Hindi Story, Essay on “Chirag tale Andhera”, “चिराग तले अँधेरा” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

चिराग तले अँधेरा

Chirag tale Andhera

दीवाली का दिन था। घर में चारों तरफ रंग-बिरंगे बल्बों की रोशनी हो रही थी। फूल-मालाएँ लटक रही थीं। दरवाजों पर बंदनवार शोभा बढ़ा रहे थे। पूजा के स्थान पर दादाजी लक्ष्मी-पूजन की तैयारी में लगे थे। अमर और लता भी पास बैठे दादाजी की मदद कर रहे थे। पूजा शुरू होने ही वाली थी कि दादाजी ने देखा, माचिस और रुई नहीं थी। उन्होंने अमर से कहा-“बेटा, माचिस और रुई तो है ही नहीं। फिर पूजा कैसे होगी? यह तो ऐसा हो गया जैसे चिराग तले अँधेरा।”

अमर भागकर गया और माचिस व रुई ले आया। दादाजी ने रुई से बत्ती बनाकर दीया जलाया। सब लोग आ गए। फिर सबने मिलकर लक्ष्मी जी की पूजा की। पूजा के बाद सबने मिठाई खाई और पटाखे जलाए। रात को सोने से पहले अमर और लता दादाजी के पास गए।

दादाजी. आपने कहा था-चिराग तले अंधेरा। इसका मतलब क्या। है” लता ने पूछा। “बेटा, इस कहावत का अर्थ है कि मुख्य अवसर या स्थान पर किसी जरूरी चीज की कमी होना। अब देखो, माचिस और रुई के बगैर पूजा कैसे हो सकती है? दीपक की बत्ती बनाने के लिए रुई चाहिए और दीपक जलाने के लिए माचिस जरूर चाहिए।” दादाजी ने समझाया।

“दादाजी, हमें इस कहावत के बारे में कहानी सुनाओ।” अमर और लता ने एक साथ फरमाइश की। दादाजी ने कहानी शुरू करते हुए कहा-“ बेटे, एक राजा था। उसके राज्य में लोग बहुत सुखी थे। राजा हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के लिए काम करता था। इसलिए प्रजा भी अपने राजा को बहुत चाहती थी। हर त्योहार पर राजा अपनी प्रजा को तरह-तरह के उपहार देता था। गरीबों को दान करता था।”

दीवाली का त्योहार आया। घरों में चिराग जलाकर खूब रोशनी की गई। राजा ने महल में रोशनी का इंतजाम करवाया। राजा ने यह काम अपने मंत्री को सौंपते हुए आदेश दिया-‘वीर सिंह, हमारे महल का कोना-कोना

रोशनी से जगमगाना चाहिए। हजारों चिराग जलाए जाएँ। रात का अँधेरा कहीं नजर न आए।’ राजा की आज्ञा के मुताबिक राजमहल के कोने-कोने में घी के चिराग जलाए गए। रात के समय ऐसा लग रहा था मानो

आकाश के तारे पृथ्वी पर ही जगमगा रहे हों। महल तो चिरागों की रोशनी में दुल्हन की तरह लग रहा था।“ राजमहल में मेले जैसा माहौल था। राजा अपने परिवार के साथ दीवाली मना रहे थे। लक्ष्मी-पूजन के बाद तरह-तरह की आतिशबाजियाँ जलाई गई। फुलझड़ी और पटाखे जलाए गए। चारों तरफ जलते चिरागों को देखकर राजा का मन फूला नहीं समा रहा था। मानो राजमहल परीलोक जैसा लग रहा था। राजा ने अपने मंत्री से कहा-“देखो वीर ह हमारा महल इन चिरागों की रोशनी में कितना सुंदर लग रहा है। कहीं भी अँधेरे का नाम नहीं है।’ यह सुनकर मंत्री वीर सिंह ने राजा के सम्मान में अपना सिर झुकाया और बोला- “क्षमा करें महाराज! अँधेरा तो है, परंतु नजर नहीं आ रहा।’ राजा चौंक गया। उसने अपने चारों तरफ देखा और बोला-‘वीर सिंह, हम समझे नहीं। रोशनी में अँधेरा है और हमें दिखाई नहीं दे रहा। यह कैसे हो सकता है?’ राजा की उलझन बढ़ती जा रही थी।” दादाजी कुछ देर रुककर बोले। “फिर मंत्री अपने राजा को एक जलते हुए चिराग के पास ले गया और बोला-‘महाराज, आप देख रहे हैं कि यह चिराग जल रहा है और इसकी रोशनी चारों तरफ फैल रही है। लेकिन महाराज, जरा देखिए तो इसके नीचे क्या है?’ यह सुनकर राजा ने ध्यान से देखा। राजा की समझ में आते ही वह जोर से बोल पड़ा-“ओह! चिराग तले अँधेरा!’ राजा ने अपने मंत्री की बुद्धि और सूझ-बूझ से खुश होकर उसे ढेर सारा इनाम दिया।” कहते हुए दादाजी ने अपनी कहानी समाप्त की।

“दादाजी, इस कहावत का मतलब यह हुआ कि हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं किसी छोटी-सी चीज की वजह से हमारा जरूरी काम न रुक जाए।” लता बोली।

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