छात्र–जीवन
Student Life
छात्र-जीवन किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है । इसी समय व्यक्ति के चरित्र की नींव पड़ जाती है। बच्चों में सीखने की बहुत प्रवृत्ति होती है। युवा होने तक वह अपनी अच्छी या बुरी आदतें बना लेता है। इसलिए छात्र-जीवन में उसे बुरी आदतों से दूर रहना चाहिए। उसे अच्छी आदतें अपनानी चाहिए। इसके साथ ही छात्रों को कुएँ के मेढक के समान हमेशा घर में नहीं रहना चाहिए । अर्थात् उसे केवल किताबी-कीड़ा बनकर नहीं रहना चाहिए। छात्र-जीवन का उद्देश्य जीवन के सभी रूपों को अपने खुले नजरिए से देखना है । छात्र उस यात्री के समान है जिसे अपनी दूरियाँ खुद तय करनी हैं । रास्ता उसके बदले में दूरी तय नहीं कर सकता । पुस्तकें और शिक्षक केवल उसे उसका मार्ग बता सकते हैं । उसे बताए हुए रास्ते में चलकर अपनी मंजिल तक स्वयं पहुँचना होता है।
शब्द–भंडार
चरित्र =चाल-चलन, आचरण नजरिया – देखने का ढंग, विचार , नजरिया- मन का झुकाव, मंजिल = पड़ाव, जहाँ तक पहुँचने का लक्ष्य होता है।