एक अनार, सौ बीमार
Ek Anar, Sau Bimar
एक दिन शाम के समय अमर और लता दादाजी के साथ मंदिर गए। वहाँ उन्होंने देखा कि एक आदमी भिखारियों को कंबल बाँट रहा था। अंत में एक कंबल रह गया, लेकिन लेने वाले भिखारी बहुत संख्या में बच गए थे।
वे कंबल लेने के लिए एक-दूसरे को धक्का देने लगे। धक्का-मुक्की में भिखारी एक-दूसरे के ऊपर गिर रहे थे। “दादाजी, कंबल तो एक बचा है, लेकिन लेने वाले भिखारियों की संख्या बहुत है। अब यह कंबल किसको मिलेगा ?” अमर ने दादाजी से प्रश्न किया।
हाँ, बेटा! इसी को कहते हैं-“एक अनार, सौ बीमार” दादाजी ने उत्तर दिया।
मंदिर से घर लौटने पर लता ने दादाजी से फरमाइश की-“दादाजी आप हमें एक अनार सौ बीमार की कहानी सुनाइए।” अमर ने भी जिद की-“हाँ, दादाजी!”
“अच्छा तो सुनो!” दादाजी ने कहना शुरू किया-“एक शहर में एक बूढ़ा वेद्य था। वह अनार खिलाकर अनेक प्रकार की बीमारियों का इलाज करता था। एक बार शहर में हैजे की बीमारी फैल गई। सैकड़ों लोग बीमार पड़ गए। अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह नहीं बची।
“बूढ़े वैद्य के यहाँ भी सैकड़ों बीमार लोगों की भीड़ जमा हो गई। वैद्य एक-एक करके मरीज को बुलाता और अच्छी तरह उसकी जाँच करता। फिर अपने हाथ से उसे अनार के कुछ दाने खिला देता। बाकी बचा हुआ अनार वह मरीज को ही दे देता और कहता कि घर जाकर खा लेना। मरीजों का इलाज करते-करते शाम हो गई। अब भी वैद्य के यहाँ कम-से-कम सौ बीमार लोग लाइन में लगे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। लेकिन यह क्या? वैद्य यह देखकर हैरान रह गया कि उसके पास अब केवल एक ही अनार बचा था। उसे बहुत अफसोस हुआ। अब वह क्या करे ? कहते-कहते दादाजी रुक गए।
अमर और लता यह सुनकर उदास हो गए। वे सोचने लगे कि वैद्य एक अनार से सौ मरीजों का इलाज कैसे करेगा? अमर ने दादाजी से। पूछा-“दादाजी, फिर क्या हुआ? उस एक अनार से वैद्यजी ने उन सौ बीमार लोगों का इलाज कैसे किया?” दादाजी लंबी साँस लेकर बोले-“बेटा होना क्या था? बेचारा वैद्य लाचार हो गया। उसने अनार को अपने हाथ में लिया और सोचते सोचते उसे उलट-पलटकर देखने लगा। सहसा उसके मुंह से निकल गया है। भगवान्, हे परवरदिगार! एक अनार, सौ बीमार!’ यह सोचते हुए वैद्य उस अनार को लेकर बाहर आया और बीमार लोगों से बोला-‘भाइयो, मेरे पास इस समय यह एक ही अनार बचा है और आप सौ बीमार लोग इलाज के लिए खड़े हैं। परंतु घबराने की जरूरत नहीं है। कृपा करके कुछ देर इंतजार कीजिए। मैं और अनार मँगाता हूँ।’ इतना कहकर वैद्य अंदर चला गया। वैद्य की बात सुनकर बीमार लोग उदास हो गए। ” दादाजी ने कहानी पूरी करते हुए कहा। “दादाजी, एक बात तो है! कभी भी ऐसा मौका आने पर हमें घबराना नहीं चाहिए। बल्कि उसका उपाय करना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे वैद्यजी ने किया।” लता ने कहा।