Hindi Essay on “Rajniti ka Apradhikaran”, “राजनीति का अपराधीकरण”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

राजनीति का अपराधीकरण

Rajniti ka Apradhikaran

 

राजाओं के शासनकाल में सम्राट् जनता की इच्छा से चुना जाता था। सर्वसहमति से अथवा खुशी-खुशी प्रजा के लोग जिस व्यक्ति को अपना नायक मान लेते थे-वही राजा कहलाता था। अधिकतर राजवंश के लोग ही राजा होते थे। इन राजाओं में कुछ निरंकुश अथवा तानाशाही प्रकृति के भी होते थे जो प्रजा को सुख देने के बजाय उन्हें दुःख, कष्ट और विपत्ति भी देते थे। तानाशाही प्रकृति के राजाओं को जनता को सताने में आनन्द मिलता था। वे प्रजा से मनमाना कर वसूल करके उनका खून चूसते थे।

प्राचीन भारत में राजवंश के लोगों को राजा का उत्तराधिकारी बनाने की परम्परा रही। जब भारत देश में मुस्लिम आक्रान्ता आए तो उन्होंने इस देश में मुस्लिम शासन की नींव रखी। कई वर्षों तक भारत पर मुगलों ने राज्य किया। लेकिन ये सारे राजा लोग उदार प्रकृति के नहीं थे। इनमें से अधिकतर तो क्रूर और शोषण प्रकृति के थे जो भारत की हिन्दू प्रजा को अपना गुलाम समझते थे और उनका मनमाना शोषण किया करते थे। जब भारत से मुस्लिम शासन का अन्त हुआ तो अंग्रेजों के ईसाई-शासन ने चारों ओर अपने पैर फैलाने शुरू किए। अंग्रेज अपनी बुद्धिमत्ता, अनुशासन तथा तर्कशक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। पहले वे इस देश में ब्रिटिश सरकार के व्यापारी बनकर आए लेकिन भारत की धनसम्पदा तथा प्राकृतिक सम्पदा की प्रचुरता को देख उन्होंने इस देश पर अधिकार करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने विदेशी तोपों, बन्दूकों और गोलाबारूद का सहारा लिया जिसके आगे भारतीय नरेशों के खड्ग भाले अधिक समय तक टिक। न सके और अन्ततः पूरे देश पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

अंग्रेजों की कैद से भारत माता को मुक्ति दिलाने के लिए भारतीय क्रान्तिवीरों ने जी तोड़ कोशिश की। हजारों और लाखों देशभक्तों ने अंग्रेजों की लाठियों की मार सही, जेलों की यातना सही और फाँसी के फन्दे को हँसते-हँसते गले से लगाया। इन सबके बलिदानों और महात्मा गाँधीजी आदि सत्यवादियों के प्रयासों जवरूप भारत देश को अंग्रेजों के 250 वर्षों के शासन से मुक्ति मिली। और आखिरकार हमारा भारत देश पूर्ण स्वतन्त्र हो गया। अब इस देश पर न मुस्लिम शासकों का कब्जा था और न ईसाई धर्म को मानने वाले अंग्रेज सम्राटों का। स्वतन्त्र भारत में अपना गणतन्त्र था तथा सभी भारतीयों को जीने का स्वतन्त्र अधिकार सावैधानिक तौर पर मिला हुआ था।

भारत का शासन चलाने के लिए प्रभावशाली नेताओं की आवश्यकता पड़ी। शुरू में जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री आदि ने भारत की शासन सत्ता की बागडोर सँभाली। कई वर्षों तक इस देश पर कांग्रेस पार्टी के सदस्यों का अधिकार रहा। इसके बाद जनता पार्टी, मोर्चा सरकार और भारतीय जनता पार्टी आदि का शासन रहा। कई वर्षों के बाद कांग्रेस पार्टी पुनः सत्ता में आई है और केन्द्र सरकार की बागडोर कांग्रेस पार्टी के हाथों में है।

यद्यपि आजादी के पश्चात् अनेक राजनीतिक दलों ने मिलकर देश का शासन सँभाला है लेकिन देश की आम जनता का विश्वास अभी तक किसी एक राजनीतिक पार्टी पर पूरी तरह से नहीं जम पाया है। इसका कारण यह है सत्ता का चुनाव लड़ने वाली हर पार्टी अन्य पार्टियों की तरह जनता की उन्नति और खुशहाली के तरह-तरह के फायदे करती है लेकिन राजनीति की कुर्सी मिल जाने के बाद उन वायदों पर कायम नहीं रही है।

इधर राजनीति में बड़ा अपराधीकरण अब होने लगा है। देश के छटे हुए बदमाश और भ्रष्ट लोगों को चुनाव की टिकटें दी जाने लगी हैं। कई-कई भ्रष्ट लोग तो जमानत पर छूटकर राजनीति का चुनाव लड़ते हैं और जिनको जमानत नहीं मिल पाती, वे जेल में बैठे-बैठे ही चुनाव लड़ते हैं और दुर्भाग्यवश जीत भी जाते हैं।

ये लोग अपनी भ्रष्ट चालों से सब के सब देश को लूटने में लगे हुए हैं। चुनाव जीतने के लिए ये लोग अपना करोड़ों रुपया खर्च करते हैं और जब चुनाव जीत जाते हैं तो सरकारी धन में से उस क्षतिपूर्ति को व्याज सहित वसूल करते हैं। जनता की भलाई के नाम जो पैसा सरकार से आता है, उसका अधिकांश हिस्सा इन नेताओं की जेबों में जाता है।

भारत के संसदीय लोकतन्त्र में आदर्शों का, सिद्धान्तों का, व्यावहारिक नैतिकता का मखौल उड़ाया जा रहा है। आज राष्ट्रवाद, गाँधीवाद, मानववाद, समाजवाद, सामाजिक न्याय, देश प्रेम, गरीब कल्याण और राष्ट्र सेवा जैसे शब्द अर्थहीन से हो गए हैं।

अनेक राजनीतिक दल आपराधिक तत्त्वों का सहयोग ही नहीं लेते, उसे वे अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव में खड़ा भी करते हैं।

राजनीति के अपराधीकरण का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव देश के सामाजिक जीवन पर पड़ा है। हर गली-मोहल्ले में दादा लोग होने लगे हैं। वे जनता को भय और आतंक प्रदान करते हैं। उनकी पहुँच बड़े-बड़े नेताओं तक है इसलिए आम आदमी उनकी पुलिस में रिपोर्ट लिखाकर व्यर्थ झगड़ा मोल लेना नहीं चाहता। राजनीति में अपराध आज दूध में पानी की तरह घुल-मिल चुका है। राजनीति के अपराधीकरण में उद्योगपतियों की भी बड़ी भूमिका है। वे राजनीतिक दलों अथवा नेताओं को हत्या, तोड़-फोड़ करवाने के लिए तथा चुनाव प्रचार आदि करवाने के लिए धन उपलब्ध करवाते हैं। गलत तरीकों से कमाए गए धन का राजनीति में लगाने से ही राजनीतिक अपराध बढ़ रहे हैं। देश के लिए यह सबस। ज्यादा चिन्ता का विषय है। सर्वोच्च न्यायालय, शासन, पुलिस प्रशासन आदि मिलकर ही राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगा सकते हैं।

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