Ghondo Keshav Karve Jayanti “घोंडो केशव कर्वे जयन्ती” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

घोंडो केशव कर्वे जयन्ती (Ghondo Keshav Karve Jayanti)

महर्षि घोंडो केशव कर्वे को सन् 1958 में भारत सरकार ने भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया था। कर्वे सचमुच आधुनिक ऋषि थे। इनका जन्म 18 अप्रैल, 1858 को महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले के छोटे से गाँव मुरूड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम केसोपंत था। इनकी माता प्रसिद्ध गणितज्ञ परिवार ‘रंगलर’ की बेटी थीं। कर्वे की माता स्वाभिमानी थीं और यही गुण कर्वे में भी था।

कर्वे ने अपना सारा जीवन समाज कल्याण में लगा दिया था। महिला शिक्षा, विधवा स्त्रियों का कल्याण, गरीब छात्रों की मदद, बाल-विवाह व बाल-विधवाओं पर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध काम किया था। यह वह समय था जब अंधविश्वास का बोलबाला था। समाज में कुरीतियों ने जड़ें जमा रखी थीं। बाल-विवाह के प्रचलन के चलते कर्वे का विवाह भी 15 वर्ष की आयु में 9 वर्षीय राधाबाई से हो गया था।

कर्वे दुर्बल, पतले-दुबले और कद में नाटे थे। पर उनमें आत्मबल कमाल का था। शिक्षा के प्रति उनके समर्पण का एक उदाहरण ही पर्याप्त है कि छठी कक्षा की परीक्षा देने कर्वे सौ मील से अधिक दूर स्थित परीक्षा केन्द्र में परीक्षा देने गए थे। सन् 1881 में 23 वर्ष की आयु में कर्वे ने मैट्रिक पास की। शिक्षा प्राप्ति के लिए उन्हें बम्बई रहना पड़ा। 27 वर्ष की आयु में बी.ए. पास किया। अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए इन्हें बहुत कष्ट सहने पड़े थे। इन्हें छात्रवृत्ति मिलती थी। उसका बड़ा हिस्सा फीस में चला जाता था । जीवनयापन के लिए ट्यूशन करते। छोटे-मोटे काम कर जो कुछ कमाते उसमें से एक पैसा प्रति रुपया किसी सेवा कार्य में लगा देते।

कर्वे दृढ़प्रतिज्ञ थे। नौकरी करने के बजाय शिक्षा प्रसार को अपना ध्येय बनाया। सन् 1891 में पत्नी राधाबाई के देहान्त ने इन्हें काफी विचलित कर दिया था। पर इनकी सहनशक्ति और कुछ करने की अदम्य लालसा ने इन्हें निराश नहीं होने दिया बल्कि नारी उत्थान के कार्य में जुट गए। गोपालकृष्ण गोखले ने इन्हें फर्ग्युसन कॉलेज में गणित का प्राध्यापक पद दे दिया था। वहाँ भी कर्वे ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। समाज-सेवा और विधवाओं के उत्थान कार्य में लगे रहे। स्वयं ने भी एक बाल-विधवा गोदूबाई से दूसरा विवाह किया था। इस विवाह से कर्वे को समाज, परिवार व गाँव में विरोध का सामना करना पड़ा था। पर ये विचलित नहीं हुए।

सन् 1898 में पूना के समीप हिंगणे गाँव में एक झोंपड़ी में अनाथ बालिका आश्रम खोला। सारी कमाई इसी में लगाते रहे। आगे चलकर यह नन्हा दीप मशाल बन गया। महिला विश्वविद्यालय के रूप में यह देश का पहला संस्थान बना । सन् 1942 में इस महिला विद्यापीठ की रजत जयन्ती मनाई गई। यह मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय हो गया।

सन् 1958 में कर्वे की जन्मशती मनाई गई। पूरे महाराष्ट्र सहित देश भर में कई कार्यक्रम हुए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी बम्बई में उपस्थित हुए। उन्होंने कर्वेजी से कहा, “मैं तो आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ।” कर्वे ने 105 वर्ष का दीर्घ जीवन पाया था। सन् 1962 में उनका निधन हुआ था। आज झोंपड़ी से शुरू हुआ आश्रम आधुनिक भवनों सहित एक आधुनिक विश्वविद्यालय बन गया है।

अन्ना साहब कर्वे के नाम से विख्यात इस आधुनिक महर्षि का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणादायक है। संघर्ष, सादगी, सेवा भावना से ओतप्रोत था कर्वे का व्यक्तित्व । इनके जीवन का लक्ष्य था महिला शिक्षा, महिलाओं विशेषकर विधवाओं का उत्थान, दुखियों की सेवा। समाज में फैली कुरीतियों व अंधविश्वास को दूर करना ।

ऐसे महापुरुष व मनीषी व्यक्ति की अच्छाइयों और उद्देश्यों को अपनाकर जीवन सार्थक बनाया जा सकता है।

कैसे मनाएँ घोंडो केशव कर्वे जयन्ती (How to celebrate Ghondo Keshav Karve Jayanti)

  1. कर्वेजी का फोटो लगाएँ ।
  2. माल्यार्पण करें, दीप जलाएँ ।
  3. कर्वे आधुनिक ऋषि माने जाते हैं। उन्होंने बाल-विवाह के विरुद्ध काम किया। विधवा-विवाह को प्रोत्साहित किया। विधवाओं पर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध काम किया। महिला शिक्षा, गरीबों की मदद की। सामाजिक कुरीतियों व अन्धविश्वास मिटाने की दिशा में काम किया। इन सबकी आज भी जरूरत है। अतः इनकी जीवनी में से ऐसे प्रेरक प्रसंग व घटनाएँ निकालकर सुनाए जाएँ।
  4. उनके जीवन के ध्येय और उद्देश्य पोस्टर पर लिखकर लगाएँ।
  5. सामाजिक कुरीतियाँ, बाल-विवाह, महिला शिक्षा, अंधविश्वास आदि विषयों पर बच्चों में ‘स्लोगन’ प्रतियोगिता आयोजित की जा सकती है।

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