रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया
Rassi Jal Gai Magar Bal Nahi Gya
एक दिन शाम को सब लोग एक साथ बैठकर चाय पी रहे थे। अमर के पिताजी बोले-“हमारे दफ्तर में एक चपरासी है। वह एक नंबर का शराबी है। पिछले महीने शराब के नशे में वह सीढ़ियों से गिर पड़ा और उसकी एक टाँग टूट गई। लेकिन अब वह फिर शराब पीने लगा है। टाँग टूटने के बाद भी वह शराब पीने से बाज नहीं आता।”
“बेटा, इसी को कहते हैं कि रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया।”दादाजी ने कहा।
“दादाजी. इस बात में रस्सी जलने का क्या मतलब है?” अमर ने पूछा। दादाजी ने समझाते हुए कहा-“बेटे, कुछ लोग अपनी गंदी आदत या | स्वभाव की वजह से तकलीफ या नुकसान उठाते हैं, लेकिन उसके बाद भी वे अपने आपको नहीं सुधारते। जैसे रस्सी जलने के बाद भी उसके बल नहीं जाते, वैसे ही उन लोगों की अकड़ नहीं जाती।”
“हमें इसकी कहानी सुनाओ न, दादाजी!” लता ने जिद-भरे स्वर में कहा। दादाजी ने कहानी शुरू की-“ एक राजा था। उसके राज्य में लोबहुत मेहनती और ईमानदार थे। लोग सुख-शांति से रहते थे। लेकिन | पड़ोसी राज्य से कुछ लोग आकर चोरी-डकैती का काम करने लगे थे।
राजा के सिपाही चोरों को पकड़कर जेल में डाल देते थे। जेल में उन्हें सजा देने की बजाय तरह-तरह के काम सिखाए जाते थे, जैसे मेज व कुर्सी बनाना, कपड़ों की कटाई-सिलाई, चाय-पकौड़े बनाना, मिट्टी के खिलौने बनाना आदि। फिर चोरों को कुछ रुपये-पैसे देकर छोड़ दिया जाता था, ताकि जेल से बाहर जाकर वे कोई काम-धंधा शुरू करें।
लेकिन जेल से बाहर निकलकर उनके मन में बैठा हुआ चोर जाग उठता और वे लोग फिर चोरी करने लगते। राजा के सिपाही उन्हें पकड़कर जेल में बंद कर देते। राजा को यह देखकर बहुत गुस्सा आया कि उन लोगों ने चोरी करना नहीं छोड़ा। राजा ने आदेश दिया कि जेल में उन्हें पत्थर कूटने का काम दिया जाए। लेकिन जेल से छूटने के बाद वे फिर चोरी करते हुए पकड़े जाते। इस बार राजा ने कहा कि चोरों को सौ-सौ कोडे मारे जाएँ। लेकिन बार-बार कठिन सजा मिलने के बाद भी उन्होंने चोरी करना नहीं छोड़ा।
एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों के साथ बैठकर इस बात पर विचार किया कि ये लोग कठिन-से-कठिन सजा मिलने के बाद भी चोरी करना क्यों नहीं छोड़ते? तब एक वृद्ध मंत्री ने कहा- ‘महाराज, चोरी करना उन लोगों का स्वभाव बन गया है। जैसे लालची व्यक्ति कभी लालच नहीं छोड़ सकता, शराबी कभी शराब पीना नहीं छोड़ सकता, घमंडी अपना घमंड नहीं त्याग सकता, ठीक वैसे ही चोर कभी चोरी करना नहीं छोड़ता, चाहे उन्हें सुधारने की कितनी ही कोशिश क्यों न की जाए।’ यह सुनकर राजा। ने कहा- ‘मंत्री जी, क्या आप अपनी बात को सिद्ध कर सकते हैं?’
कहानी सुनाते-सुनाते दादाजी कुछ सोचने लगे। फिर क्या हुआ, दादाजी?” अमर ने पूछा। दादाजी बोले-“हाँ, फिर मंत्री ने एक मजबूत रस्सी मँगवाई। रस्सी को फर्श के ऊपर रखा और उसमें आग लगा दी। जब रस्सी पूरी तरह जल गई, तब मंत्री ने कहा-‘देखिए महाराज, रस्सी तो जल गई है मगर इसके बल नहीं गए। इसी प्रकार दुष्ट को सजा मिलने पर भी वह अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता।’ राजा यह देखकर मंत्री की बात मान गया।
उसके दिमाग में बार-बार यह बात गूंजने लगी कि रस्सी जल गई मगर बल नहीं गए!” दादाजी, हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें अपनी गंदी आदतों को छोड़ देना चाहिए।” लता बोली।