Hindi Essay on “Ant Bhla so Bhla”, “अन्त भला सो भला”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

अन्त भला सो भला

Ant Bhla so Bhla

किसी ने सच कहा है कि कर भला, हो भला, अन्त भला सो भला। परन्तु भला क्या है और बरा क्या इस विषय पर सभी एकमत नहीं हैं। कोई एक कार्य जो किसी का भला करने वाला हो सकता है, वही किसी दूसरे के लिए हानिकारक भी हो सकता है। यदि इस युक्ति को मान लिया जाए तो फिर पाप और पुण्य के विषय में भी यही बात कहनी पडेगी। परन्तु जो बात इस ‘सत्य कथन’ में कही गयी है उसमें निहित भाव कुछ औरही है। इस कथन का आशय है कि मनुष्य समाज में रहता हुआ अपना कर्म कुछ इस ढंग से करे कि उसका परिणाम अच्छा निकले, भले ही शुरू-शुरू में वह कार्य कुछ लोगों को बुरा ही लगे। किन्तु ऐसा कार्य करते समय व्यक्ति को अपनी इच्छा और आकांक्षा के साथ-साथ समाज का भी ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए हम आंवले को ले सकते हैं। इसके विषय में एक कहावत है कि आंवले के स्वाद और सयानों की कही बात का बाद में ही पता चलता है। इसी कारण आंवले को अमृत फल और सयानों के वचनों को अमृत वचन कहा जाता है। आंवले को खाते समय पहले-पहल उसका स्वाद कड़वा लगता है किन्तु खाने के बाद मुंह मीठा हो जाता है। इसी प्रकार सयानों की बात पहले-पहल तो कड़वी लगती है किन्तु बाद में मालूम पड़ता है कि वह बात तो हमारे ही भले के लिए कही गयी थी। इसी प्रकार हमें अपना ध्यान कार्य के परिणाम पर रखना चाहिए, जो कि सदा अच्छा होना चाहिए भले ही वह कार्य हमें आरम्भ में अनुकूल न लगे। ‘‘कर भला, हो भला’ कथन में एक दूसरा भाव ही निहित है। जिसका आशय यह है। कि यदि आप आज किसी के साथ भलाई करेंगे तो वह व्यक्ति, जिसका भला आपने किया है, आपकी भलाई का बदला भलाई से नहीं देता, तो भी हमें निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि अच्छे कार्य का फल ईश्वर सदा अच्छा ही देता है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने भी यही कहा कि तुम केवल कर्म करो फल मेरे हाथ छोड़-दो। ईश्वर कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं करता। मनुष्य जन्म से और स्वभाव से बुरा नहीं होता। वह प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ इसी कारण कहलाता है कि ईश्वर ने उसे भले-बुरे की पहचान की शक्ति दी है, विवेक दिया है। किन्तु जब कभी मनुष्य तात्कालिक लाभ के लिए, तुच्छ स्वार्थ के लिए कोई बुरा कार्य करता है तो उसका परिणाम सदा ही बुरा होता है। जैसे कि कम तोलने वाले व्यक्ति के वृद्धावस्था में हाथ हिलते देखे गए हैं। झूठ बोलने वाले का सिर। हिलने लगता है। कहते हैं ईश्वर की लाठी बडी बे-आवाज़ होती है। गुरु नानक देव जी ने ठीक ही कहा है कि ‘मन्दे कमीं नानका जद कद मन्दा होय’। अतः सांसारिक न सही ईश्वरीय दण्ड से बचने का एक ही उपाय है कि ‘कर भला सो हो भला’ के सिद्धान्त को ध्यान में रख कर सदा ऐसा कार्य करना चाहिए जो परहितकारी हो क्योंकि अब अन्त में भला होगा तो हमारा होगा। नरक की आग में तो कोई नहीं जलना चाहता सभी स्वर्ग चाहते हैं और स्वर्ग पाने का एकमात्र यही उपाय है कि सदा दसरों का भला करो।

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने ठीक ही लिखा है-

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

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