Hindi Essay on “Patang Udane ka Anand”, “पतंग उड़ाने का आनंद”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

पतंग उड़ाने का आनंद

Patang Udane ka Anand

15 अगस्त का दिन जहाँ देशवासियों के लिए स्वतंत्रता का संदेश लाता है, वहीं लगभग समूचा उत्तर भारत पतंगबाजी में भी मशगूल रहता है। पुरानी दिल्ली के बाशिंदों के जोश का तो कहना ही क्या? हमने भी पतंग उड़ाने की सारी तैयारियाँ कर डाली थीं। रंग-बिरंगी, छोटी-बड़ी कई तरह की पतंगों के अलावा, उत्तम किस्म के मांझे-डोरी का भी इंतजाम कर डाला था। भई क्या पता; कितनी पतंगें लुट जाएँ, हम कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। यूं तो छुट्टी के दिन हमारा सुबह उठना नामुमकिन ही होता है, किंतु पतंग उड़ाने के जोश ने जैसे हमारी नींद ही हर ली थी। अपने संगी-साथियों के साथ, समस्त तामझाम लेकर मैदान की ओर सुबह-सुबह ही दौड़ पड़े। माँझा बाँधकर हवा के रुख के अनुसार, डोरी के परों पर सवार कर हमने अपनी पतंग को आकाश में उड़ती असंख्य पतंगों के पास पहुँचा दिया। कभी ढील देते. कभी खींच लेते, कभी सबसे ऊँची तो कभी दूसरी पतंग से कटने से बचाते हम पतंगबाजी का मजा लटने में मग्न थे। जब कभी कोई किसी की पतंग काट लेता तो ‘कट गई–कट गई’ के समवेत स्वर गूंज उठते चारों तरफ शोर, होहल्ला मचा था, हर कोई अपने को श्रेष्ठ पतंगबाज़ साबित करने में जुटा था, हमने भी कई तरह के दाँव-पेंच अपनाकर दो-चार पतंगें लूट ली थीं। कटी पतंग को पाने के लालच में कई बार टकराकर गिरे भी थे पर जोश में कोई कमी न आने पाई थी। सुबह से शाम कब हो गई, पता ही न चला। भूख-प्यास भी न जाने कहाँ गायब हो गई थी। कुछ बचा था तो थकान से चूर तन, साथ ही श्रेष्ठ पतंगबाज़ होने के खिताब से नवाजा गया प्रफुल्लित मन।

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