मेरी प्रिय मछलियाँ
Meri Priya Machliya
मनुष्य आपस में सदा लड़ते-झगड़ते रहते हैं। किसी के पास आपस में दो। मीठे वचन बोलने का भी समय नहीं है। ऐसे में यदि हम कोई जानवर घर ले। आए तो उसे देखकर, उसके साथ खेलकर मन बहुत शांत होता है।
मैंने अपने घर में एक मछलीघर रखा है। यह छोटा-सा काँच का एक डब्बा है जिसके ऊपर एक नीले रंग की प्लास्टिक की छत है। इसमें हमने एक बल्ब भी लगाया है। मछलीघर में कुछ नकली पौधे, पानी की सफ़ाई के लिए एक फिल्टर और हवा के लिए एक नली भी है।
मैंने इसमें छह सुनहरी मछलियाँ रखी हैं। ये बहुत ही चंचल हैं। मैं इन्हें हर रोज नियमित समय पर भोजन देता हूँ इसलिए स्वाभाविक रूप से इन्हें भोजन का समय ज्ञात हो जाता है और ये सब ऊपर की ओर तैरने लगती हैं। मुझे मछलीघर के बगल में अपनी कुरसी लगाकर इनकी चाल देखने में बहुत आनंद आता है। कभी-कभी जब एक मछली किसी दूसरी के पीछे भागती है तो मैं भी उत्साहित हो जाता हूँ।
हम हर महीने इसका पानी बदलते हैं और उसमें दवाई भी डालते हैं। जब कोई मछली मर जाती है तो मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरी मछलियाँ मेरी मित्र बन गई हैं और इनके नाम भी रखें हैं। मैं घंटों इनसे बातें कर सकता हूँ और ये भी मेरी आहट पहचान जाती हैं।