Vair Nahi Dharam Sikhate hai Mitrata Karna “वैर नहीं धर्म सिखाते हैं मित्रता करना” Hindi Essay 500 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched

वैर नहीं धर्म सिखाते हैं मित्रता करना

Vair Nahi Dharam Sikhate hai Mitrata Karna

समाज में रहने के कारण व्यक्ति सामाजिक कहलाता है। आदिकाल से ही उसकी अपनी मान्यताएँ रही हैं, उसके अपने विश्वास रहे हैं, उसकी अपनी आस्थाएँ रही हैं। उनके अनुरूप वह अपने आपको ढालता रहा है। इसी कारण वह विभिन्न वर्गों, विभिन्न समूहों और विभिन्न संप्रदायों में बंधता रहा है। अगर मूल रूप में देखा जाए तो संप्रदाय में बँधना कोई बुराई नहीं है। समाज के किसी वर्ग विशेष जिससे संबद्ध व्यक्ति किसी एक मान्यता विश्वास या आस्था को लेकर चलते हैं, उसे संप्रदाय के नाम से जाना जाता है। जीवन के हर क्षेत्र में संप्रदाय हैं। यहाँ तक कि साहित्य, कला और संस्कृति तक में हैं। लेकिन जब सांप्रदायिकता संकुचित मनोवृत्तियों या कुत्सित मनोवृत्ति वाली हो जाती है तब यह निश्चित रूप से अभिशाप बन जाती है। सांप्रदायिकता का सबसे घिनौना रूप धर्म का क्षेत्र है।

भारतीय दर्शन ने धर्म का स्वरूप बहुत स्पष्ट कहा है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत्।।

सच्चा धर्म एक स्वभाव है। यह प्राणिमात्र का भला चाहता है। लेकिन धर्म का स्वरूप संकुचित हो गया है। उसमें छुआछूत, ऊँच-नीच, जाति-पाँति, आदि के भाव समा गए। वह मन्दिर-मस्जिद और गिरिजाघर की दीवारों में बंद होकर रह गया। उसने मानव मानव में विभाजन कर दिया। इतिहास गवाह है कि इस घृणित सांप्रदायिकता के कारण अनेक बार भीषण रक्तपात हुआ है। अनेक जातियों का पतन हुआ है और देश को पराधीनता का स्वाद चखना पड़ा है।

जब सांप्रदायिकता का जुनून इंसान पर हावी हो जाता है तब उसमें अन्य धर्मों को मानने वालों के प्रति वैर भावना का समावेश हो जाता है। ऐसे में अगर किसी को जीतना है तो रक्त बहा कर नहीं मित्रतापूर्ण व्यवहार कर जीता जा सकता है। अगर सभी धर्मों का अध्ययन किया जाए तो कोई भी धर्म ऐसा नहीं है जो हमें दुश्मनी करना सिखाता है। सब धर्म मैत्री भाव की बात करते हैं चाहे इस्लाम हो, चाहे सिख धर्म हो, चाहे राम को मानने वाले हों, चाहे कृष्ण को मानने वाले हों और चाहे देवी को मानने वाले। सभी धर्मों में एक ही नूर है, एक ही ईश्वर है। कोई उसे साकार रूप में भजता है तो कोई निर्गुण रूप में। किसी भी धर्म का ग्रंथ उठा लो सभी में भाईचारे की बात कही गई है। सब इंसानियत की बात करते हैं। आप अगर राम को मानने वाले हैं तो इस्लाम को मानने वाले भी राम को ही मानते हैं बस, वहाँ उसका नाम अल्लाह हो जाता है। जैसे राम कण-कण में समाया हुआ है वैसे ही अल्लाह भी कण-कण में समाया है। मुश्किल यही है कि कण-कण में वह आलोकित है पर उसे देखने वाली आँखें नहीं है। ये आँखें वैर खोजने में लगी हैं। इसलिए कोई भी धर्म मानो पर दूसरे धर्म का आदर करना सीखो। हर धर्म मैत्री सिखाते हैं वैर नहीं। इस मित्रता को ही जीवन का आधार बनाओ। संसार सुखमय लगेगा क्योंकि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना।’

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