Basant Panchami “बसंत पंचमी” Hindi Essay, Paragraph for Class 9, 10 and 12 Students.

बसंत पंचमी

Basant Panchami

बसंत पंचमी विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना का दिन है। विद्यार्थी और शिक्षार्थी दोनों ही के लिए इस दिन का अलग महत्व है। पूर्व समय में बालक की शिक्षा का प्रारंभ आज के दिन माँ सरस्वती की विधिवत पूजा के बाद किया जाता था। बच्चों को अक्षर-ज्ञान आज ही के दिन कराया जाता है।

आज का दिन इस व्रत और संकल्प का दिन है कि हम पढ़-लिखकर ज्ञान प्राप्त करें और अज्ञान का अँधेरा दूर करें।

यों तो हर ऋतु का अपना महत्व होता है पर बसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है अर्थात् सब ऋतुओं का राजा। पतझड़ के बाद पेड़-पौधों में नई कोंपलें आने लगती हैं। धरती हरी चूनर ओढ़ लेती है। खेतों में पीली सरसों फूलने लगती है। पेड़-पौधों पर फूल खिलने लगते हैं। लगता है कृ स्वयं धरती का शृंगार करती है।

पूरे वातावरण में एक मादकता छा जाती है। हर बालक, युवा, वृद्ध एक उमंग और उल्लास से भरे नजर आते हैं। रंगों के त्योहार होली का आज ही के दिन से स्वागत-सत्कार शुरू हो जाता है। समूचे वातावरण में परिवर्तन महसूस होता है। आम्रकुंज में कोयल की कूक भी इन्हीं दिनों सुनाई देती है। आज के दिन सब पीत-वस्त्र धारण करते हैं और पीले रंग का भोजन ग्रहण करते हैं।

माँ सरस्वती का रूप-स्वरूप एकदम पावन है। माता श्वेत वस्त्र धारण करती है। सफेद कमल पर आसीन रहती है। इसके एक हाथ में वीणा होती है, एक में पुस्तक। माता का वाहन हंस है। यह सब रूप पावन और पवित्रता का अहसास देता है।

माँ सरस्वती के हाथ में वीणा है इसीलिए इसे वीणावादिनी या वीणापाणि कहते हैं। श्वेत रूप के कारण ‘महाश्वेता’ कहा जाता है। यों शारदा, भारती, बागीश्वरी व पुस्तकधारिणी भी कहते हैं। माँ सरस्वती की पूजा सामग्री में भी अधिकतर सफेद चीजों का ही उपयोग होता है।

हमारे वैदिक साहित्य में भी माँ सरस्वती के स्वरूप को ज्ञानदायिनी माँ के रूप में वर्णित किया गया है। माँ सरस्वती की वंदना बह्मा, विष्णु और महेश भी करते हैं।

बंगाल में यह दिन श्रीपंचमी के रूप में मनाया जाता है। सरस्वती की विधि-विधान से पूजा होती है। भव्य जुलूस के साथ सरस्वती की मूर्ति को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। आज का दिन ब्राह्मण वर्ग द्वारा जनेऊ संस्कार के रूप में भी मनाया जाता है। आज ही के दिन प्रेम के देवता को शिव ने भस्म किया था। कई जगह आज कामदेव की पूजा भी होती है।

माँ सरस्वती चौदह विद्या और चौंसठ कलाओं को देने वाली है। यह अपने उपासक को जीवन देती है। ज्ञान का आलोक देती है। ज्ञान की इस देवी की आराधना खूब उत्साह और धूम-धाम से की जानी चाहिए। साहित्यिक व सांस्कृतिक आयोजन करके कला की इस देवी को रिझाया जाना चाहिए। शुद्ध मन और शुद्ध तन से माँ सरस्वती की पूजा करके उसका आशीर्वाद प्राप्त किया जाना चाहिए।

कैसे मनाएँ बसंत पंचमी

How to celebrate Basant Panchami

  1. सरस्वती का चित्र लगाएँ।
  2. माल्यार्पण कर दीप जलाएँ।
  3. आयोजन के प्रारंभ में सरस्वती वंदना करें।
  4. आयोजन स्थल को पीले फूल व पीली कागज की झंडियों से सजाएँ।
  5. पीले और सफेद रंग से अल्पना सजाएँ।
  6. सरस्वती ज्ञान, शिक्षा और कला की देवी है-यह बात बच्चों को समझाते हुए सरस्वती की नियमित आराधना करने की प्रेरणा दें। प्रकृति परिवर्तन के बारे में बताएँ।
  7. बच्चों में कविता-पाठ प्रतियोगिता करायें, श्रेष्ठ को पुरस्कृत करें।
  8. सरस्वती गान की भी प्रतियोगिता आयोजित की जा सकती है।
  9. बच्चों को पीले वस्त्र पहनकर आने को कहा जा सकता है।
  10. अन्त में माँ सरस्वती की आरती के साथ आयोजन का समापन करें।
  11. वादन, गायन व शास्त्रीय नृत्य की प्रतियोगिता भी रखी जा सकती है।

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