History of “Mirror”, “दर्पण” Who & Where invented, Paragraph in Hindi for Class 9, Class 10 and Class 12.

दर्पण

Mirror

History of Mirror in Hindi

History of Mirror in Hindi

(प्रतिबिम्ब के लिए)

प्रकृति ने मनुष्य के लिए अनेक प्राकृतिक दर्पण प्रारम्भ में ही बना दिए थे। मनुष्य तालाब के पानी में अपनी तस्वीर देखता था। चिकने पत्थर पर भी उसे अपना प्रतिबिम्ब दिखाई दे जाता था। वह दूसरों की आंखों, विशेष रूप से पत्नी या प्रेमिका की  आंखों में भी अपना प्रतिबिम्ब देख लेता था। प्रारम्भ में मनुष्य को अपना या दूसरों का प्रतिबिम्ब देखकर डर लगा और आश्चर्य भी हुआ। दक्षिण अफ्रीका की बासुतोस जनजाति के लोगों के मन में यह डर इस प्रकार बैठ गया था कि अगर वे पानी में अपना प्रतिबिम्ब देखने  जाएंगे तो घड़ियाल उन्हें खींचकर ले जाएगा और खा जाएगा।

इसी तरह चीन के लोग घर के सामने शीशा लगाकर रखते थे, ताकि पृरात्माएं उन्हें देखकर भाग जाएं। पश्चिमी देशों में भी मान्यता थी कि इश्वर ने आदम को एक दर्पण दिया था, ताकि वह उसमें पृथ्वी पर स्थित  सभी चीजें देख सके। जब आदम की  मृत्यु हुई तो फक्त नामक एक मढ़क ने उस दर्पण पर कब्जा कर लिया और उसे एक पुराने दब हुए शहर के नीचे दबा दिया।

किसी समय जादुई-सा लगने वाला दर्पण वास्तव में जादुई तो न होता है, पर वह लोगों को आश्चर्यचकित अवश्य करता रहा है। यूनान  रोम, मिग्न तथा यहूदी लोग पॉलिश की हुई चिकनी धातु के पट्टे को दर्पण के रूप में प्रयोग करते रहे। कांसे की पट्टियां जिन पर अच्छी पॉलिश होती थी, भी दर्पण के रूप में इस्तेमाल होती रही हैं। दर्पण पर  अच्छी नक्काशी की जाती थी। कई दर्पणों में तो हैंडल भी लगाया जाता था, ताकि उन्हें पकड़ने में आसानी रहे।

 मध्ययुग में लोग स्टील या चांदी के बने और पॉलिश किए छोटे दर्पण जेव में रखते थे। महिलाएं भी अपने बेल्ट आदि में उन्हें खोंसकर चलती थीं, ताकि जरूरत पड़ने पर अपना चेहरा देख सकें। कई बार पुरुष ऐसे दर्पण अपने हैट में  भी लगाकर चलते थे।  

पंद्रहवीं सदी में ऐसे दर्पण बनाए जाने लगे, जिनके सामने शीशा और पीछे धातु होती थी। सोलहवीं सदी में वेनिस में इनका उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। पहले शीशे का एक टुकड़ा पॉलिश की हुई धातु के एक टुकड़े के साथ जोड़ दिया जाता था।  बाद में शीशे और तरल धातु को मिलाकरे एक पीस का शीशा तैयार किया जाने लगा।

बाद के समय में अनेक प्रकार के दर्पण बनाए जाने लगे। अब दर्पण आकार बड़ा करके भी दिखाने लगे। इनके अलावा शीशे वाली छत तथा दरवाजे भी बनने लगे। आज अनेक प्रतिबिम्ब दिखाने वाले दर्पण भी  उपलब्ध हैं। हाल में किए गए एक अध्ययन के अनुसार अधिकतर लोग अपनी दिनचर्या में प्रतिदिन बीस से लेकर तीस मिनट तक दर्पण के सामने  बिताते हैं।

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