Hindi Essay on “Jeevan me Kholo ka Mahatva”, “जीवन में खेलों का महत्त्व”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

जीवन में खेलों का महत्त्व

Jeevan me Kholo ka Mahatva 

 

क्रीड़ा करना या खेलना हर प्रणी के स्वभाव में होता है। मनुष्य ही नहीं, पश-पक्षियों को भी खेलते हुए देखा गया है। सर्कस में जानवरों को बहुत-से खेल-खेलते देखा जा सकता है। बन्दरों, भालुओं तथा अन्य जंगली जानवरों को जंगलों में क्रीड़ारते देखा जा सकता है। शेक्सपीयर ने लिखा है कि ईश्वर शरारती बच्चे की तरह है, जो खेल-खेल में लोगों को मक्खियों की तरह मारता रहता है। हमारे यहाँ भी स्वीकार किया जाता है कि ईश्वर ने लीला के लिए सृष्टि का निर्माण किया। लीला अथति क्रीड़ा या खेल देवताओं और साक्षात ईश्वर को भी प्रिय है। मनुष्य जीवन अपने आप में एक नाटक है, जिसे हम विश्व के रंगमंच पर खेलते हैं। खेल को खेल की भावना से खेलना बहुत जरूरी है।

खेलते समय बच्चा जितना तन्मय होता है, उतना और किसी समय नहीं। खेल बच्चे की सूची के अनुकूल हो, तो वह खाना पीना तक भूल जाता है। आज बहुत-से लोग खेलों को ही अपने जीवन के व्यवसाय के रूप में चुन रहे हैं। सरकार भी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन दे रही है। उन्हें नौकरियों में भी वरीयता दी रही है।

खेल हमारे जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। खेल खेलने से हमारे मन में प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है। खिलाड़ी मिल-जुल कर खेलते हैं। इसलिए उनमें पारस्परिक सहयोग की भावना पैदा होती है। खेल में त्याग भावना भी रहती है। खिलाड़ी अपने लिए नहीं, बल्कि टीम के लिए खेलता है। देश के लिए खेलता है ।

सृष्टि के आदिकाल से ही मनुष्य मनोरंजन के नए-से-नए साधन खोजता आया है। खेल भी मनोरंजन की लालसा से ही जन्मे हैं। कुछ खेलों में शारीरिक क्षमता का अधिक प्रयोग होता है, तो कुछ में मस्तिष्क का अधिक प्रयोग होता है। सभी खेलों में थोड़ी-बहुत बुद्धि तो लगानी ही पड़ती है। खेलों से शरीर स्वस्थ और शक्तिशाली बनता है। मांसपेशियां मजबूत होती हैं और शरीर में रक्त का संचार तीव्र हो जाता है। खेल सीखने के लिए मनुष्य को परिश्रम करना पड़ता है। किसी भी खेल में विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए लगन और अथक प्रयास की आवश्यकता होती है।

स्वस्थ मन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेलों से बढ़कर कोई राम बाण औषधि नहीं है। रोगी व्यक्ति ने अपना हित कर सकता है और न समाज का । रोगी के लिए अपना जीवन ही बोझ बन जाता है। कमजोर तथा रुग्ण व्यक्ति के लिए जीवन एक लम्बी यातना बन कर रह जाता है ।

खेलों से मनुष्य में ऐसी सामाजिक भावनाएं पैदा होती हैं, जो कि समाज तथा व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने देश के युवकों को बलवान बनने की प्रेरणा दी थी। गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल खेलने को। उन्होंने अधिक महत्व दिया था। कृष्ण की गीता के सन्देश को कार्यान्वित करने के लिए अर्जुन अथवा भीम की आवश्यकता रहती है। खेल हमें अच्छा मनुष्य बनने में सहायता करते हैं। खेल में जय और पराजय के क्षण में अपना सन्तुलन नहीं खोता और अपने विरोधी की प्रशंसा कर सकता है। विजय के क्षणों में अच्छा खिलाड़ी । सन्तुलित रहता है और पराजित खिलाड़ी की भावनाओं का सम्मान करता है।

आजकल खेल, खेत न रह कर व्यवसाय में बदल गए हैं। लाखों रुपयों के पुरस्कार विजेताओं के लिए रखे जाते हैं। खेल की अपेक्षा विजय अधिक महत्वपूर्ण । बन जाती है। खेल के मैदान, युद्ध के अखाड़े बनते जा रहे हैं। खेल, खेल न रह कर राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न बनते जा रहे हैं। आज इस बात की आवश्यकता है कि खेलों को खेल की भावना से खेला जाए। इन्हें हर प्रकार की राजनीति से दूर रखा जाए।

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