दी ही विधवा हो गई। उसका मन सांसारिक सुखों से सदा विरक्त रहा। महलों के सुखों ने उसे कभी नहीं ललचाया। वह तो खुलेआम कहती थी, “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई” सचमुच उसने कृष्ण के अलावा किसी से नेह-नाता नहीं रखा। वह तो स्वयं को कृष्ण की दासी मानती थी। वह कृष्ण को यही कहती, “म्हानें चाकर राखोजी, चाकर रहस्यूँ, बाग लगास्यूँ, नित उठ दर्शन पास्यूँ।” वह तो कृष्ण की दीवानी थी।

उसकी कृष्णभक्ति का, उसकी दीवानगी का परिवार में और समाज में भारी विरोध होता रहा। वह हर कष्ट, हर जुल्म को सहती रही। जहर का प्याला भी पी गई तो साँप को गले का हार भी बना लिया। उसका रक्षक तो उसका साँवरिया था न! उसका कोई क्या बिगाड़ता? आखिर जब जुल्मों की पराकाष्ठा हो गई तो हाथ में इकतारा लेकर महलों से निकल पड़ी। तीरथ-तीरथ घूमती रही। संतों-महात्माओं के बीच बैठती-उठती रही । मन को संतोष मिलता तो साँवरे के सामने बैठकर उसके भजन गाने में लीन हो जाती, सुधबुध खो देती। कुल की मर्यादा और राजपूत धर्म की ओट में उस पर जितने भी जुल्म परिवार के लोग कर सके वह सब कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठकर भूल जाती थी।

उस सामंती युग में भी मीरा का साहस, उसके अटल निश्चय और भक्ति का यह स्वरूप एक क्रांतिकारी कदम था। उसने सड़ी-गली परम्पराओं को तोड़ा। स्त्री को पाँव की जूती या भोग की वस्तु मानने वाले युग अपनी भक्ति-भावना से, अपने धैर्य और कृष्ण में श्रद्धा और विश्वास के कारण ऐसी मान्यताओं को ठोकर मारने का अदम्य साहस दिखाया। मीरा आज ही नहीं युगों-युगों तक अमर रहेगी, उसकी कृष्ण-भक्ति अमर रहेगी।

कैसे मनाएँ मीरा जयन्ती

How to celebrate Mira Jayanti

  1. मीरा की तस्वीर लगाएँ। कृष्ण की तस्वीर भी रखें। 2. माल्यार्पण करें, दीप जलाएँ ।
  2. मीरा के जीवन की प्रमुख घटनाएँ बच्चों को सुनाएँ, विशेषकर बचपन की ।
  3. मीरा की भक्ति भावना, उसके साहस और दृढ़ता व सहनशीलता जैसे गुणों को बच्चों के सामने विस्तार से प्रस्तुत करें।
  4. मीरा के जीवन पर आधारित नाटिका का मंचन करें।
  5. मीरा के भजन गायन की प्रतियोगिता रखें।
  6. मीरा के गीतों के साथ भक्तिनृत्य का आयोजन भी किया जा सकता है।

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