राष्ट्रपिता महात्मा-गाँधी
Rashtrapita Mahatma Gandhi
बापू यानी विश्व-पिता बापू हमारे राष्ट्रपिता थे। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांध सत्य और अंहिसा के पुजारी थे। उनकी वाणी में जादू था, जिससे सारा संसार प्रभावित हुआ। हम भारतवासी उनके प्रताप से आज स्वतंत्रता में सांस ले रहे है। वास्तव में महात्मा गांधी जैसी महान विभूतियाँ ही समय-समय पर विश्व में अवतरित होकर कष्टों से मुक्त कराती है।
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई. में गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पतलीबाई था। पिता पोरबंदर रियासत के दीवान थे और माता धार्मिक प्रवृति की ममतामयी महिला। इनका विवाह केवल 13 वर्ष की अवस्था में हो गया था। 18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर के श्यामलदास कालेज में प्रवेश लिया, किंतु शीघ्र ही बैरिस्टरी (वकालत) पढ़ने के लिए इंगलैंड चले गए।
1891 ई0 में वकालत पास करके उन्होंने बंबई में वकालत शुरू कर दी। संकोची स्वभाव और धार्मिक प्रवृति उनके व्यवसाय के अनुकूल न थी, इसलिये छह महीने बाद राजकोट आए और केवल अर्जियाँ लिखकर जीवन-यापन करने लगे। इसी बीच 1892 ई0 में पोरबंदर के एक व्यापारी के मुकदमें के सिलसिलें में उन्हें अफ्रीका जाना पड़ा, वहाँ भारतीयों और अफ्रीका मूल के लोगों के प्रति अंग्रेजों का भीषण अत्याचार देखा। गोरे, काले लोगों का पग-पग पर अपमान करते थे। महात्मा गांधी भारतीयों की दशा सधारने में लग गए और उन्हें इस कार्य में सराहनीय सफलता मिली।
अफ्रीका से गांधी जी 1915 में लौटे। तब तक प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ चुका था। इसमें भारत द्वारा अंग्रेजों की धन-जन से सहायता की गई पर उन्होंने स्वराज्य वचन देकर भी अंगूठा दिखा दिया तब भी गांधी जी ने साहस नहीं छोड़ा। वे स्वराज्य की राह पर लगे रहे। उनके सन् 1920 और 1930 के आंदोलनों से अंग्रेज कांप उठे।
भारत में भी अछूतपन देखकर गांधी जी का चित्त अत्यंत व्याकुल हो उठा। इसको मिटाने के लिए भी उन्हें आन्दोलन चलाना पड़ा, जिसमें सफलता ने उनके पग चूमे। बहुत से मंदिरों में अछूतों का प्रवेश हो गया फिर वे ग्रामों के सधार में लगे। 1929 ई0 में जलियाँवाला हत्याकांड और रौलेट एक्ट आदि ने भारतीयों को असहयोग का ब्रह्मास्त्र दिया। भारतीयों को संगठित करने के लिए उनकी सामाजिक और आर्थिक दशा सुधारने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम शुरू किए। शीघ्र ही वे अखिल भारतीय नेता के रूप में उभरे। 1919 ईसवीं में जलियाँवाला हत्याकांड और रौलेट एक्ट आदि ने भारतीयों को आंदोलन के लिए विवश कर दिया। गांधी जी ने मदन मोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास आदि के साथ देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया 1921 ईसवी तक क्रान्ति के सभी नेता और लाखों स्वतंत्रता सेनानी जेलों में लूंस दिए गएं लेकिन सत्याग्रहियों की बाढ़ के कारण ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ां 1930 ईसवी में नमक सत्याग्रह (आंदोलन) छेड़ा और स्वदेशी आंदोलन चलाया।
सरकार ने 1935 का भारतीय शासन कानून पास किया, जिसके अन्र्तगत प्रान्तीय स्वायत शासन का अधिकार जनता को मिला। 1937 ईसवी में भारत के अधिकतर राज्यों में कांग्रेसी मंत्री मंडल बने और द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने पर कांग्रेसी मंत्रीमंडलों ने इस्तीफा दे दिया। 1942 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध पूरे जोरों पर था, महात्मा गांधी ने “अंग्रेजों भारत छोड़ों” और “करों या मरो’ का नारा दिया, अब ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट हो गया कि भारत अधिक दिन तक गुलामी की जंजीरों में बंधा नहीं रह सकता। ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी शक्ति खोकर भी कूटनीति में सफल हो गई। भारत दो टुकड़ों, भारत और पाकिस्तान में बंट गया। हजारों लोग बेघर हो गए। हजारों बच्चे अनाथ हो गए और हजारों स्त्रियाँ बेसहारा हो गई। महात्मा गांधी कभी बिहार जाकर और कभी दिल्ली में दुखी मानव की मरहम-पट्टी करने लगे। यह बात कुछ लोगों को नापसंद थी, उनमें बदले की भावना थी, प्रतिहिंसा थी। 30 जनवरी 1948 ईसवी को नाथूराम गोडसे ने अपनी तीन गोलियों से मानवता के इस मसीहे का अंत कर दिया। संसार का शायद ही कोई सच्चा इंसान होगा, जिसकी आंखों में महात्मा गांधी की मृत्यु पर बरबस आंसू न निकल पड़े हो।