History of “Pencil”, “पेंसिल” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

पेंसिल

Pencil

History of Pencil in Hindi

History of Pencil in Hindi

(दैनिक जीवन में लिखर्ट में उपयोगी)

दैनिक जीवन में अमर उपयोग में आनेवाली टुस पेंसिल का आदिकार दुर्घटनावश हुआ था। हुआ यों छि 1564 ईसवी में सर्दियों के दिनों में तूफान के कारण आक का एद पेड़ गिर गया। तब लोगों ने देखा कि वहां एक काला चमकीला पदार्थ जमा है। उस पदार्थ को निकाला गया। लोगों ने उस काले पदार्थ को  लेट का नाम दिया और उससे लिखने लगे। इसके साथ एक समस्या थी कि उस पदार्थ से लिखते समय हा बुरी तरह काले हो जाते थे।

आमतौर पर पेंसिल को लेड पेंसिल कहा जाता है, पर आश्चर्य की  बात यह है कि इसमें लेड होता ही नहीं है। पेंसिल का खोल लकड़ी का होता है और इसके अंदर का काले रंग का हिस्सा क्ले और ग्रेफाइट का मिश्रण होता है।

 इसका भी समाधान निकाला गया। लोगों ने लेड के टुकड़े को चारों और रस्सी बांधकर लिखना प्रारम्भ किया। बाद में कुछ लोग उस कथित लेड को लकड़ियों के बीच फंसाकर या चमड़े में लपेटकर लिखने लगे।

सन् 1683 में जे. पीटस नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी के बीच सुराख करके उसमें बेलनाकार लेड तैयार कर डाला और विश्व की पहली पसिल बना डाली। फिर उसने इसे गोंद में अच्छी तरह चिपका भी दिया।

पेंसिल का उत्पादन बड़े पैमाने पर पहले-पहल जर्मनी में हुआ। सन 1/01 में कास्पर फेबर नामक व्यक्ति ने जर्मनी के न्यूरेमबर्ग नामक शहर में पेंसिल का उत्पादन प्रारम्भ किया। बाद में उसके बच्चों और पोतों ने  इस व्यवसाय को आगे बढ़ाया। कास्पर के एक वंशज एबर  रिहाई ने जब  जर्मनी छोड़कर अमेरिका में बसने का फैसला किया तो अपने पारिवारिक  व्यवसाय को भी अमेरिका साथ में ले गया। इस प्रकार

पेंसिल का उत्पादन  अब अमेरिका में भी होने लगा।  पेंसिल की कथा के साथ अनेक विचित्र तथ्य जुड़े हैं। पहले पेंसिल से लिखते वक्त अगर गलती हो जाती थी तो लोग ब्रेड अर्थात् रोटी से  रगड़कर गलत लिखावट मिटाते थे और फिर दोबारा लिखते थे। बाद में जब रबर आसानी से उफ्लब्ध होने लगा तो मिटाना और भी आसान हो गया। रोटी से मिटाना कठिन था, पर मिटाने के लिए रोटी का टुकड़ा लगभग दो साल तक इस्तेमाल होता रहा। रबर से मिटाने की परम्परा सन् 1752 में प्रारम्भ हो पाई, जब मैगलेन नामक फ्रांसीसी  व्यक्ति ने मिटानेवाली रबर का टुकड़ा तैयार किया। बाद में लिपमैन नामक अमेरिकी ने इसे पेंसिल के एक सिरे पर लगा दिया, जिससे लिखने वालों को आसानी हो गई।

सन् 1779 में असली लेड की खोज हुई। तब लोगों ने विश्लेषण प्रारम्भ किया कि अब तक जो लेड के नाम से जाना जाता है, वह क्या है? पता चला कि वह तो कार्बन का एक रूप है। ग्रीक भाषा में ‘ग्रेफीन का अर्थ होता है लिखना। अतः इसे लिखने वाले पदार्थ का नाम  ग्रेफाइट रख दिया गया; पर लोग पेंसिल को लेड पेंसिल ही बोलते रहे।  

पेंसिल के आकार में भी समय-समय पर परिवर्तन हुआ। चमड़े, रस्सी, धातु की पत्तियों से बांधे जाने के बाद इसे जब लकड़ी के सुराख में बंद किया जाने लगा तो पहले वर्गाकार टुकड़ा लकड़ी में डाला जाता था, बाद में गोलाकार टुकड़ा डाला जाने लगा, जैसे आज डाला जाता है। गोलाकार टुकड़ा डालने का काम जोसेफ डिक्सन नामक अमेरिकी ने प्रारम्भ किया था।  

जितनी अद्भुत पेंसिल की विकास-गाथा है, पेंसिल भी कम अद्भुत नहीं है। एक पेंसिल से अगर सीधी रेखा  खींची जाए तो वह पेंसिल पूरी तरह घिसने से पूर्व 50 किलोमीटर लंबी रेखा खींच देगी। आमतौर पर एक पेंसिल से 45,000 शब्द लिखे जा सकते हैं।

हर पेंसिल पर कुछ नंबर लिखा जाता है। यह संख्या पेंसिल के अंदर मौजूद ग्रेफाइट मिश्रण के कड़ेपन को दर्शाती है। यदि यह संख्या ज्यादा है तो समझिए कि इसमें ग्रेफाइट का मिश्रण अधिक है और अगर संख्या कम है तो समझिए कि ग्रेफाइट का मिश्रण कम है।

पेंसिल  जितनी मुलायम होगी, यह उतना ही गहरा लिखेगी।  पेंसिल का प्रयोग पृथ्वी पर ही नहीं, अंतरिक्ष और चंद्रमा पर भी बिना । किसी रूकावट के होता है, क्योकि वहां बालपेन या अन्य पेन चलते नहीं है। विश्व में हर साल अरबों पेसिलों की खपत होती है और यह खपत बढ़ती ही रहेगी।

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