इंदिरा गांधी
Indira Gandhi
लोकमान्य तिलक ने “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ का नारा दिया और सुभाष चन्द्र बोस ने “दिल्ली चलो” का आह्वान किया। महात्मा गांधी ने आजादी दिलवाई और जवाहर लाल ने आजादी को दृढ़ और समृद्ध करके हमें विश्व रंगमंच पर समुचित सम्मान दिलवाया। दीर्घकाल के पश्चात् भारत को प्रथम बार 1971 ई. में, भारत-पाक युद्ध में विजय दिलाने का बहुत कुछ श्रेय इंदिरा जी के कुशल नेतृत्व को जाता है। पोखरन में परमाणु विस्फोट परीक्षण और अंतरिक्ष-विज्ञान में भारत का प्रवेश इन्हीं की सूझ-बूझ के कीर्तिमान हैं।
इंदिरा जी का जन्म उसी दिन हुआ, जिस दिन लेनिन ने रूस में जारशाही के विरूद्ध जनक्रांति का बिगुल बजाया, वह ऐतिहासिक दिन था, 19 नवम्बर 1917 ई.। वें पंडित मोतीलाल जी की पोती और पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की पुत्री थी। उनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हुई। इसी से उनके चरित्र में ओजस्विता, दूरदर्शिता और साहस का अद्भुत समन्वय मिलता है। इंदिरा जी कहती थी, “मुझे यह याद ही नहीं कि मैं खिलौनों से खेली हूँ या नहीं। मेरा जीवन छह वर्ष की अवस्था से ही प्रारंभ हो गया था।” जब वे बालिका थी और स्वतंत्रता आंदोलन जोरों पर था, तो परिवार के सभी सदस्य उसमें कूद पड़े थे । पहले से ही कांग्रेस में थे। गांधी जी के आह्वान पर इंदिरा जी ता-पिता भी कूद पड़े थे। इंदिरा जी को प्रारंभ में शांति निकेतन की “विश्वभारती” में पढ़ने के लिए भेजा गया। जब उनकी माता को चिकित्सा के लिए उनके पिता उन्हें स्विट्जरलैंड ले गए, तो वे इंदिरा जी को भी साथ लेते गए और वहीं एक अच्छे विद्यालय में उनका दाखिला करा दिया। बाद में उन्होंने आक्सफोर्ड में भी शिक्षा प्राप्त की, किंतु वास्तविक शिक्षा स्वयं नेहरू जी ने उन्हें जेल से चिटिठ्यां भेज-भेजकर और देश विदेश की यात्राओं में अपने साथ ले जाकर दी। 1942 के तूफानी दिनों में इंदिरा जी का विवाह श्री फिरोज गांधी से हुआ।
21 वर्ष की अवस्था में वे कांग्रेस की सदस्या बनी। नेहरू जी की मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनी। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने जो कार्य किये, वह स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं। उन्होंने भारत को समृद्धि के द्वार पर पहुँचा दिया तथा उन्हें विश्व रंग मंच का प्रमुख नेता बना दिया। उनकी महान सेवाओं के कारण उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान “भारतरत्न” की उपाधि से विभूषित किया गया। राजनीति में, इंदिरा जी कांग्रेस पार्टी की सदस्य बनकर 1938 में आई। स्वंतत्रता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल ही के काम में हाथ बँटाने लगी। उनके साथ देश-विदेश में प्रायः सभी महत्वपर्ण यात्राओं में रहकर उन्होंने प्रशासन व कटनीति की बारीकियाँ सीखी और विश्व के शीर्षस्थ राजनीतिज्ञों से परिचय प्राप्त किया।
नेहरू जी के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में इन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का पद संभाला। जनवरी, 1966 में शास्त्री जी की असामयिक मृत्यु के बाद देश का प्रधानमंत्री पद इंदिरा जी के हाथों में सौंपा गया। तब से 1977-80 के तीन वर्षों को छोड़कर, वे आजीवन प्रधानमंत्री रहीं। 31 अक्टूबर, 1984 को एक विश्वस्त अंग रक्षक ने विश्वासघात कर इनकी जीवन-लीला समाप्त कर दी। जो गोलियाँ इनकी रक्षा के लिए उसे दी गई थी. वे इन्हीं की हत्या के काम आई।
उनके नेतृत्व में देश ने बहुमुखी प्रगति की। यद्यपि उनका आदर्श वाक्य ‘गरीबी हटाओं’ पूर्णतः सफल नहीं हुआ, पर गरीबी हटाने की दिशा में उनके प्रयत्नों के दूरगामी परिणाम हुए। भारत के प्रमुख उद्योग कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति से उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई। इंदिरा जी की अनेक उपलब्धियों में प्रमुख हैं, भूतपूर्व नरेशों की पेंशन बंद करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, औद्योगिक
विस्तार, कृषि उत्पादर में वृद्धि, निर्यात में वृद्धि, युद्धों में सफलता, बंगलादेश का निर्माण, अणुशक्ति का विस्फोट, अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के कदम उभिन ध्रुव की खोजें आदि।
इंदिरा जी को इसलिए अधिक याद किया जाएगा, क्योंकि उनके नेतृत्व मे विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र मे देश ने अकल्पनीय प्रगति की। दक्षिणी ध्रव में भारत ने अपनी प्रयोगशाला स्थापित की। अणु-शक्ति के शान्तिपूर्ण उपयोग के लिए पोखरण में विस्फोट किया गया। अप्रैल 1984 में भारत ने प्रथम बार अंतरिक्ष में कदम रखा। इंदिरा जी इन कामों की देख-रेख व्यक्तिगत रूचि लेकर करती थीं। गरीबी को देखकर वे द्रवित हो जाती थीं। वन्य जीवन और पर्यावरण को बचाने के लिए वे सबसे आगे रहती थीं। देश-विदेश के कलाकारों तथा साहित्यकारों से मिलने का समय निकाल लेती थीं।
इंदिरा जी के दृढ़ निश्चय, कुछ-न-कुछ देश के हित में करने के स्वभाव से उनके अनेक विरोधी थे। प्रजातंत्र में रचनात्मक विरोध का अधिकार भी है। कोई मनुष्य न गुणों का भंडार हो सकता है न अवगुणों का। उग्रवाद से जूझना सरल कार्य नहीं। पंजाब में उग्रवाद से निपटने के लिए उन्होंने जो कदम उठाया, वह मजबूरी में उठाया गया कदम था। उग्रवाद के विष ने अंततः उनकी जान भी ले ली। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व और देश-निष्ठा के कारण इंदिरा गांधी का नाम सदैव अमर रहेगा।