टाइपराइटर
Typewriter
(पाठ्य सामग्री को लिपिबद्ध करने के लिए)
शोल्स द्वारा निर्मित टाइपराइटर की यह उपलब्धि रही कि उसमें जैसा की-बोर्ड था, लगभग वैसा ही की-बोर्ड अब भी प्रयुक्त होता है। शोल्स के उस टाइपराइटर को व्यापारिक स्तर पर जेम्स डेसमोर ने उसी वर्ष (सन् 1873 में) न्यूयॉर्क में बनाया और उन्हीं दिनों न्यूयॉर्क की हैनोवर स्ट्रीट पर टाइपराइटर की पहली दुकान खोली, जिसे दुनिया में टाइपराइटर की पहली दुकान माना गया। फिर तो बड़े पैमाने पर टाइपराइटर बनाने तथा बेचने के लिए शोल्स और डेसमोर ने ‘रेमिंग्टन’ नामक एक कम्पनी से अनुबंध किया। उसके कुछ ही समय के अन्दर दुनिया के अनेक देशों में टाइपराइटर की खट-खट की आवाज गूंजने लगी।
कुछ साल पहले तक, जब कम्प्यूटर का इतना अधिक प्रचलन नहीं ‘हुआ था, किसी पाठ्य सामग्री को सुपठित रूप में लिपिबद्ध करने के लिए लोगों को टाइपराइटर का ही सहारा लेना पड़ता था। टाइपराइटर के आविष्कारक और आविष्कार काल के बारे में थोड़ा विवाद रहा है। उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, दुनिया का पहला इपराइटर सन् 1808 में इटली के पेलोयोन कुरो नामक एक व्यक्ति ने बनाया था और अपनी नेत्रहीन प्रेमिका काटेस कैरोलोना ऊँटोनो को वह टाइपराइटर उपहार स्वरूप भेंट किया था। दोनों ने उस पर टाइप करना सीखा और उसी पर टाइप करके अपना प्रेम पत्र तुरी के पास भेजती रही। हां, इह बात का उल्लेख कहें नहीं मिलता कि तुरी ने वह इपराइटर कैसे बनाया। आज भी वैते पन्द्रह-सोलह टाइटर इटली के संग्रहालय में लोगों के दर्शनार्थ रखे हुए हैं। आज के टाइपराइटर के रूप-रंग से सवय भिन्न उन टाइपराइटरों के की-बोर्ड में कुल 27 बटन टन होते थे। इनमें इटली भाषा के 23 अक्षर और अल्प विराम, पूर्ण विराम के चार चिन्ह थे।
उक्त टाइपराइटर को अत्यंत उपयोगी यंत्र मानकर अनेक लोगों ने ऐसे टाइपराइटर को बनाने का प्रयास किया, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए। सन् 1808 के बाद पैसठ वर्षों में ऐसे लोगों की संख्या चास से ऊपर पहुंच गई। सन् 1873 में क्रिस्टोफर तेथम शोल्स ने पहला यावहारिक टाइपराइटर बनाने में सफलता प्राप्त की। यह बात रहस्य के आवरण में छिपी हुई है कि इपराइटर का आविष्कारक शोल्स को ही क्यों माना गया, तुरी को क्यों नहीं, जबकि सबसे पहले तुरी ने ही टाइपराइटर बनाया था। इसका एक कारण शायद यह रहा हो कि शोल्स ने इसे सार्वजनिक किया था, जबकि तुरी ने ऐसा नहीं किया; अपनी प्रेमिका को देने मात्र के लिए उसने इसे बनाया था।
रेमिंग्टन कम्पनी द्वारा सन् 1873 में टाइपराइटर का उत्पादन प्रारम्भ करने के अगले ही वर्ष अंग्रेजो के प्रसिद्ध लेखक मार्ग ट्वेन ने बोस्टन शहर के बाजार में एकदुकान पर से एक टाइपराइटर खरीदा और अपने घर ले गए। कहा जाता है कि उनकी पुस्तक ‘लाइफ ऑन मिसीसिपी की पांडुलिपि दुनिया की ऐसी पहली पांडुलिपि थी, जो टाइप की हुई थी।
लगभग एक सौ तीस वर्षों (और यदि सन् 1808 में तुरी द्वारा बनाए गए टाइपराइटर को मानें तो लगभग दो सौ वर्षों में टाइपराइटर में कई तरह के सुधार किए गए हैं। जैसे-जेम्स डेसमोर द्वारा बनाए गए टाइपराइटर में ही दो बड़े दोष थे; पहला, उसमें अंग्रेजी के केवल बड़े (कैपिटल) अक्षर ही थे, छोटे (स्मॉल) अक्षर नहीं और दूसरा, टाइप करने के दौरान टाइप की जा रही पाठ्य सामग्री को पढ़ा नहीं जा सकता था। ऐसे छोटे-बड़े कई अन्य दोष भी थे। उन सभी को समय-समय पर टूर किया गया। आज से चालीस वर्ष पहले (सन् 1965 के आस-पास) ही इंग्लैंड में ऐसा टाइपराइटर बनाया जा चुका है, जिसे एक ब्रीफकेस में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है। सन् 1985 के आस-पास तो हमारे देश में ही इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर बनाया गया और बेचा जाने लगा। आज जो कम्प्यूटर हमारे दैनिक जीवन का एकअंग बन चुका है, उसका की-बोर्ड निर्धारित करने में टाइपराइटर का की-बोर्ड ही सहायक रहा है।