History of “Television”, “टेलीविजन” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

टेलीविजन

Television 

History of Television in Hindi

History of Television in Hindi

 

(मनोरंजन एवं ज्ञान-विज्ञान के लिए)

 

आज टेलीविजन आबालवृद्ध नारी-नर-सभी के बीच खासा लोकप्रिय है। हर व्यक्ति प्रतिदिन एक-दो घंटे तो टेलीविजन अवश्य देखता है। यदि व्यक्ति की औसत आयु सत्तर वर्ष मानी जाए तो वह पूरे जीवन में सात-आठ वर्ष टी.वी. अवश्य देखता है। प्राचीनकाल से ही मनुष्य की  कल्पना रही है कि वह घर बैठे दूर की चीज देख और पढ़ ले। इस दिशा में पहला कदम सन् 1862 में तब उठा जब इटली के एक पादरी आबे कासेली ने टेलीग्राफ की तारों पर तसवीर भेजने का इंतजाम कर लिया। इस संयंत्र से दूर की तसवीरें और भेजने का इंतजाम कर लिया।

इसके साथ फोटो इलेक्ट्रिक प्रभाव का भी पता चला तथा प्रकाश की किरणों से विद्युतधारा उत्पन्न करना सम्भव हो गया। रोएंटजेन द्वारा एक्स-रे का आविष्कार हुआ और उसके बाद एक ट्यूब बनाई गई, जिस पर इलेक्ट्रॉन की बौछार से प्रकाश उत्पन्न करना सम्भव हो गया।

सन् 1991 से 30 के दशक में अनेक लोग टेलीविजन तैयार करने में जुट गए।

इंग्लैंड में जॉन बेयर्ड, अमेरिका में फिलो फार्क्सवर्थ तथा रूसी वैज्ञानिक ब्लादीमीर जोरकिन अलग-अलग जगह अलग-अलग प्रयासों में जुटे थे।

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सन् 1924 में जॉन बेयर्ड अपने उपकरण के विकास में जुटा था, जिसे वह टेलीविजर के नाम से पुकारता था। उसके उपकरण में एक खाली बिस्कुट का डिब्बा, सुइयां, एक मोटर साइकिल की लाइट का लेंस आदि थे। इस अजीबोगरीब उपकरण की सहायता से फरवरी 1924 में  बेयर्ड ने अपने टेलीविजन के परदे पर एक धुंधली तसवीर लाने में सफलता प्राप्त कर ली। इस पहले टी.वी. में दस फीट दूर से कैमरा द्वारा खींची गई तसवीर ट्रांसमिट की गई थी।

जब असम्भव माना जाने वाला टेलीविजन सम्भव हो गया तो जॉन बेयर्ड को एक दुर्घटना  का सामना करना पड़ा। एक बड़े विस्फोट के कारण उसकी प्रयोगशाला नष्ट हो गई। अब उसने एक छोटे से कमरे में प्रयोग करना प्रारम्भ किया।

 अक्तूबर 1925 में बेयर्ड को एक और सफलता मिली। उसने कैमरे के सामने एक चित्र रखा और उसे वहां से प्रसारित किया।  जब उसने अपने रिसीवर को सेट किया तो पाया कि वह चित्र रिसीवर में आ रहा है।

जॉन बेयर्ड की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अब उसने फैसला किया कि वह वास्तविक व्यक्ति की तसवीर ट्रांसमिट करेगा। वह भागकर नीचे पहुंचा और किसी उपयुक्त व्यक्ति को  तलाशने लगा। उसने पन्द्रह वर्ष का एक लड़का विलियम रेंटन मिला। उसे किसी तरह पकड़कर वह अपने वर्कशॉप में ले आया।

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बेयर्ड ने विलियम को ट्रांसमीटर के कैमरे के सामने बैठाया और दूसरे कमरे में जाकर अपने टेलीविजन की स्क्रीन को सेट करने लगा; पर स्क्रीन लगातार खाली आ रहा था। परेशान बेयर्ड वापस कैमरा वाले कमरे में आया तो देखा कि वह लड़का तेज रोशनी से डरकर एक किनारे अलग खड़ा हो गया था। बेयर्ड ने उस लड़के को कुछ रुपए दिए और उसे पुनः कैमरे के सामने खड़ा किया। जब वह वापस दूसरे कमरे में गया तो उस लड़के का चेहरा स्क्रीन पर साफ दिखाई दे रहा था। इस प्रकार टेलीविजन के परदे पर आने की परम्परा रिश्वत लेकर प्रारम्भ हुई।

पर जॉन बेयर्ड के टेलीविजन में तमाम खामियां थीं। बाद में अमेरिकी वैज्ञानिक फिलो फार्क्सवर्थ तथा ब्लादीमीर जोरकिन ने उत्कृष्टं संयंत्र बनाया और चलाया। जॉन बेयर्ड को टेलीविजन का काम छोड़कर दूसरा काम प्रारम्भ करना पड़ा। दुनिया को मनोरंजन का अनोखा साधन  प्रदान करने वाला जॉन बेयर्ड अंतिम दिनों में दुःखी रहा। उसका देहान्त अल्पायु में ही हो गया।

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पर टेलीविजन के निर्माण में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति हुई। बने-बनाए टी.वी. मिलने लगे और ऐसी किटे भी मिलने लगीं, जिन्हें आदमी खुद जोड़ सकता था। ये किटें मात्र 36 डॉलर में उपलब्ध होने लगीं, जबकि बने-बनाए टी.वी. 80 से 160 डॉलर में मिलते थे। सन् 1931 में ही अमेरिका में 30,000 टी.वी. सेट उपलब्ध हो गए थे।

सन् 1941 में अमेरिका में रंगीन टी.वी. प्रसारण प्रयोग के तौर पर  प्रारम्भ हुआ था। सन् 1951 में नियमित प्रसारण होने लगा। बाद में सीधा प्रसारण भी प्रारम्भ हो गया। उधर भारत में सन् 1982 में एशियाई खेलों के समय रंगीन प्रसारण प्रारम्भ हुआ। एक समय ऐसा आया, जब प्रतिदिन देश के किसी न-किसी भाग में टी.वी. ट्रांसमीटर स्थापित किया जाता था।

आज टी.वी. के सौ से अधिक चैनल उपलब्ध हैं। हर प्रकार की सूचना, समाचार, मनोरंजन आदि इससे उपलब्ध हो जाते हैं। भविष्य में टी.वी. और भी उपयोगी होता चला जाएगा।

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