Bhagwan Jhulelal Jayanti “भगवान् झूलेलाल जयन्ती” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

भगवान् झूलेलाल जयन्ती

Bhagwan Jhulelal Jayanti

भगवान् झूलेलाल को जल के देवता वरुण का दूसरा अवतार माना जाता है। इनका जन्म सन् 951, विक्रम संवत 1007 में चैत्र माह की तृतीया को सिन्ध प्रदेश में हुआ था। आज वह प्रदेश पाकिस्तान का हिस्सा है। आज से लगभग 1050 वर्ष पूर्व सिन्ध व सिन्धवासियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ने लगा था ! तब सिन्धवासियों ने जल के देवता वरुण का स्मरण किया । सिन्ध नदी के तट पर पहुँचकर वरुण देव की पूजा-अर्चना कर आह्वान किया कि यदि अत्याचारों से उनकी रक्षा नहीं की तो हम सब सिन्ध नदी में स्वयं को समर्पित कर देंगे ।

यह पूजा-अर्चना-प्रार्थना सात दिन तक चलती रही। आखिर सातवें दिन वरुण देव मछली पर बैठकर प्रकट हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई कि धर्म की रक्षा करने और अत्याचारियों का सर्वनाश करने के लिए भगवान् नसीरपुर शहर में रतनराय के घर जन्म लेंगे।

आकाशवाणी सत्य हुई। आज से एक हजार वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1007 के दिन वरुण अवतार ने जन्म लिया।

तब सिन्ध में बादशाह मिरख (मिर्ग) शाह राज्य कर रहा था। उसे जब यह खबर लगी तो रतनराय के घर से उस विलक्षण बालक को उठा लाने का उसने हुक्म दे दिया।

बादशाह का मंत्री सैनिकों के साथ नसीरपुर रतनराय के घर पहुँचा। कहते हैं जैसे ही उसने बालक को उठाना चाहा तभी किसी चमत्कार से वह भयभीत हो उठा। उसने बालक को एक विराट सिंहासन पर आसीन देखा। वह मंत्री उलटे पाँव लौट गया। उसने मिरखशाह को सारी घटना जा सुनाई।

बादशाह के मन में भी थोड़ा भय जागा। पर वह अहंकारी और घमंडी था। उसने तुरंत बालक को गिरफ्तार करके लाने का हुक्म दिया। बादशाह के सिपाही बालक को गिरफ्तार करते इससे पहले ही खुद बादशाह का महल जल उठा। साथ ही एक विनाशकारी तूफान आया जिससे आग सारे शहर में फैल गई।

बादशाह मिरखशाह इस चमत्कार से इतना भयभीत हुआ कि भगवान् झूलेलाल से माफी माँगने लगा। भगवान् ने सबकी प्रार्थना सुनी। उस अत्याचारी को क्षमा कर दिया।

मिरखशाह ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो ‘जिहन्द पीर’ के नाम से विख्यात है। यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम सभी के लिए एक तीर्थस्थान बन गया है।

भगवान् झूलेलाल के दो रूप हैं। एक पानी में मछली पर सवार, पालथी मारकर बैठे हैं। हाथ में पुस्तक, दाहिने हाथ में माला, ललाट पर तिलक, सफेद दाढ़ी-मूँछ है। सिर पर मुकुट एवं मोरपंख है ।

दूसरा रूप इसके विपरीत है। उसमें भगवान् झूलेलाल घोड़े पर सवार हैं। दाहिने हाथ में तलवार है, बाएँ हाथ में ध्वजा व सिर पर टोपी अर्थात् एक वीर पुरुष का रूप झलकता है। इनके भक्तगण इनके दोनों ही रूप की पूजा-अर्चना करते हैं।

झूलेलाल के जन्म से पूर्व इनके पिता रतनराय को बालक के झूले में झूलते हुए दर्शन हुए थे, इसीलिए इन्हें झूलेलाल कहा गया। यह दिन ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाया जाता है।

वरुण अवतार को तीन नामों से जाना जाता है-झूलेलाल, उदेरेलाल और अमरलाल । भगवान् झूलेलाल के आगे ज्योति प्रज्वलित की जाती है। उस समय ‘आयोलाल झूलेलाल’ का उच्चारण किया जाता है। इनकी वास्तविक स्थिति जल और ज्योति ही है। झूलेलाल ने ‘वरुण पंथ’ की स्थापना की। इसमें जल और ज्योति को ही प्रमुख व पूजनीय माना गया है।

सिन्धी हिन्दू इन्हें उदेरेलाल, झूलेलाल के रूप में स्मरण करते हैं वहीं मुसलमान इन्हें ‘जिहन्द पीर’ के नाम से याद करते हैं।

झूलेलाल जयंती एकता व भाईचारे का संदेश देती है। इनके जन्म- दिन पर सिंधी संस्कृति, रीति-रिवाज और पहनावे को प्रमुखता दी जाती है। अत्याचारियों का नाश करने वाले व एकता व भाईचारे के इस संदेशवाहक की जयंती सभी लोगों को मनानी चाहिए।

कैसे मनाएँ झूलेलाल जयन्ती

How to celebrate Jhulelal Jayanti

  1. आयोजन स्थल को सजाएँ।
  2. झूलेलाल की तस्वीर रखें।
  3. दीप जलाएँ और माल्यार्पण करें।
  4. झूलेलाल के जीवन परिचय से बच्चों को परिचित कराएँ ।
  5. झूलेलाल वरुण के अवतार माने जाते हैं। इन्होंने जल और ज्योति को ही पूजनीय माना । अतः बच्चों की जल के जीव और दीपक व ज्योति के चित्रों की प्रतियोगिता करवाएँ।
  6. इनके जन्म से पहले और जन्म के बाद की घटनाओं से बच्चों को परिचित करवाएँ।
  7. झूलेलाल को हिन्दू और मुस्लिम दोनों पूजते हैं अतः उनकी इस विशेषता को उजागर करते हुए बच्चों को एकता व भाईचारे की प्रेरणा दें।
  8. झूलेलाल द्वारा स्थापित ‘वरुण पंथ’ के बारे में बच्चों को जानकारी देने के लिए किसी ‘सिन्धी संत’ को आमंत्रित किया जा सकता है।

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