Hindi Essay on “Vriksharopan ka Mahatva ”, “वृक्षारोपण का महत्व  ”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

वृक्षारोपण का महत्व 

Vriksharopan ka Mahatva 

हमारे देश में नहीं अपितु पूरे विश्व में भी वनों का विशेष महत्व है। वन ही प्रकृति की महान शोभा के भंडार हैं। वनों के द्वारा प्रकृति का जो रूप खिलाता है, वह मनुष्य को प्रेरित करता है। दूसरी बात यह है कि वन ही मनुष्य पशु-पक्षी, जीव-जन्तुओं आदि के आधार हैं। वन के द्वारा ही सबके स्वास्थ्य की रक्षा होती है। वन इस प्रकार से हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता है। अगर वन न रहे। तो हम नहीं रहेंगे और यदि वन रहेंगे तो हम रहेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि वन से हमारा अभिन्न सम्बन्ध है, जो निरन्तर है और सबसे बड़ा है। इस प्रकार से हमें वनों की आवश्यकता सर्वोपरि होने के कारण हमें इसकी रक्षा की भी आवश्यकता सबसे बढ़कर है।

वृक्षारोपण की आवश्यकता हमारे देश में आदिकाल से ही रही है। बड़े-बड़े. ऋषियों-मुनियों के आश्रम के वृक्ष-वन वृक्षारोपण के द्वारा ही तैयार किए गए। हैं–महाकवि कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ के अन्तर्गत महर्षि कण्व के शिष्यों के द्वारा वृक्षारोपण किए जाने का उल्लेख किया है। शकुन्तला की विदाई के समय वृक्ष के पत्तों के गिरने और उनमें नए-नए फूलों के आने का उल्लेख महाकवि ने शकुन्तला से सम्बन्धित करते हुए महर्षि कण्व के द्वारा वृक्षारोपण के महत्त्व की ओर संकेत किया गया है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि वृक्षारोपण की आवश्यकता प्राचीन काल से ही समझी जाती रही है। आज भी इसकी आवश्यकता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।

अब प्रश्न है कि वृक्षारोपण की आवश्यकता आखिर क्यों होती है ? इसके उत्तर में हम यह कह सकते हैं कि वृक्षारोपण की आवश्यकता इसीलिए होती है। कि वृक्ष सुरक्षित रहे। उनके स्थान रिक्त न हो सकें; क्योंकि अगर वृक्ष या वन नहीं रहेंगे, तो हमारा जीवन शून्य होने लगेगा। एक समय ऐसा आएगा कि हम जी भी नहीं पाएंगे। जीवन नष्ट होने का कारण यह हो जाएगा कि वनों के अभाव में आकति का संतुलन बिगड़ जायेगा। प्रकृति का संतुलन जब बिगड़ जायेगा, तब सम्पूर्ण वातावरण इतना दूषित और अशुद्ध हो जायेगा कि हम न ठीक से सांस ले सकेंगे और न ठीक से अन्न-जल ही ग्रहण कर पाएंगे। वातावरण के दूषित और अशद्ध होने से हमारा मानसिक, शारीरिक और आत्मिक विकास कुछ न हो सकेगा और हम किसी प्रकार जीवन जीने में समर्थ हो सकेंगे। इस प्रकार से वृक्षारोपण की आवश्यकता हमें सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करती हुई हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है। वृक्षारोपण की आवश्यकता की पूर्ति होने से हमारे जीवन और प्रकृति का परस्पर क्रम बना रहता है।

वक्षारोपण की आवश्यकता की पूर्ति हो जाने पर हमें वनों से जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। वनों के होने से हमें ईंधन के लिए पर्याप्त रूप से लकड़ियाँ प्राप्त हो जाती हैं। बांस की लकड़ी और घास से हमें कागज प्राप्त हो जाता है, जो हमारे कागज उद्योग का मुख्याधार हैं। वनों की पत्तियों, घास, पौधे, झाड़ियों की अधिकता के कारण तीव्र वर्षा से भूमि का कटाव तीव्र गति से न होकर मंद गति से होता है या नहीं के बराबर होता है। वनों के द्वारा वर्षा का संतुलन, बना रहता है। इससे हमारी कृषि ठीक ढंग से नहीं होती है। वन ही बाढ़ के प्रकोप को रोकते हैं। वन ही बढ़ते हुए और उड़ते हुए रेत कणों को कम करते हुए भूमि का संतुलन बनाए रखते हैं।

बढ़ती हुई भीषण जनसंख्या के कारण वनों के विस्तार की आवश्यकता इसलिए है कि इससे रोजगार और उत्पादन मात्रा में वृद्धि आ सके। यह सौभाग्य का विषय है कि सन् 1952 में सरकार ने नई वन नीति’ की घोषणा करके वन महोत्सव की प्रेरणा दी है। इससे वन-रोपण के कार्य में तेजी आई है। इस प्रकार हमारा ध्यान अगर वन-सुरक्षा की ओर लगा रहेगा तो हमें वनों से होने वाले लाभ: जैसे-जड़ी-बूटियों की प्राप्ति, पर्यटन की सुविधा, जंगली पशु-पक्षियों का सुदर्शन, इनकी खाल, पंख या बाल से प्राप्त विभिन्न आकर्षक वस्तुओं का निर्माण आदि सब कुछ हमें, वनों से प्राप्त होते हैं। अगर प्रकृति देवी का यह अद्भुत स्वरूप – वन-सम्पदा नष्ट हो जायेगी, तो हमें प्रकृति के कोप से बचना असंभव हो जाएगा।

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  1. Tejasvi June 30, 2019

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