मेरा पड़ोसी
My Neighbour
पड़ोसी से अभिप्राय आस-पास के रहने वाले से है। दूसरे रूप में कहना चाहें तो कह सकते हैं कि पड़ोसी ही समाज का सर्वाधिक निकट का सम्बन्धी होता है। एक आदर्श पड़ोसी का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक गहरा और व्यापक होता है, क्योंकि व्यक्ति के जीवन में जो भी घटनाएँ घटित होती हैं; उसमें पड़ोसी की भूमिका सबसे अधिक होती हैं। पड़ोसी को आदर्श और चरित्रवान् के रूप में यदि हम पाना चाहते हैं और
उससे कोई सहयोग प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम उसके प्रति ईमानदार, सच्चे, कर्त्तव्यनिष्ठ और संवेदनशील बनें। हमारे अंदर त्याग-समर्पण की भावना की तरंगें ऊँची होनी चाहिएँ। जिससे पड़ोसी को सुख और शान्ति प्राप्त हो सके। उसके प्रति अपनापन और निःस्वार्थ का व्यवहार हमारे लिए नितान्त आवश्यक है; अन्यथा हम एक आदर्श वान पड़ोसी के स्थान एक ईष्र्यालु पड़ोसी पा सकेंगे।
एक आदर्श पड़ोसी वही हो सकता है, जो हमारे प्रतिदिन अच्छे और बुरे व्यवहारों के लिए उत्तरदायी होता हैं। कल्पना कीजिए घर में आग लगी हैं। घर के प्रायः सभी सदस्य कार्यालय या अन्य काम-धंधों में अन्यत्र है। किसी को कुछ पता नहीं। घर में केवल बच्चे और महिलाएँ हैं। ऐसी विपदा के समय एक आदर्श पड़ोसी का यह नैतिक कर्तव्य हो जाता है कि वह सर्वप्रथम घर को इस भीषण अग्नि-काण्ड से मुक्ति दिलाने के लिए घर के सभी सदस्यों को सुरक्षित रखने के लिए अन्य शुभचिन्तक पड़ोसियों को इसकी खबर देकर जलकल को फौरन सूचित करे । फिर काम पर गए सदस्यों को इसकी यथाशीघ्र सूचना देकर आगे की कार्रवाई करे। इस प्रकार के यथावश्यक कदम उठाना और उचित कार्रवाई करना एक आदर्श पड़ोसी का नैतिक कर्तव्य होता है।
पंडित दीनदयाल पाठक मेरा पड़ोसी है। वह मुझसे उम्र में कुछ अवश्य बड़ा है और अक्लमन्द भी। वह व्यवसाय से अध्यापक है। मन, वचन तथा कर्म का बहुत बड़ा पुजारी है। वह समाजसेवी, राजनीतिक, धार्मिक और कुशल वक्ता है। समाज के उत्थान और प्रगति के लिए उसका जन्म हुआ है, ऐसा उसके कर्म-निष्ठा और सच्ची लगन को देखते हुए कहा जा सकता है। पंडित दीनदयाल पाठक का व्यक्तित्व एक साथ औजमय, गंभीर, आकर्षक और शील-शिष्टाचार से भरापुरा व्यक्तित्व है। उससे उत्साह निर्भकता संवेदनशीलता, सरसता, सरलता, ऋजुता आदि एक साथ टपकती है। वह कठोर-उद्यमी, आत्मविश्वासी, संयमी, साहित्यानुरागी, कला, संगीतज्ञ, मिलनसार, राष्ट्रप्रेमी, जातिय गर्व का सचेतक, आत्मनिर्भर और कर्तव्यनिष्ट व्यक्ति है। उससे समाज का सभी वर्ग प्रभावित होकर उसके कार्यों की प्रशंसा बार-बार करता है।
पंडित दीनदयाल का परिवार बड़ा ही सुसंगठित और एक सूत्रीय परिवार है।उनका परिवार लगभग बीस सदस्यों का संयुक्त परिवार है, जो हमारे क्षेत्र के सभी परिवारों में सबसे अच्छा और प्रभावशाली परिवार है। दीनदयाल के पिता और माता हिन्दू-धर्म और संस्कृति के कट्टर समर्थक है। वे हिन्दू आदशों और परम्परावादी सिद्धान्तों के सच्चे अनुयायी हैं। यही नहीं उनके आदर्शों का अनुकरण आज भी मेरा पड़ोसी करते नहीं अघाता है। दीनदयाल के छोटे-बड़े घर के सभी सदस्य उनके। माता-पिता के आदर्शों का लक्ष्मण रेखा के समान उल्लंघन नहीं करते हैं। स्वयं पंडित दीनदयाल उनकी धर्मपत्नी मंजुला हिन्दू संस्कृति और सभ्यता की प्रतिमूर्ति हैं।
पंडित दीनदयाल का व्यक्तित्व सर्वागणीय विकास से ओतप्रोत होने के कारण हमें अनुप्रेरित करता है। उसके बचपन और उसकी आज की इस युवावस्था पर दृष्टिपात करने पर हमें वह तथ्य बड़ा ही विश्वसनीय लगता है कि ‘होनहार विरवान् होत चिकने पात्’ अर्थात् संभावना के द्वार पहले से ही खुलने लगते हैं। दीनदयाल का जो जीवन आज हमारे सामने है। हम यही आशा कर सकते हैं कि वे आगे चलकर निश्चय ही एक बहुचर्चित व्यक्ति के रूप में हमारे समाज और पड़ोस के लिए मार्गदर्शक बनकर हमें दिशाबोध देंगे। एक आदर्श पड़ोसी से हमें और क्या अपेक्षाएँ और आवश्यकताएँ हो सकती हैं, यह तो आने वाला समय बतायेगा; लेकिन इतना आवश्यक है कि पंडित दीनदयाल हमें अपनी सद्वृत्तियों और सदाचरणों से अवश्य लाभान्वित करते रहेंगे। हमें ऐसे पड़ोसी को पाकर गर्व और स्वाभिमान होता है। क्योंकि इससे हमारी निश्चित रूप से एक विशिष्ट पहचान कायम होती है-अंग्रेजी विद्वान की इस सूक्ति को इस संदर्भ की पुष्युक्त कर सकते हैं कि–
“Man is known by his सोसाइटी।