मदर टेरेसा
Mother Teresa
मदर टेरेसा दया तथा करुणा की मूर्ति थी। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को अल्बानिया के एक परिवार में हुआ था। वह एक साधारण दुकानदार की लड़की थी। उन्होंने सन्यासिनी बनने के लिए 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम एगनेस था। बड़े होने पर मदर टेरेसा ने शिक्षा कार्य में मन लगाया। वे कोलकत्ता । के एक कान्वेंट स्कूल में धार्मिक शिक्षा व भूगोल पढ़ने आई थी। उसके बाद कोलकता गई जहाँ उन्होंने निर्णय लिया कि वह एक आजाद नन बनेगी। वह कलकत्ता 1946 में गई थी तो उन्होंने वहाँ बच्चों की देखभाल की तथा मरीजों का इलाज करने के साथ-साथ उनके लिए भोजन का भी प्रबन्ध किया। उसके बाद से ही उन्होंने दीन-दुखियों की सेवा का संकल्प ले लिया। उन्होंने 1948 में भारत की नागरिकता ग्रहण की। उन्होंने दीन-दुखियों की सहायता तथा उनकी सेवा के लिए अपनी संस्था ‘मिशनरीज ऑफ चैरेटीज’ की स्थापना की तथा अनाथ बच्चों एवं कुष्ट रोगियों की सेवा के लिए चैरिटी होम’ बनवाए। शुरू में उनकी इस संस्था सदस्य थे और अब इनकी संख्या बढ़कर 2000 के करीब हो गई है।
मदर टेरेसा बहुत दयालु थी वह हमेशा सफेद साड़ी पहनती थी और अपने लिए वह कभी भी पैसा नहीं बचाती थी परन्तु उन्होंने काफी अच्छे कार्य किए। उन्होंने कई विद्यालय, डिस्पेंसरी और मरीजों के लिए क्लीनिक खुलवाए। मदर टेरेसा ने हमेशा बिना किसी जाति, धर्म, रंग, राष्ट्रीयता का भेदभाव किए बिना ही सच्चे हृदय से सबकी सेवा की।
मदर टेरेसा की इस सच्ची सेवा को देखते हुए उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से 1980 में सम्मानित किया गया। भारत के अलावा इन्हें और देशों से भी सम्मानित किया गया। इन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला। मदर टेरेसा का 5 सितम्बर, 1997 को निधन हो गया। वह 87 वर्ष की थी। वह गरीबों की हमदर्द, दीन-दुखियों की सहायिका थी। उनका सम्पूर्ण । जीवन आज हर व्यक्ति के लिए आदर्श है क्योंकि वह अपने अन्तिम क्षणों । तक लोगों की सेवा करती रही और अंत में हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गई।