मेरा प्रिय लेखक : प्रेमचंद
Mera Priya Lekhak : Prem Chand
प्रेमचंद जो मुंशी प्रेमचंद के नाम से विश्वविख्यात हैं तथा इन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ भी कहा जाता है, इनका वास्तविक नाम धनपत राय था लेकिन इनके चाचा इन्हें नवाब राय के नाम से पुकारते थे। बचपन में ही माता के स्वर्ग सिधार जाने और विमाता के क्रूर स्वभाव ने इन्हें जिंदगी के कड़े एवं कठोर अनुभव करा दिए थे। जीवन संघर्षमय हो गया। विमाता ने एक कर्कशा स्वभाव वाली लड़की से इनका विवाह कर दिया। इस पत्नी से इनकी न बन पाई। अंत में इन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए शिवरानी देवी (बाल विधवा) से शादी कर ली। सर्वप्रथम इन्होंने उर्दू भाषा में लिखना शुरू किया। ‘सोजे वतन’ अंग्रेजी शासन द्वारा जब्त कर लिए जाने पर प्रेमचंद ने नवाब राय के नाम से लिखना छोड़ दिया। उर्दू से प्रभावित होकर इन्होंने अपनी प्रथम कहानी ‘अनमोल रत्न’ लिखी जो उर्दू पत्रिका ‘जमाना’ में प्रकाशित हुई। उपन्यास रचना, कहानी और निबंधों के अतिरिक्त इन्होंने कई नाटकों का अनुवाद किया और अनेक मौलिक नाटक भी लिखे। नाटकों में सुखदास, कर्बला आदि विश्वप्रसिद्ध हुए। उपन्यासों में प्रेमाश्रम, ग़बन, गोदान, निर्मला, कायाकल्प, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि आदि अत्यंत प्रसिद्ध हैं। सप्तसरोज, प्रेमपच्चीसी, प्रेमद्वादशी आदि इनके कहानी संग्रह हैं। प्रेमचंद की लेखन शैली की अपनी विशेषता थी। इनकी रचनाओं में इनके व्यक्तित्व की गहरी छाप दिखाई देती है। इनकी भाषा सरल एवं मुहावरेदार है। भाषा पात्रानुकूल है। हास्य और व्यंग्य की पुष्टि भी मिलती है। उपन्यासकार प्रेमचंद युगप्रवर्तक रचनाकार थे। ये उपन्यासकार के साथ-साथ आलोचक, कहानीकार, निबंधकार और अनुवादक भी थे। इनकी प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण यह है कि इनके साहित्य में तत्कालीन समाज का यथातथ्य चित्रण है। इन्होंने किसान, मजदूर, पूँजीपतियों, अध्यापक, नारी आदि के चित्र यथार्थ रूप से प्रस्तुत किये। हैं। इन्होंने तत्कालीन सामाजिक बुराइयों को दूर करने का भरसक प्रयत्न किया। स्त्री शिक्षा, छुआछूत, बेमेल विवाह, विधवा विवाह, दहेज प्रथा, वेश्या समस्या आदि विषयों पर लिखकर उन्होंने समाज सुधार का महान कार्य किया। निर्धन मजदूरों और किसानों को अपने साहित्य का विषय बनाकर ग्रामोत्थान का काम किया। साहित्य को एक विशेष दिशा में मोड़कर समाज के उपेक्षित वर्ग को उसमें स्थान दिया। प्रेमचंद आदर्शोन्मुख यथार्थ के पक्षधर थे। इनकी समस्त रचनाओं में समाज का प्रतिबिंब देखा जा सकता है।