पुस्तक मेला – दिल्ली
Pustak Mela – Delhi
भारत मे पुस्तकों का प्रचार-प्रसार निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इस प्रचार-प्रसार में पुस्तक मेलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये पुस्तक मेले पिछले डेढ़ दशक से काफी लोकप्रिय होते चले जा रहे हैं।
कुछ लोगों का मत है कि ये पुस्तक मेले अन्य मेलों की तरह केवल देखने-दिखाने के साधन मात्र हैं। बुद्धिजीवी वर्ग इन मेलों में बहुत कम जाते हैं। इन मेलों में पुस्तकों का कोई भला नहीं होता। इन्हें केवल प्रदर्शनी के लिए ही रखा जाता है।
दूसरा वर्ग उन लोगों का है जो यह मानते हैं कि पुस्तक मेले बहुत उपयोगी हैं। इनसे लेखक, प्रकाशक, पाठक, विक्रेता आदि सभी लाभान्वित होते हैं। अब तो इन मेलों में लेखकों और पाठकों का आमना-सामना भी कराया जाता है। पाठक लेखकों से मिलकर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं।
अभी हमारे देश में पुस्तकों को खरीदकर पढने वालों का वर्ग अच्छी-खासी मात्रा में नहीं है। इसके लिए पुस्तक मेले बहुत उपयोगा। हैं। पुस्तकों का लोगों से परिचय कराने के लिए पुस्तक मेले अच्छी भूमिका निभा रहे हैं।
नि:संदेह पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र हैं। अगर किसी व्यक्ति का कोई मित्र नहीं है या वह अकेले यात्रा कर रहा है, तो पुस्तकें हमेशा उसका मनोरंजन करती हैं और उसका अकेलापन भी दूर करने में उसका सहयोग देती हैं।
पुस्तक मेले वर्ष में दो बार (अगस्त और जनवरी) प्रगति मैदान में आयोजित होते हैं। इसके अतिरिक्त ये मेले भारत के अन्य राज्यों में भी आयोजित किए जाते हैं। इन पुस्तक मेलों में रियायती दरों पर पुस्तकें मिलती हैं ताकि पुस्तकें पढ़ने के प्रति लोगों की रुचि जाग्रत हो।
पिछली बार जब मैं प्रगति मैदान में आयोजित पुस्तक मेले में गया, तो वहाँ मैंने देखा कि बड़ी संख्या में किताबें खरीदने लोग आए हुए थे। वहाँ पुस्तक विक्रेता रियायती दर पर पुस्तकें बेच रहे थे। वहाँ बच्चों की संख्या अधिक थी उनके माता-पिता उन्हें उनकी मनपसंद की किताबें खरीदकर दे रहे थे। मैंने भी अपनी पसंद की पुस्तक ‘जीत आपकी’ खरीदी।
पुस्तक मेलों में जाकर मुझे ज्ञात हुआ कि पुस्तकों को लोकप्रिय बनाने के लिए उन्हें कम कीमत पर बेचा जाना चाहिए। इससे पाठकों की संग में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी। इसके अलावा पुस्तक मेलों का अधिक से अधिक प्रचार किया जाना चाहिए तभी पुस्तकों के प्रति प्रत्येक व्यनि की रुचि जाग्रत होगी।